पंच-नामा: हाशिमपुरा, असुरक्षित मुस्लिम, ‘मन की बात’, मुफ़्ती और अमित शाह

By TwoCircles.net Staff Reporter,

क्या है वे पांच बड़ी खबरें और उनके पीछे की कहानियां, जिनसे बहुत कुछ प्रभावित होता और जो आपको कहीं नहीं मिलेंगी…


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1. किसने कहा कि नरेन्द्र मोदी की सरकार में मुस्लिम असुरक्षित?

जयपुर में ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की तीन दिनी बैठक के बाद यह बात सामने आई कि जब से केन्द्र में नरेन्द्र मोदी की सरकार बनी है, तब से मुस्लिम समुदाय असुरक्षित महसूस कर रहा है. बोर्ड के प्रवक्ता ने यह बातें मीडिया से बातचीत में कहीं. बोर्ड एक ‘संवैधानिक अधिकार संरक्षण समिति’ के गठन के बारे में विचार कर रहा है, जिसे तहत मुस्लिम समुदाय के लोगों को उनके मौलिक-संवैधानिक अधिकारों से परिचित कराया जाएगा. कई मुद्दे मालूम होते हैं, जिनके तहत बोर्ड की नाराज़गी और इस बयान का मतलब निकाला जा सकता है. ‘घर वापसी’ मुद्दे पर नरेन्द्र मोदी की चुप्पी, सूबे दर सूबे गोमांस पर लगता बैन, स्कूलों में योग व सूर्य नमस्कार की अनिवार्यता, हिंदूवादी शक्तियों का उत्पात….समाज में ऐसे उठते मुद्दों से किसी का भी नाराज़ होना लाज़िम है.

2. हाशिमपुरा नरसंहार फ़ैसला – 10 अभियुक्त दे रहे पुलिस को सेवाएं

‘इंडियन एक्सप्रेस’ के हवाले से आई एक खबर का भरोसा करें तो यह पता चलता है कि हाशिमपुरा क़त्ल-ए-आम के सोलह अभियुक्तों में से 10 पीएसीकर्मी सुनवाई के दौरान उत्तर प्रदेश पुलिस को अपनी सेवाएं भी मुहैया करा रहे थे. दरअसल साल 2000 में आत्मसमर्पण के बाद सभी 19 पीएसी के जवानों को ज़मानत पर छोड़ दिया गया था, लेकिन मामला अदालत में जारी रहा. इनमें से तीन की मौत हो गयी और बच गए सोलह में से छः ने त्यागपत्र दे दिया या सेवानिवृत्त हो गए. बचे हुए दस जवानों को अलग-अलग जिलों में तैनाती पर लगाया गया. कम्पनी स्तर पर बस उन्हें इतनी सजा ही मिली कि कुछ वक्त तक उन्हें सस्पेंड किया गया और मामला अदालत में लंबित रहने की अवधि तक उनके पदोन्नति पर भी रोक लगा दी गयी. उत्तर प्रदेश पुलिस के कई आला अधिकारी इसे सही भी मानते हैं, लेकिन मानवीय नज़रिए से देखें तो पीएसी का यह कदम पचने से दूर है.

3. ‘मन की बात’ – क्यों, कैसा और कितना?

