बसपा की सिरदर्द बनी बुढ़ाना विधानसभा, 5 माह में चौथी बार बदला गया प्रत्याशी

आस मोहम्मद कैफ, TwoCircles.net

मुज़फ्फरनगर : बुढ़ाना विधानसभा पर अब एक बार फिर बसपा ने अपना प्रत्याशी बदल दिया है. यह वही विधानसभा है जहां से हाल ही में पूर्व सांसद मनव्वर हसन के भाई कंवर हसन ने टिकट काटे जाने पर बसपा सुप्रीमो पर सजदा कराने का इल्ज़ाम लगाया गया था, इससे पहले के प्रत्याशी आरिफ जोला का नाटकीय अपहरण गाथा के चलते और नईम मलिक का ‘सिद्दीक़ी सलाम’ में कोताही के चलते टिकट काटा गया था, अब मुज़फ्फरनगर के पूर्व सांसद क़ादिर राणा की पत्नी सईदा राणा यहां बसपा की टिकटवाहक होंगी.


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नईम मलिक
नईम मलिक

5 माह में यह बसपा की इस विधानसभा पर चौथी प्रत्याशी है, पहले तीन आए तो चुपचाप थे मगर वापिस गए धूम मचाकर. वैसे यहां के विधायक नवाज़िश आलम चुनाव तो सपा के टिकट पर जीते थे मगर वह भी अब बसपा में हैं. नवाज़िश आलम फिलहाल मीरापुर से प्रत्याशी हैं. बुढ़ाना एक सिरदर्द है, आपको यह बात जनता और अफसर आसानी से समझा देंगे.

2012 के नए परिसीमन में बुढ़ाना को नई विधानसभा सीट बनाया गया. इसका बडा हिस्सा खतौली विधानसभा से आया और शेष कांधला से. अचानक से बुढ़ाना मुस्लिमबहुल सीट बन गयी. 2012 के चुनाव में यहां समाजवादी पार्टी के पूर्व सांसद अमीर आलम के नौजवान बेटे नवाज़िश आलम ने जीत से अपने राजनीतिक कैरियर की शुरुआत की. उन्होंने पूर्व मंत्री योगराज सिंह को हराया.


नवाज़िश आलम
नवाज़िश आलम

बुढ़ाना विधानसभा में एक शाहपुर ब्लॉक है, जो राजनीतिक रूप से बहुत महत्वपूर्ण है. बागपत से भाजपा सांसद सत्यपाल सिंह और केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान भी इसी विधानसभा के रहने वाले हैं. लगभग सभी प्रभावशाली जाट नेता इसी विधानसभा में हैं और जाटों की संख्या भी यहां 65 हजार से ज्यादा है. मुसलमान एक लाख हैं और दलित 40 हजार. अगर दलित-मुस्लिम एक हो जाते हैं तो यहां से बसपा की जीत तय है. बस इसीलिए यहां के टिकट के लिए मुसलमानो में मारामारी है.

इसके साथ ही इस विधानसभा में एक और खासबात है. इस विधानसभा के परिसीमन से पहले लगातार जाटों ने सदन में यहां का प्रतिनिधित्व किया है, अब नवाज़िश आलम की जीत ही उन्हें पच नहीं रही.

नए समीकरण मे बसपा की जीत तय है मगर टिकटों की अदलाबदली से परिणाम प्रभावित होने की भी सम्भावना है. बुढ़ाना विधानसभा मुज़फ्फ़रनगर दंगो के दौरान सबसे ज्यादा प्रभावित हुई थी, यहां सबसे ज्यादा हत्याएं हुई थीं. दरअसल यह विधानसभा जाटों और मुसलमानों की प्रतिष्ठा बन गयी है.

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बसपा ने यहां सबसे पहले नईम मलिक को प्रत्याशी बनाया था. नौजवान नईम मलिक का कोई राजनीतिक इतिहास नहीं था. बसपा के 135 मुस्लिम प्रत्याशियों में से सिर्फ 9 पिछड़ी मुस्लिम बिरादरी से हैं. इनमें से एक नईम मलिक भी थे. दिल्ली के कारोबारी नईम को कोई राजनीतिक अनुभव नही था मगर उनके प्रत्याशी होने से पिछड़ी मुस्लिम बिरादरियों में उत्साह था. नईम कई कारणों से यहां के नेताओ की आंख में खटकने लगे और ‘सिद्दीक़ी कृपा’ में कमी के चलते उनका टिकट काटकर आरिफ जोला को थमा दिया गया.


आरिफ जोला
आरिफ जोला

विदेशों में खिलौने निर्यात के कारोबार से जुड़े आरिफ प्रत्याशी घोषित होने के कुछ दिन बाद ही गुम हो गए. मेरठ मे उनकी लावारिस हालात में मिली गाड़ी को देखकर अपहरण का कयास लगाए गए. पूरे जोन मे हड़कंप मच गया और पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने खुद आईजी मेरठ से बात की. बसपा के पूर्व प्रत्याशी नईम मलिक पर शक गहरा गया और इलाके मे जातीय तनाव फैलने लगा, तभी नाटकीय ढंग से आरिफ लौट आए और उन्होंने बताया कि वो पारिवारिक तनाव के चलते खुद ही छिप गए थे, लेकिन बात को बढ़ता देख वे लौट आए.

इस पर आरिफ का टिकट काट दिया गया और पूर्व सांसद मनव्वर हसन के भाई कंवर हसन को बुढ़ाना से बसपा प्रत्याशी बना दिया गया. पिछले दिनों प्रचार न करने के कारण कंवर हसन का भी टिकट काट दिया था और कंवर हसन ने बसपा सुप्रीमो मायावती पर अपने सामने सजदा कराने का इल्जाम लगाया था, जिसका बसपा के अन्य मुस्लिम नेताओं ने खंडन किया था. अब क़ादिर राणा की पत्नी सईदा को टिकट दिया गया है. उनके देवर नूर सलीम राणा का भी पास की विधानसभा चरथावल से टिकट काटा गया था, मगर बात फिर से बन गयी है.

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