बीएचयू रेप केस: देर से हुई मेडिकल जांच, नहीं मिले बलात्कार के सबूत

सिद्धांत मोहन, TwoCircles.net

वाराणसी: 13 अगस्त को काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में हुए एक छात्र के कथित सामूहिक बलात्कार के बाद मामले की पेचीदगियां बढ़ती जा रही हैं. घटना के दस दिनों बाद आज जाकर हुए पीड़ित छात्र अंकित तिवारी(बदला हुआ नाम) के मेडिकल परीक्षण में बलात्कार की पुष्टि नहीं हो सकी है. हालांकि इस रिपोर्ट में यह बात ज़रूर स्वीकारी गयी है कि शरीर के अन्दर मौजूद मांस नाज़ुक अवस्था में हैं.


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BHU Rape Victim 2016
पीड़ित छात्र अंकित(बदला हुआ नाम)

जानकारी देना आवश्यक है कि इस मामले में पीड़ित छात्र अंकित जब घटना के अगले दिन लंका स्थित पुलिस स्टेशन एफआईआर दायर करने पहुंचे, तो उन्हें पुलिस और विश्वविद्यालय के कर्मचारी तीन दिनों तक भटकाते, डराते और भ्रमित करते रहे. अंकित बताते हैं कि वे घटना के अगले दिन से मेडिकल जांच की मांग कर रहे हैं लेकिन बाहरी जांच के लिए घटना के चार दिनों बाद 17 अगस्त के लिए उन्हें भेजा गया.

अंकित का आरोप है कि बाहरी जांच के दौरान उनकी जांच नहीं की गयी और इसके बाद रिपोर्ट लगा दी गयी. इसके बाद अंदरूनी जांच के लिए उन्हें मंडलीय चिकित्सालय भेजा गया. चार दिनों तक वे मंडलीय चिकित्सालय भटकते रहे, लेकिन उन्हें यहां स्थित डॉक्टरों द्वारा बहकाया जाता रहा. आखिरकार आज जब अंकित मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और कुछेक साथियों के साथ पहुंचे, तब काफी नोंक-झोंक के बाद डॉक्टर उनकी अंदरूनी जांच के लिए तैयार हुए.

इस जांच की रिपोर्ट – जिसकी एक प्रति TwoCircles.net के पास मौजूद है – में पीड़ित के शरीर पर किसी किस्म के घाव नहीं पाए गए हैं, न ही किसी किस्म के छिलने-कटने के निशान ही मौजूद हैं. अंकित के बयान पर गौर करें तो बलात्कार के दौरान उनके गुदाद्वार में जलती हुई सिगरेट भी डाली गयी थी. इसके घाव अंकित के शरीर के अंदरूनी हिस्सों में मौजूद भी हैं, लेकिन मेडिकल रिपोर्ट में इसका ज़िक्र कहीं नहीं है.

मंडलीय चिकित्सालय के एक डॉक्टर नाम न प्रकाशित करने की शर्त पर बताते हैं, ‘बाहरी जांच कायदे से नहीं की गयी है. शरीर के बाहरी हिस्से पर ही सिगरेट से जलने के दाग मौजूद हैं, लेकिन मंडलीय चिकित्सालय में सिर्फ अंदरूनी जांच के लिए ही रेफर किया गया है. इस वजह से ही सकता है कि इसे रिपोर्ट में नहीं लिखा गया है.’ उनका आगे कहना है, ‘रेप के केस में सबसे सही तरीके से जांच घटना के 48 घंटों के भीतर ही होती है. लेकिन यहां मामला दस दिनों के बाद आ रहा है. इतना लंबा वक़्त अंदरूनी घावों और चोटों के भरने के लिए काफी होता है.’

इस मामले में अंकित का ही नहीं, विशेषज्ञों का भी यही कहना है कि अंकित की जांच में देर हुई है, अन्यथा कुछ मजबूत साक्ष्य जुटाए जा सकते थे. अंकित कहता है, ‘मैं पहले दिन से अपनी जांच के लिए थाने दौड़ रहा हूं. लेकिन वहां मौजूद पुलिसकर्मी मुझे बेज्जत करने और गालियां देने के अलावा और कोई काम नहीं कर रहे हैं. अब समझ में नहीं आ रहा है कि आगे क्या करूं?’

इस मामले में एक नामज़द और चार अज्ञात लोगों के खिलाफ एफआईआर केवल एक धारा 377 के अंतर्गत दायर की गयी है, लेकिन गिरफ्तारी एक भी नहीं. पुलिस का कहना है कि विवेचना के बाद ही गिरफ्तारी करेंगे या पहले ही कर लें?

विश्वविद्यालय प्रशासन इस मामले को झूठा करार दे रहा है. यदि विश्वविद्यालय के दावे को सच भी मान लिया जाए तो भी इसकी जांच की गति भयानक रूप से धीमी है. इसकी जांच से यदि कोई दोषी साबित होता हो या निर्दोष, जांच की गति कुछ भी करवाने के लिए बाध्य कर सकती है.

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