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मुस्लिम समुदाय : संख्या पर घमासान

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काशिफ़ उल हुदा, TwoCircles.net

बीते कुछ दिनों से समाचार चैनलों की सुर्खियां आंकड़ों के मुकाबिले ज्यादा बातें कर रही हैं. हाल में ही भारत सरकार ने 2011 में की गयी जनगणना के धर्माधारित आंकड़े सार्वजनिक किए हैं. इसके बाद से समाज में एक ख़ास और जाने-पहचाने किस्म का भय पसरा हुआ है, जिसे हवा देने में न्यूज़ चैनल कोई कोर-कसर बाकी नहीं छोड़ रहे हैं. ऐसे में जिस सबसे अधिक सनसनीखेज हेडलाइन से सामना हुआ, वह थी ‘हिन्दुओं की जनसंख्या में गिरावट’, जो सचाई से हर हाल में दूर है. किसी भी नतीजे पर पहुँचने से पहले यह ज़रूरी है कि हम जनसंख्या के इन आंकड़ों और हिन्दू-मुस्लिम समुदाय के असल आंकलन कर लें, ताकि अफ़वाह फैलाने को हमेशा एक साज़िश करार दिया जा सके.

आंकड़ों की ज़ुबान में बात करें तो 2011 की जनगणना के अनुसार भारत की आबादी 1.2 अरब के ऊपर है. यानी, साल 2001 की जनगणना के बाद से लेकर अब तक हमारी कुल जनसंख्या में 18 करोड़ 20 लाख की बढ़ोतरी हो चुकी है. यानी पिछली जनगणना से अब तक हमारी आबादी में 17.7 प्रतिशत की बढ़त हुई है. यह बात भी जानने योग्य है कि साल 1961 से लेकर अब तक के वक़्त में पहली बार हमारी जनसंख्या वृद्धिदर 20 प्रतिशत से भी कम है. इसे जनसंख्या को संतुलित करने की दिशा में एक बड़ा कदम माना जाना चाहिए. लिंगानुपात के सन्दर्भ में बात करें तो साल 2011 की जनगणना खुश होने के और भी मौके देती है. साल 2011 के मुताबिक प्रति 1000 पुरुषों पर 942 स्त्रियां हैं. यह आंकड़ा हमारे अभीष्ट के करीब नहीं है लेकिन 1951 के बाद से पहली बार लिंगानुपात में कोई सुधार हुआ है, जिससे यह सोचा जा सकता है कि हम सही दिशा में बढ़ रहे हैं.

अखबारों और टीवी चैनलों पर प्रायोजित-अप्रायोजित खबरें चलाई जाने लगीं. इन खबरों की भाषा और कहन का एक ही मकसद निकलता मालूम हो रहा था कि यदि हिन्दू नहीं चेते तो आने वाले समय में अल्पसंख्यक और मुसलमान बहुसंख्यक हो जाएंगे. ऐसे में प्रश्न उठना लाज़िम है कि मुस्लिम समुदाय भारत में कब तक बहुसंख्यक बन पाएगा?

अब तक सभी जान चुके हैं कि देश की जनसंख्या में हिन्दुओं का प्रतिशत 79.8 तो वहीँ मुस्लिमों का प्रतिशत 14.23 है. 2001 के बाद से हिन्दू समुदाय की जनसंख्या में 13.8 करोड़ की वृद्धि हुई है, यह बढ़त लगभग उतनी ही है जितनी साल 2001 में मुस्लिम समुदाय की कुल आबादी थी. इसे दूसरी तरह से देखने पर एक रोचक दृश्य सामने आता है. 13.8 करोड़ की जनसंख्या को प्राप्त करने में जहां मुस्लिम समुदाय को 1400 साल लग गए, वहीँ हिन्दू समुदाय को इस आंकड़े को छूने में महज़ 10 साल लगे. यहां भारत-पाकिस्तान बंटवारे को भी याद रखना चाहिए. पिछले दस सालों में 3.4 करोड़ – जो उत्तर प्रदेश की कुल मुस्लिम आबादी है – की बढ़ोतरी करने के बाद मौजूदा वक़्त में मुस्लिम आबादी 17.2 करोड़ है.

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96.6 करोड़ की हिन्दू आबादी में 51.6 प्रतिशत पुरुष तो 48.4 प्रतिशत महिलाएं शामिल हैं. वहीँ दूसरी ओर 17.2 करोड़ की मुस्लिम आबादी में 51.2 प्रतिशत पुरुष तो 48.8 प्रतिशत महिलाएं शामिल हैं. यानी स्त्री बनाम पुरुष के आंकड़ों के परिप्रेक्ष्य में मुस्लिम समुदाय में लिंगानुपात ज्यादा बेहतर है.

