देश में सूखा: मरते इंसान, बेबस सरकार

मोहम्मद आसिफ़ इक़बाल

मराठवाड़ा के बीड़ इलाके के साबलखेड़ गांव में रविवार को एक बच्ची की पानी भरने के दौरान मौत हो गई. रविवार होने के कारण 11 साल की योगिता के स्कूल में छुट्टी थी, हर छुट्टी के दिन योगिता अपने घर से लगभग 400 मीटर की दूरी पर बने एक हैंडपंप से पानी लाने जाती थी. वह हैंडपंप और घर के बीच करीब 8 से 10 चक्कर लगाती थी और हर चक्कर में करीब 10 लीटर पानी ले जाती थी. इस बार भी छुट्टी के दिन वह पानी लाने गई थी. एक चक्कर लगा लिया था, लेकिन जब दूसरी बार गई तो वापस नहीं आ पाई. गांव के कुछ लोगों ने बताया कि योगिता हैंडपंप के पास ही बेहोश हो गई थी. योगिता के चाचा ईश्वर देसाई ने बताया, ‘करीब 4 बजे हमें बताया गया कि योगिता बेहोश हो गई है. हम उसे अस्पताल ले गए, जहां डॉक्टर ने उसे पानी चढ़ाया, लेकिन उसकी मौत हो गई.’


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आजकल जिस तरह देश के विभिन्न राज्यों में पानी की कमी एक महत्त्वपूर्ण मुद्दा बना हुआ है, यदि उस पर ध्यान नहीं दिया गया तो संभव है निकट भविष्य में देशवासी अधिक समस्याओं का सामना करने के लिए मजबूर हो जाएं. इसलिए इस समस्या को नजरंदाज नहीं किया जाना चाहिए. इसके बावजूद लगता ऐसा ही है जैसे हमारे राजनेता इस समस्या से उतना राब्ता नहीं रखते हैं, जितना ज़रूरी है.

सूखे की इस विकराल समस्या में सुप्रीम कोर्ट के दखल से भी कुछ बातें सामने आईं हैं जो ध्यान देने योग्य हैं. केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को कहा कि भीषण अकाल से जूझ रहे दर्जनभर राज्यों में करीब 33 करोड़ लोग रहते हैं. सूखे से निपटने के संबंध में कड़े सवालों का सामना कर रही सरकार ने कहा कि 256 जिले सूखे से प्रभावित हैं और वहां देश की जनसंख्या से एक तिहाई से अधिक लोग रहते हैं. सरकारी वकील एडिशनल सॉलिसिटर जनरल पीए नरसिम्हा ने कहा, ‘इन इलाकों में रहने वाले लोगों की संख्या 33 करोड़ हो सकती है लेकिन इन जिलों में सूखे से प्रभावित होने वालों की असल संख्या सकल जनसंख्या के आकंड़ों से कम होने की संभावना है. लेकिन, सूखे से प्रभावित लोगों की कुल संख्या इस संख्या से अधिक हो सकती है क्योंकि हरियाणा और बिहार ने कम बरसात के बावजूद अभी तक संकट की घोषणा नहीं की है.’

गुजरात के संबंध में कोर्ट ने कहा कि हलफनामा क्यों नहीं दिया गया? अदालत ने सूखे की स्थिति पर एक शपथ पत्र के बजाय एक टिप्पणी प्रस्तुत करने को लेकर गुजरात को आड़े हाथों लिया. कोर्ट ने सख्त लहजे में पूछा कि आपने हलफनामा दाखिल क्यों नहीं किया? चीजों को इतना हल्के में न लें. सिर्फ इसलिए कि आप गुजरात हैं, इसका मतलब यह नहीं कि आप कुछ भी करेंगे.

