Home Articles बाबरी मस्जिद : आज तो क़ातिल ही हुक्मरान हैं

बाबरी मस्जिद : आज तो क़ातिल ही हुक्मरान हैं

नैय्यर इमाम सिद्दीक़ी

विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र की दहलीज़ पर इंसाफ़ के लिए 25 साल से इंतज़ार करती बाबरी मस्जिद के क़ातिलों में से अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री बने और उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया. वहीँ लालकृष्ण आडवाणी को केंद्र में उपप्रधानमंत्री, गृहमंत्री, सूचना और प्रसारण मंत्री जैसे महत्वपूर्ण पद सौंपे गए और पद्मविभूषण से नवाज़ा गया. कल्याण सिंह को राजस्थान का गवर्नर बनाया गया. मुरली मनोहर जोशी को शिक्षा मंत्री बनाया गया तो उमा भारती को मुख्यमंत्री पद और अटल सरकार में शिक्षा मंत्री (राज्य प्रभार) और कोल एंड माइंस तो मोदी सरकार में जल संसाधन मंत्रालय और गंगा सफ़ाई मंत्रालय सौंपा गया है. बाल ठाकरे को ‘स्टेट फ्यूनरल ऑनर’ दिया गया तो अशोक सिंघल की शान में नरेंद्र मोदी ने ट्वीट कर उन्हें अपना प्रेरणास्रोत माना. दोषियों में एक महत्वपूर्ण नाम तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव का भी है, भले ही उनकी मौत ने उन्हें दोषियों की लिस्ट से ख़ारिज कर दिया हो लेकिन इतिहास में उनका नाम हमेशा एक दोषी के रूप में ही दर्ज होता रहेगा. लिब्रहान आयोग
द्वारा दोषी क़रार दिए गए 68 दोषियों में से विश्व का सबसे बड़ा लिखित संविधान रखने वाले देश ने कितनों को सज़ा दिया है?

अयोध्या में राम मंदिर और बाबरी विवाद को दशकों बीत चुके हैं मगर मसला आज भी जस का तस है. विवाद इस बात पर है कि देश के हिंदूओं की मान्यता के अनुसार अयोध्या की विवादित जमीन भगवान राम की जन्मभूमि है जबकि देश के मुसलमानों और इतिहास के अनुसार बाबरी मस्जिद जिस ‘विवादित स्थल’ पर 6 दिसम्बर 1992 तक खड़ी थी वो जगह रामजन्म भूमि नहीं है. मुस्लिम सम्राट और मुग़ल सल्तनत के संस्थापक बाबर ने फतेहपुर सीकरी के राजा राणा संग्राम सिंह को वर्ष 1527 में हराने के बाद अपने जनरल मीर बक़ी को अयोध्या क्षेत्र का वायसराय नियुक्त किया. मीर बक़ी ने ही अयोध्या में वर्ष 1528 में मस्जिद का निर्माण करवाया जिसे कालांतर में बाबरी मस्जिद के नाम से जाना गया जो अब ‘विवादित ढांचे’ के रूप में जानी जाती है.

जिस देश में उसके संविधान की आत्मा ‘एकता, अखंडता और अक्षुण्णता’ के साथ बलात्कार करने वालों को ही संविधान का संरक्षक बना दिया जाए, वह देश न तो लोकतान्त्रिक हो सकता है न तो वहां इंसाफ़ हो सकता है. बाक़ी लोकतंत्र और संविधान का सम्मान और ‘क़ानून सबके लिए एकसमान है’ जैसे जुमले आम जनता को लुभाने और लोकतंत्र की आबरू बचाने के ही काम आ सकते हैं, आम-जन को न्याय दिलाने में नहीं. बाबरी मस्जिद गिराने के मामले में कोर्ट द्वारा आरोप तय (सज़ा नहीं, क्योंकि 25 साल, दो दर्जन से ज़्यादा बेंचों-जजों और हज़ारों सुनवाइयों के बावजूद भी किसी भारतीय अदालत में इतनी हिम्मत नहीं कि बाबरी मस्जिद विध्वंस के दोषियों को सज़ा दे दे) होने के बाद भी दोषियों के संवैधानिक पदों की रेवड़ियाँ बाँटी गयीं. क्या भारतीय अदालतें और उनके जज इतने स्वतंत्र और निष्पक्ष हैं कि संवैधानिक पदों पर बैठे दोषियों, जिन्हें संविधान के दायरे में ही अदालत द्वारा ही गठित कमिटी ने दोषी घोषित किया है, को सज़ा दे सकें?

जिस बर्बाद ‘इस्लामिक राष्ट्र’ पाकिस्तान को हम हर मामले में पानी पी-पी कर कोसते हैं, उससे तुलना कर हम अपने आप को सर्वश्रेष्ठ घोषित करते हैं उसी पाकिस्तान के इस्लामकोट में पाकिस्तान का इकलौता ऐतिहासिक राम मंदिर अपनी आन-बान-शान के साथ आज भी खड़ा है. वहीँ ‘लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष देश’ भारत के अयोध्या में धर्मांध हिंसक कारसेवकों द्वारा ऐतिहासिक इकलौते बाबरी मस्जिद को लाखों सैन्य बलों के सुरक्षा घेरे में 6 दिसम्बर 1992 को धवस्त कर दिया गया. पाकिस्तान जिसे दुनिया में सबसे कट्टरपंथी राष्ट्र, ‘फेल्ड स्टेट’ की संज्ञा से नवाज़ा जाता है उसी पाकिस्तान में पिछले साल वहां की सुप्रीम कोर्ट ने कट्टरपंथियों द्वारा 1997 में तोड़े गए मंदिर का पुनर्निर्माण एवं उसके संरक्षण का आदेश जारी किया.

अगर 6 दिसंबर 1992 की घटना और उसकी बरसी “काला दिवस” की ‘नियम और शर्तों’ को पूरा नहीं करती तो फिर विश्व के किसी भी कोने में हुई आतंकी घटना और/या उसकी बरसी पर किस नियम और शर्त की बिना पर आप अपनी प्रोफ़ाइल पर काली स्याही उड़ेल लेते हैं? मान्यवर, ‘सेलेक्टिव झंडाबरदार’ न बनिए. जिस घटना ने पूरे देश को दंगों की आग में झोक दिया, जिसकी घटना की जाँच के लिए बने आयोग पर करोड़ों रुपये स्वाहा हो गए, जिस घटना का फ़ैसला कोर्ट ने सबूत और गवाहों की बजाए ‘आस्था’ पर दिया उस घटना को आख़िर किस तरह याद किया जाये? “शौर्य दिवस” के रूप में?