बीते रोज़ प्रधानमंत्री ने किसानों से मन की बात की. जब से भूमि अधिग्रहण बिल के मौजूदा मसविदे को मौजूदा सरकार सभी के सामने लेकर आई तभी से इसका पुरज़ोर विरोध शुरू हो गया. पहली बार इतना भयानक विरोध झेल रही नई-नवेली सरकार को समझ आ गया कि वह जनता पर किसी भी किस्म का कोई फ़ैसला थोप नहीं सकती है. जनता की राय जानने, मसविदे में मुमकिन बदलाव करने, कमेटी का गठन करने जैसी बातें सामने आईं. पता चला कि भाजपा अध्यक्ष अमित शाह इसमें किसानों की राय लेने में लगे हुए हैं. लेकिन भाजपा द्वारा यूट्यूब पर ‘लैंड बिल’ का विज्ञापन दिया जाना और सिर्फ़ इसी मुद्दे को लेकर रेडियो वार्ता आयोजित करना किसानों को लुभाने का प्रपंच दिख रहा है. नरेन्द्र मोदी ने विपक्ष पर ‘भ्रम फ़ैलाने’ का आरोप लगा दिया है. उन्होंने इस बात को प्रसारित करने की कोशिश की कि जो लोग किसानों को भड़का रहे हैं, वे खुद इस पर कुछ भी बोलने को तैयार नहीं हैं. जानकार कहते हैं कि बिल की बारीकियों पर चर्चा करने के बजाय प्रधानमंत्री ने भावनात्मक स्तर पर किसानों को बरगलाने का प्रयास किया है. मज़ेदार बात यह है कि प्रधानमंत्री ने आरोप लगाया कि हरियाणा की पिछली कांग्रेस सरकार ने किसानों का मुआवज़ा आधा कर दिया लेकिन आम आदमी पार्टी के योगेन्द्र यादव ने अपने फेसबुक पेज पर यह साफ़ कर दिया कि किसानों का मुआवज़ा नवंबर 2014 में भाजपा सरकार ने ही आधा किया था.

4. क्या मुफ़्ती सरकार भाजपा को पूरी तरह से नज़रंदाज़ करने की तैयारी में है?



(Courtesy: IE)

जम्मू-कश्मीर में हाल ही में अपनी थोड़ी-सी जगह बनाने में सफल हुई भाजपा के लिए दिन अभी ‘अच्छे’ नहीं हुए हैं. कुछ दिनों पहले पीडीपी-भाजपा के गठबंधन वाली जम्मू-कश्मीर सरकार ने अलगाववादी नेता मसरत आलम को रिहा करने का फ़ैसला किया तो संसद में भाजपा की भयानक किरकिरी हुई. भाजपा के लिए मामला गले की हड्डी सरीखा हो गया था, न निगलते बने और न ही उगलते. अब स्वायत्तता की जद्दोज़हद में एक नया मामला सामने आया है. केन्द्र के साथ राज्यों में भी बजट सत्र का मौसम चढ़ा हुआ है. जम्मू-कश्मीर में 46,473 करोड़ रुपयों का बजट वित्तमंत्री ने जब पेश किया तो उन्होंने यह भी कहा कि सारे प्रस्तावित और गैर-प्रस्तावित खर्च का इंतज़ाम वे करेंगे और कोशिश होगी कि किसी भी आर्थिक मदद के लिए केन्द्र के सामने भीख का कटोरा लेकर न पहुंचा जाए. उन्होंने यह भी कहा है कि संवैधानिक तरीके से जो भी केन्द्र से हमारा हक़ बनता है उसे छोड़कर सभी खर्च हम खुद ही मैनेज करने की कोशिश करेंगे.

5. उत्तर प्रदेश में अमित शाह क्या करेंगे?

दिल्ली में भाजपा के बुरे तरीके से पिट जाने के बाद भाजपा अध्यक्ष अमित शाह कोई भी रिस्क लेने को तैयार नहीं है. देखकर लगता है कि वे दो साल बाद होने वाले उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों को लेकर अभी से तैयारी करने में जुटे हुए हैं. वे कल प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में एक रैली को संबोधित कर रहे थे. इस रैली में भाजपा अध्यक्ष ने यह संकेत दिया कि वे उत्तर प्रदेश में भाजपा के रणनीतिक दल में एक बड़ा फेरबदल कर सकते हैं. ऐसा इसलिए भी सम्भव है क्योंकि कुछेक महीनों पहले ही वाराणसी में भाजपा के नगर अध्यक्ष को बदल दिया गया. रैली में उन्होंने दलितों और पिछड़ी जातियों के लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि वे अपने को भाजपा को सौंप दें. शायद मतलब यह हो कि भाजपा अब समाज के इस तबके का ख़याल रखेगी. लेकिन यह बात भी ध्यान देने की है कि भाजपा या कांग्रेस के अब तक के शासनकाल में इन्हीं तबकों का सबसे बड़ा नुकसान हुआ है. इसी वजह से दलित और अन्य पिछड़ा वर्ग क्षेत्रीय व प्रादेशिक पार्टियों पर ज़्यादा निर्भर है.

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