Home Indian Muslim बीएचयू बलात्कार मामला: देर होती न्याय प्रक्रिया, आरोपी ने नहीं किया इनकार

बीएचयू बलात्कार मामला: देर होती न्याय प्रक्रिया, आरोपी ने नहीं किया इनकार

सिद्धांत मोहन, TwoCircles.net

वाराणसी: सर्वविद्या की राजधानी का तमगा माथे पर चिपकाए हुए संस्थान काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की प्रशासनिक सीमा यहीं तक है कि विश्वविद्यालय के छात्र अंकित तिवारी(बदला हुआ नाम) के विश्वविद्यालय के ही एक कर्मचारी द्वारा बलात्कार की जांच पिछले 14 दिनों से लटकी हुई है.

पीड़ित छात्र अंकित के मुताबिक़ बीते 13 अगस्त की रात को को चिकित्सा विज्ञान संस्थान में लैब अटेंडेंट दीपक कुमार ने अपने अन्य चार साथियों के साथ मिलकर बंद कार में अंकित का बलात्कार किया था. घटना के दस दिनों बाद हुई मेडिकल जांच में दुष्कर्म की पुष्टि नहीं हुई है और साथ ही साथ जांच की विधियों में लापरवाही की बातें सामने आ रही हैं.

इस मामले में जब हमने आरोपी दीपक कुमार का पक्ष जानना चाहा तो अजीबोगरीब बातें सामने आती रहीं. सबसे पहले हम 24 अगस्त को दीपक कुमार की लैब में उनसे मिलने पहुंचे. दीपक कुमार तो नहीं मिले लेकिन उनके दस से अधिक सहकर्मियों ने घेरकर दीपक कुमार का पक्ष सामने रखा. उसी दिन हम तीन बार अलग-अलग वक़्त पर दीपक कुमार से मिलने उनकी लैब गए तो सभी लोगों ने यह कहा कि वे किसी काम से गए हैं और अभी वापिस नहीं आ सके हैं.


BHU Rape accused Deepak Kumar
आरोपी दीपक कुमार

इसके बाद ठीक अगले दिन यानी 25 अगस्त को दीपक कुमार की लैब में पहुँचने पर भी यही बात सामने आई. सहकर्मियों ने पक्ष रखा लेकिन कहा कि आज जन्माष्टमी की छुट्टी है, इसलिए दीपक कुमार आज ड्यूटी पर नहीं आए हैं. रोचक बात यह है कि इस दिन दीपक कुमार को छोड़कर बाकी सभी कर्मचारी ड्यूटी पर मौजूद दिखे.

ठीक अगले दिन यानी 26 अगस्त को भी आरोपी दीपक कुमार के साथियों ने जानकारी दी कि वे किसी काम से बाहर गए हैं. लेकिन उन्होंने इस बार यह भी कहा कि यदि उनसे मुलाक़ात करनी है तो विश्वविद्यालय के कुलपति से आदेश लेकर आने होंगे.

यानी एक तरह से आरोपी दीपक कुमार ड्यूटी पर होकर भी ड्यूटी पर नहीं मौजूद थे. उन्हें मीडिया से बात करने देने पर मनाही है.

बहरहाल, काफी कोशिशों के बाद आरोपी दीपक कुमार से फोन पर बात हो सकी. फोन पर दीपक कुमार ने ख़ास बात नहीं की लेकिन कहा कि उन्होंने अपना बयान विश्वविद्यालय के चीफ प्रॉक्टर को लिखा दिया है, वही उनका आधिकारिक बयान है. हमने उनसे पूछा कि क्या आप इतना कह पाने भर की स्थिति में नहीं हैं कि आपने कोई बलात्कार नहीं किया है? इस पर उन्होंने कुछ नहीं कहा. उनके अनुसार उन्होंने जो भी कहा है वह सब उनके बयान में दर्ज है.

आरोपी दीपक कुमार के सहकर्मी पीड़ित छात्र पर आरोप लगाते हैं कि उसने यह सब पैसे के लिए किया है. लेकिन वे आरोपी का कोई मजबूत पक्ष पेश कर पाने में असफल साबित होते हैं. आरोपी दीपक कुमार भी अपने ऊपर लगे आरोपों का कोई खंडन नहीं करते हैं. एक तरह से यह चुप्पी मामले की विश्वसनीयता को और पुख्ता कर देती है.

काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के चीफ प्रॉक्टर प्रोफ़ेसर सत्येंद्र सिंह से मिलने पर बयान की प्रति तो नहीं मिली, लेकिन एक बात साफ़ हो गयी कि विश्वविद्यालय में मौजूद प्रॉक्टोरियल बोर्ड का काम सिर्फ बीच-बचाव तक ही सीमित है. सुरक्षा से सम्बंधित किसी भी प्रशासनिक कार्रवाई के लिए विश्वविद्यालय प्रशासन ही जिम्मेदार है. इस बारे में प्रो. सत्येंद्र सिंह कहते हैं, ‘आप मेरी बातों का जो मतलब निकालना चाहें, लगा सकते हैं लेकिन मैं कोई बयान नहीं दूंगा.

विश्वविद्यालय के सभी कर्मचारी बयान न देने के लिए नियमों के तहत बाध्य हैं. हम बयान नहीं दे सकते हैं, लेकिन फिर भी आपको विश्वविद्यालय का कोई पक्ष जानना है तो आप जनसंपर्क अधिकारी से संपर्क कीजिए.’ पीड़ित छात्र को लेकर प्रशासनिक तबके में एक निश्चित दृष्टिकोण बन चुका है. प्रो. सत्येंद्र सिंह कहते हैं, ‘आप देखिए. पीड़ित छात्र घूम-घूमकर मीडिया में बयान दे रहा है लेकिन आरोपी कर्मचारी किसी से भी बात नहीं कर रहा है. आप खुद ही समझ लीजिए कि क्या मामला है?’

हालांकि बयान न दे पाने की स्थिति में इस समय लगभग विश्वविद्यालय का हरेक कर्मचारी है. सबके पास एक ही बहाना है कि वे विश्वविद्यालय के नियमों के तहत बंधे हुए हैं, उन्हें मीडिया से बात करने पर पाबंदी है.

इस बलात्कार की दुर्घटना की पहली रिपोर्ट में हमने ज़िक्र किया था कि जनसंपर्क अधिकारी ने बयान देते हुए कहा था, ‘उस लड़के का कोई बलात्कार-वलात्कार नहीं हुआ है. मानसिक रूप से बीमार है. तभी इधर-उधर बयान देता हुआ फिर रहा है.’

न्याय के लिए विश्वविद्यालय के छात्रों का प्रदर्शन


.

इस मामले की जांच में बरते जा रहे ढीलेपन को देखते हुए कल विश्वविद्यालय के कुछ छात्रों ने एक निष्पक्ष जांच की मांग रखी है. आइसा से जुड़ी प्रज्ञा पाठक और ऐपवा की कुसुम वर्मा ने कहा है कि मामले की निष्पक्ष जांच के लिए एक कमेटी बनायी जानी चाहिए. जांच पूरी होने तक आरोपी कर्मचारी को निलंबित किया जाए और पीड़ित छात्र को सुरक्षा मुहैया करायी जाए.

इस मामले में दायर किए गए एफआईआर में सिर्फ समलैंगिकता से जुडी हुई धारा 377 लगायी गयी है, जबकि पीड़ित को मारने-पीटने-ज़हरीला पदार्थ सुंघाने और बाद में धमकाने से जुड़ी धाराओं को कहीं शामिल नहीं किया गया है.

इस मामले में एक बात तो साफ़ हो रही है कि छात्र के यौन उत्पीड़न के मामले में यूनिवर्सिटी प्रशासन बेहद मुस्तैदी से लेटलतीफी कर रहा है. प्रॉक्टोरियल बोर्ड द्वारा दोनों पक्षों के बयान लिए जा चुके हैं और उसे प्रशासनिक कार्रवाई के लिए सौंप दिया गया है. लेकिन फिर भी इस मामले में दिनोंदिन हो रही देरी से चीज़ें और भी संदेहास्पद होती जा रही हैं.