कोर्ट ने यह भी कहा कि यह केंद्र की जिम्मेदारी है कि वह सूखा प्रभावित राज्यों को सूचित करे और चेतावनी दे कि वहां कम बारिश होगी. जज ने कहा, ‘अगर आपको बताया जाता है कि किसी राज्य के एक खास हिस्से में फसल का 96 फीसदी हिस्सा उगाया जाता है लेकिन आपको यह सूचना मिले कि वहां कम बारिश होगी, तो उन्हें यह मत कहिए सब ठीक है. बल्कि इन राज्यों को बताइए कि वहां सूखा पड़ने की संभावना है.’

इन परिस्थितियों में सरकार ने उत्तर प्रदेश को राष्ट्रीय आपदा राहत निधि के अंतर्गत सूखा राहत के लिए 1304 करोड़ रुपए की राशि को मंजूरी दी. बुंदलेखंड में 1987 के बाद यह 19वां सूखा है. यहां पिछले छह साल में 3,223 किसान आत्महत्या कर चुके हैं. महाराष्ट्र में 2004 से 2013 के बीच के 10 साल में 36,848 किसानों ने आत्महत्या की. इस साल भी विदर्भ और मराठवाड़ा में मौत का यह तांडव जारी है. ऐसे ही कुछ हालात उत्तर प्रदेश, बिहार, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश सहित देश के कम से कम दस राज्यों हैं. प्रकृति प्रदत्त चुनौतियों के आगे सरकारें बेबस नजर आ रही हैं.

योगिता के डेथ सर्टिफिकेट में लिखा है कि उसके दिल और फेफड़ों ने काम करना बंद कर दिया था, जिस कारण योगिता की मौत हो गई. इसकी वजह हीट स्ट्रोक और शरीर में पानी की भारी कमी बताई जा रही है. योगिता के चाचा ने यह भी कहा कि हैंडपंप में बहुत कम पानी आता है और लंबी कतार लगी रहती है, इसलिए पानी के लिए घंटों इंतज़ार करना पड़ता है. मराठवाड़ा में सिर पर पानी के घड़े रखे हुए औरतें और बच्चे एक आम नजारा हैं. भयंकर सूखे के कारण मीलों दूर से पानी लाने की जिम्मेदारी औरतों और बच्चों की है.

इस क्षेत्र में भी भयंकर सूखा पड़ा है, पानी लेने के लिए दूर-दूर जाना पड़ता है और नल के पास एक घड़ा पानी भरने के लिए घंटों इंतजार करना होता है. गौर फरमाइए, जहां तापमान 44 डिग्री हो, सिर पह कोई छांव न हो और थका हुआ नल अधिक ताकत लगाने के बाद भी कम पानी निकालता हो, वहां योगिता जैसी नन्हीं जानों पर क्या गुज़रती होगी. मगर यह खबर शीर्षक इसलिए नहीं बन सकी क्योंकि वह एक गरीब गुमनाम परिवार की बच्ची थी. वह कोई सेलेब्रिटी नहीं थी, जिस पर समय बर्बाद किया जाए. वह सूखे से मर जानेवाला एक और उदाहरण थी. हमारे नेता सूखा प्रभावित क्षेत्रों की यात्रा करते समय सेल्फी लेना नहीं भूलते कि पानी के प्यासे फटे कपड़ों के साथ कैसे लगते हैं. हेलीपैड बनाने के लिए हजारों लीटर पानी बहा देते हैं और नहीं कोई पूछता कि ऐसा क्यों किया गया?

इन परिस्थितियों में केवल सरकार ही नहीं बल्कि इंसानों से प्यार और सहानुभूति रखने वाले हर नागरिक को सूखा पीड़ितों की हरसंभव मदद करनी चाहिए. यह मदद पास रहकर भी की जा सकती है और दूर रहकर भी. जरूरत है तो एक ऐसे दिल की जिसमें लोगों के दुख दर्द को महसूस करने की क्षमता हो.

[आसिफ़ दिल्ली में रहते हैं. पत्रकार हैं. उनसे [email protected] पर संपर्क किया जा सकता है.]

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