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2001 के बाद से हुई जनसंख्या वृद्धि में लड़कियों के आंकड़ों में लड़कों के मुकाबिले ज्यादा बेहतरी हुई है. साल 2001 के बाद से मुस्लिम समुदाय में 1000 लड़कों पर 1015 लड़कियों की बढ़ोतरी हुई है, वहीँ हिन्दू समुदाय में यह संख्या 1000 लड़कों पर 991 लड़कियों की ही है. इससे भी तस्दीक न हो तो, आगे देखें.

यदि एक करोड़ से ऊपर की जनसंख्या वाले राज्यों को देखें तो पता चलता है कि इन 20 में से 13 राज्यों में मुस्लिम समुदाय में लिंगानुपात बेहतर है. आंध्र प्रदेश, असम, कर्नाटक, पंजाब, उत्तराखंड और दिल्ली राज्यों में हिन्दू समुदाय में लिंगानुपात मुस्लिम समुदाय के मुकाबिले बेहतर है.

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लेकिन भारत को एक सम्पूर्ण निकाय के रूप में देखते हुए बात करें तो आंकड़ों के बीच पसरे धार्मिक अंतर गायब हो जाते हैं. यदि राज्यवार जनसंख्या के आंकड़ों को देखें तो पता चलता है कि जिन राज्यों की जनसंख्या सबसे अधिक है, उन राज्यों के मज़हबी आंकड़ों में अंतर साफ़ हैं.

ऊपर दिए गए चार्ट में इस बात को दिखाने की कोशिश की गयी है. काले रंग के स्तंभ कुल जनसंख्या, नारंगी रंग के स्तंभ हिन्दू जनसख्या व हरे रंग के स्तंभ मुस्लिम जनसंख्या दिखा रहे हैं. पाठक यहां साफ़ तौर पर देख सकते हैं कि उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार, पश्चिम बंगाल और आंध्र प्रदेश में जनसंख्या का घनत्व सबसे अधिक है. यहां यह भी साफ़ पता चलता है कि हिन्दू समुदाय की जनसंख्या के मुक़ाबिले मुस्लिम जनसंख्या की क्या स्थिति है, ऐसे ‘मुस्लिमों द्वारा अपनी संख्या के बल पर हिन्दुओं पर विजय’ प्राप्त करने की प्रचलित थ्योरी का भी खंडन होता है.

2001 के बाद से आई जनसंख्या में बढ़ोतरी को देखने से पता चलता है कि केरल और असम को छोड़कर किसी भी राज्य में मुस्लिम जनसंख्या हिन्दू जनसंख्या के आसपास भी नहीं फटकती है. उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, राजस्थान और मध्य प्रदेश में मुस्लिम आबादी में बढ़ोतरी हिन्दू आबादी में बढ़ोतरी के एक-तिहाई से भी कम है. केवल पश्चिम बंगाल भारत का ऐसा राज्य है, जहां मुस्लिम और हिन्दू आबादी लगभग बराबर है लेकिन जनसंख्या के पायदान पर पश्चिम बंगाल छठवें स्थान पर खड़ा है.

कमज़ोर कड़ियां

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यदि राज्यों में मुस्लिम आबादी की हिस्सेदारी की बात करें तो उत्तर प्रदेश(22.3%), पश्चिम बंगाल(14.3%), बिहार(10.2%), महाराष्ट्र(7.5%) और असम(6.2%) की मुस्लिम आबादी देश की कुल मुस्लिम आबादी का 60 फीसद हिस्सा बनाती हैं. और इन पांच राज्यों में असल, बिहार और पश्चिम बंगाल सभी समुदायों के लिए सबसे गरीब राज्य साबित हो चुके हैं.

यह साबित हो जाता है कि इन राज्यों की स्थिति में सुधार, नीति-नियामकों की सुविधा और हर समुदाय की बेहतरी के लिए मुस्लिम संगठनों को आगे आना होगा. मीडिया के तमाम इंटरप्रिटेशन पर भरोसा करने से स्थिति और धूमिल हो जाती है और समाज व धर्म की असल सचाई से सामना नहीं हो पाता है.

आंकड़ों को समझने का दावा करने वाले लोगों का बड़ा हिस्सा ऐसा है जो ‘जनसंख्या’ और ‘जनसंख्या की वृद्धि-दर’ में अंतर नहीं जानता है. उसके लिए वृद्धि दर का गिरना जनसंख्या का गिरना है. बहरहाल, सभी आंकड़ों और ज़मीनी तथ्यों को सामने रखते हुए, जहां तक बात है कि क्या मुस्लिम कभी बहुसंख्यक होंगे? तथ्य कहते हैं ‘कभी नहीं.’