बिहार चुनाव: दंगल में ओवैसी की दस्तक

अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net,

पटना: ‘ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन’ के नेता असदुद्दीन ओवैसी के ‘बिहार दांव’ को लेकर सियासी गलियारों में काफी हलचल है. ज़ेहन में एक ही सवाल है कि क्या ओवैसी वोटों की इस जंग में खुद उतरेंगे या किसी के कंधे पर अपना हाथ रखेंगे?


Support TwoCircles

जानकारों का मानना है कि दोनों ही सूरतों में बिहार के मुस्लिम वोटों का गणित काफ़ी हद तक प्रभावित हो सकता है. ओवैसी का बिहार जाना और सीमांचल के पिछड़ेपन पर बोलना किसी समाज-सेवा का हिस्सा नहीं, बल्कि इसके राजनीतिक मायने हैं.

ओवैसी आगामी 16 अगस्त को किशनगंज, बिहार के रूई धांसा मैदान में ‘क्रान्तिकारी जन-अधिवेशन’ को संबोधित करेंगे. यह अधिवेशन बिहार की ‘समाजी इंसाफ़ फ्रंट’ आयोजित कर रही है, जिसके असल कर्ता-धर्ता पूर्व विधायक अख़्तरूल ईमान हैं. अधिवेशन की तैयारी काफी ज़ोर-शोर पर है. बड़े-बड़े होर्डिंग, पोस्टर, बैनर व पम्पलेट्स के अलावा सोशल मीडिया व वीडियो के माध्यम से भी इसका प्रचार-प्रसार किया जा रहा है. इन प्रचारों में असदुद्दीन ओवैसी को क्रांतिकारी विचारधारा के महान नेता, ग़रीबों-पिछड़ों, दलितों और अल्पसंख्यकों के निडर, बेबाक, बेख़ौफ़, शेरदिल रहनुमा और नक़ीब-ए-मिल्लत बताया गया है.

इस प्रचार-प्रसार को देखने के बाद सियासी गलियारों में यह चर्चा ज़ोरों पर है कि ओवैसी की पार्टी बिहार के चुनावी दंगल में बस कूदने को तैयार है. हालांकि Twocircles.net के साथ विशेष बातचीत में असदुद्दीन ओवैसी ने कहा, ‘मैं बिहार ज़रूर जा रहा हूं. लेकिन पार्टी इस बार के बिहार चुनाव में हिस्सा लेगी या नहीं, हम चुनाव लड़ेंगे या नहीं लड़ेंगे, अभी इसका फ़ैसला पार्टी ने नहीं किया है.’


IMG-20150811-WA0000
ओवैसी के जन-अधिवेशन के तहत बांटे जा रहे पर्चे

मजलिस के विधायक इम्तियाज़ जलील बताते हैं, ‘यह बात सच है कि बिहार के कई लोग हमारे सम्पर्क में हैं. वे चाहते हैं कि पार्टी इस चुनाव में अपना उम्मीदवार खड़ा करे लेकिन पार्टी इन दिनों कर्नाटक म्यूनिसिपल कारपोरेशन के चुनाव में व्यस्त है. उसके ख़त्म होते ही पार्टी बिहार चुनाव के संबंध में फ़ैसला करेगी.’

वहीं बिहार के किशनगंज में आयोजित इस अधिवेशन के आयोजक पूर्व विधायक अख़्तरूल ईमान का कहना है, ‘इस अधिवेशन का कोई राजनीतिक मक़सद नहीं है. यह एक जन-अधिवेशन है, जिसका मक़सद सरकारों का सीमांचल के साथ किए गए ज़ुल्म व नाइंसाफ़ी से पूरे हिन्दुस्तान को रूबरू कराना है.’


TCN Bihar Election LOGO

प्रश्न रखने पर कि क्या आपके इस अधिवेशन से सेकुलर ताक़तों को नुक़सान नहीं होगा, ईमान गुस्से से कहते हैं, ‘किस सेकुलर जमात की बात कर रहे हैं, जिन्होंने भजनपुरा में निहत्थे अल्पसंख्यकों का क़त्ल करवाया और जिनके साथ आज तक न्याय नहीं किया गया. हालांकि हम सेकुलर लोगों की हिमायत करते हैं क्योंकि भाजपा को रोकना पूरे हिन्दुस्तान के नागरिकों की ज़िम्मेदारी है.’

किस पार्टी के टिकट से चुनाव लड़ने की बात पर पूर्व विधायक बड़ी चालाकी से यह कहते हुए टाल जाते हैं, ‘अभी हम चुनाव लड़ेंगे या नहीं, इसका फ़ैसला आवाम तय करेगी. जनता के साथ हमारा मशविरा चल रहा है.’
आगे पूर्व विधायक ईमान यह भी बताते हैं कि उनकी नज़र में ओवैसी देश के एक सेकुलर नेता हैं और भाजपा को रोकने के लिए हम सबको एक साथ आना होगा. जानकारों का कहना है कि ओवैसी के इस बिहार दौरे से फ़ायदा भाजपा जैसी पार्टियों का ही होगा.

बिहार के राजनीतिक मामलों के जानकार व अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के असोसियट प्रो. मो. सज्जाद बताते हैं, ‘ओवैसी का जो लहज़ा और उनकी राजनीतिक शैली है, उस पर यदि ग़ौर किया जाए तो स्पष्ट हो जाता है कि वह मुक़ाबिले की तरह साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण की राजनीति कर रहे हैं. ऐसे में इस समय यदि ओवैसी बिहार के उस इलाक़े में – जहां मोहन भागवत भी कुछ दिनों पहले जा चुके हैं – जाते हैं तो इसका सीधा फ़ायदा साम्प्रदायिक शक्तियों को ही मिलेगा.’

मो. सज्जाद आगे बताते हैं, ‘बिहार के लोगों में यह चर्चा आम है कि जीतन राम मांझी के साथ शाहिद अली खान व अख्तरूल ईमान जैसे लोग मिले हुए है. अख्तरूल ईमान मजलिस के साथ भी जुड़े हैं और जीतन राम मांझी किसके साथ जुड़े हैं, यह पूरी दुनिया जानती है. ऐसे में ओवैसी के इस आगमन का फ़ायदा भाजपा को मिलना तय है.’ हालांकि अख्तरूल ईमान इस आरोप को पूरी तरह से खारिज करते हैं.

इन सबके बीच यह बात भी सच है कि मुस्लिम वोटरों का एक तबक़ा ऐसा है, जो सभी बड़ी सियासी पार्टियों को आज़मा चुका है और उनके नतीज़े भी देख चुका है. ओवैसी की पार्टी इसी मानसिकता को भुनाने में ज़ोर-शोर से जुटी हुई है. महाराष्ट्र के बाद उत्तर प्रदेश चुनाव में जाने का ऐलान इसी सोच को भुनाने की एक कड़ी है.

ऐसे में हैरानी नहीं होनी चाहिए कि यदि इसी सिलसिले में एक क़दम और बढ़ाते हुए ओवैसी की पार्टी बिहार के चुनावी दंगल में अपने वजूद दर्ज करती है तो यह एक सोची-समझी रणनीति होगी, जिसके मानी भविष्य के सियासी समीकरणों में छिपे हुए हैं.

SUPPORT TWOCIRCLES HELP SUPPORT INDEPENDENT AND NON-PROFIT MEDIA. DONATE HERE