पीयूसीएल ने की राजस्थान पुलिस की भर्त्सना, कहा ‘राजस्थान प्रशासन ने साम्प्रदायिक सौहार्द्र को असंतुलित करने की दिशा में किया कार्य’

By TCN News,

पीपुल यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज़ (पीयूसीएल), राजस्थान ने राजस्थान पुलिस की कड़े शब्दों में निंदा की है. उनके अनुसार राजस्थान पुलिस ने जयपुर के मुस्लिम उद्योगपतियों और जमाते-इस्लामी-हिंद के डा. इक़बाल पर बेबुनियाद आरोप लगाया कि इन्होंने गरीब हिन्दुओं से उनकी ज़मीन खरीदकर उस पर मस्ज़िदों का निर्माण प्रारम्भ कर दिया है.


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दिनांक 14 अगस्त 2014 को पीयूसीएल ने अतिरिक्त महानिदेशक, विशेष शाखा, राजस्थान द्वारा जयपुर के जिला कलक्टर और पुलिस कमिश्नर को भेजा गया दिनांक 15 जुलाई 2014 का एक गोपनीय पत्र प्राप्त किया, जिसमें मस्जिदों के निर्माण से जुडी बातों का उल्लेख था. उक्त पत्र में आरोप लगाया गया है कि मुस्लिम आबादी के आसपास रहने वाले विपन्न हिन्दुओं को तमाम किस्म के प्रलोभन दिए जा रहे हैं और उनकी ज़मीनों का प्रयोग धार्मिक स्थलों के निर्माण में किया जा रहा है. पत्र में आरोप है कि जमाते-इस्लामी-हिंद के डा. इक़बाल की देखरेख में उन पैसों का लेन-देन हो रहा है जिनसे ज़मीन खरीदने और मस्जिद का निर्माण कार्य कराया जा रहा है. आरोप यह भी है कि इस कार्य में सिराज़ ताक़त, हबीब गार्नेट, हाजी रफत, सोहराबुद्दीन, नईम क़ुरैशी, पप्पू क़ुरैशी, गफ्फार भाई टेंटवाला और बिलाल समेत नगर के कई उद्योगपति शामिल हैं, जो नगर के दरबार होटल में साप्ताहिक या मासिक तौर पर आगे के एजेंडे पर काम करने के लिए मिलते हैं.



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पीयूसीएल का कहना है कि ‘यह पत्र दुर्भावनापूर्ण कारणों से निकाला गया है. इसके ज़रिए यह कोशिश की जा रही है कि कुछ लोग मुस्लिम उद्योगपतियों और जमाते-इस्लामी-हिन्द को सीमित कर दें. इसके साथ ही साथ उनको सरकार के समक्ष शक के घेरे में डाल दिया जाए, जिससे उनकी प्रतिष्ठा को अपूर्व सामाजिक क्षति पहुंचे. पीयूसीएल के अनुसार जिस रूप से यह पत्र स्वतंत्रता दिवस के ठीक एक दिन पहले पत्रकारों-वकीलों को भेजा गया, इससे साफ़ ज़ाहिर है कि स्वतंत्रता दिवस व दो दिन बाद पड़ने वाली जन्माष्टमी को पृष्ठभूमि में रखकर ही यह लोगों को प्रेषित किया गया, जिससे नगर के उत्सव व साम्प्रदायिक सौहार्द्र को क्षति पहुंचे.’

पत्र में हज़रत अली कॉलोनी में स्थित नूर मस्जिद के साथ-साथ चार निर्माणाधीन मस्जिदों का उल्लेख है, जिनमें १). नई का मकान, सीता रामपुरी, फ़कीरों की डूंगरी, २). कृष्ण कॉलोनी, शिव मंदिर के पास, ३). नंदपुरी, ब्रह्मपुरी और ४). प्लॉट नो. १४, वहाब भई हज़रत अली कॉलोनी शामिल हैं.

पत्र प्राप्त करने के तत्काल बाद पीयूसीएल की टीम ने बिना पत्र सार्वजनिक किए सचाई का पता लगाने का काम शुरू कर दिया. हालांकि सौहार्द्र बनाने के लिए उठाए गए क़दम कुछ हद तक नाकाफी भी साबित हुए जब अगले ही दिन दैनिक भास्कर और पंजाब केसरी सहित कुछेक अन्य अखबारों ने इस खबर को प्रमुखता से प्रकाशित किया. पीयूसीएल के एक जाँच दल ने इन मस्जिदों का दौरा किया साथ ही पत्र में नामज़द उद्योगपतियों में हबीब गारनेट, सिराज ताकत, नाईन क़ुरैशी से भी मुलाक़ात की. पीयूसीएल के दल ने अतिरिक्त मुख्य सचिव (गृह) सुनिल अरोड़ा व पुलिस कमिश्नर जंगाराव से भी मुलाकात की. पीयूसीएल ने अपनी जाँच के आधार पर दावा किया है कि उक्त मस्जिदें पूरी तरह से कानूनी क़ायदों के अंदर बनी हैं. नूर मस्जिद की ज़मीन का पट्टा तो 1972 से खुद मस्जिद कमेटी के सदर के परिवार के नाम से है. जैतून मस्जिद वक्फ़नामा कर एक रफ़ीक भाई से वहाब भाई को दी गयी. आयशा मस्जिद की जमीन वक्फ़नामा के ज़रिए इक़बाल व सकीना बेगम ने समाज को दी, जो खुद उन्होंने 6 साल पहले पाहूमल सिंधी से खरीदी थी. कृष्णा कॉलोनी वाली मस्जिद बनी ही नहीं क्योंकि वह जमीन शिव मन्दिर के सामने थी और जब स्थानीय लोगों ने आपत्ति की तो काम तुरन्त छोड़ दिया गया और अब मस्जिद कमेटी का ऐसा विचार है कि मस्जिद का निर्माण किसी अन्य इलाके में कराया जाए. कमेटी के इस निर्णय के लिए पुलिस व हिन्दू समाज के लोग भी बहुत आभारी थे.

पीयूसीएल की मानें तो इन मस्जिदों को लेकर बातचीत में कहीं भी यह निष्कर्ष नहीं निकला की यह पैसा बड़े उद्योगपतियों और जमाते-इस्लामी-हिन्द के डॉ. इकबाल के देख-रेख में चलाये जा रहे कोष से लिया गया है. हर इलाके में बन रही मस्जिद की कमेटी ने धन जुटाने के लिए एक पुख्ता रूपरेखा के तहत कार्य किया. वह या तो स्वयं के परिवारिक सदस्यों से लिया गया या व्यापक मुस्लिमन समाज से बाक़ायदा रसीद के द्वारा लिया गया. यही नहीं, सभी मस्जिदें वक्फ़ बोर्ड में पंजीकृत भी हैं.

पीयूसीएल की रिपोर्ट के अनुसार जिन उद्योगपतियों का नाम पत्र में लिया गया है, वे काफ़ी पहले से अपने समाज-हित कार्यों के लिए प्रसिद्ध हैं. मसलन हबीब गार्नेट द्वारा कैंसर अस्पताल, कारगिल युद्ध व सभी गैर-मुस्लिम धार्मिक कार्यक्रमों में खुली मन से सहयोग करते है. नईम क़ुरैशी जामा मस्जिद के सदर, राजस्थान होटल एसोसियेशन के वक्ता, रोटरी क्लब केन्द्रीय जयपुर के निदेशक व इण्डिया इस्लामिक सेन्टर दिल्ली के सदस्य है. उनके द्वारा चलाए जा रहे कल्याण कार्यक्रमों से सभी परिचित हैं. सिराज़ ताक़त बड़े जौहरी हैं और उनके अनुसार इस तरह के कार्यों से उनका कोई लेना-देना नहीं है. वे 85 लोगों के परिवारों को पाल रहे है और उसी में उनका पूरा वक्त गुज़रता है.

इस लिहाज़ से यह प्रश्न उठता है कि क्या राज्य इन्टेलिजेन्स के अतिरिक्त महानिदेशक ने जानबूझ कर यह पत्र निकाला व उसमें जानबूझ कर इन चुनिन्दा नामों का उल्लेख किया गया? पीयूसीएल की विज्ञप्ति में यही दावा किया गया है. बकौल विज्ञप्ति, चूंकि जमाते-इस्लामी-हिन्द मुस्लिम समुदाय पर हो रहे अत्याचारों के खिलाफ़ आवाज़ उठाता है, इसलिए यह मसला उन्हें कमजोर करने की कोशिश का हिस्सा है.

पीयूसीएल ने पत्र वापिस लिए जाने और इसे प्रसारित करने वाले लोगों के खिलाफ़ उचित कानूनी कार्यवाही करने की मांग उठायी है. चूंकि जयपुर पुलिस कमिश्नरेट से यह पत्र जनता के बीच आया है, इसलिए इसकी जांच भी की जाए कि किसने इस पत्र को सार्वजनिक किया और उनके खिलाफ भी उचित कार्यवाही की जाए. ज़ाहिर है कि इस मामले से जयपुर के सांप्रदायिक सौहार्द्र में संतुलन पैदा हो सकता था, इसलिए ऐसी कोशिशों और मामलों से सख्ती से निबटा जाए, ऐसी मांग पीयूसीएल ने की है.

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