मस्जिद कमिटी दोबारा बनवाएगी चम्पारण की ऐतिहासिक पब्लिक लाइब्रेरी

अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net

बेतिया (बिहार) : चम्पारण की ऐतिहासिक ज़मीन से जुड़े संघर्षों की प्रतीक यहां की मशहूर ‘सज्जाद पब्लिक उर्दू लाइब्रेरी’ एक बार फिर से आकार लेने जा रही है. चम्पारण के कुछ बुद्धिजीवियों और जागरूक नौजवानों ने इस लाइब्रेरी को दोबारा ज़िंदा करने का इरादा किया है. इस नज़रिए से यह एक बड़ा काम है क्योंकि सज्जाद पब्लिक उर्दू लाइब्रेरी एक ऐतिहासिक लाइब्रेरी है. TwoCircles.net ने छह महीने पहले इस लाइब्रेरी की कहानी अपने पाठकों से साझा की थी.


Support TwoCircles

इस लाइब्रेरी से जुड़ा एक तथ्य यह भी है कि कभी यह बिल्डिंग सहित ग़ायब हो गयी थी. तब मुसलमानों के साथ नाइंसाफ़ी का रोना रोने वाले ठेकेदारों से लेकर सूबे के हुक्मरानों और तमाम बुद्धिजीवियों तक, किसी को इस लाइब्रेरी के हालात पर ग़ौर करने की ज़रूरत महसूस नहीं हुई. हालांकि अब उन्हीं के बीच से इस लाइब्रेरी को दोबारा खड़ा करने की आवाज़ आ रही है.

ये लाइब्रेरी बिहार के पश्चिम चम्पारण ज़िले के बेतिया शहर की मशहूर जंगी मस्जिद के साथ जुड़ी हुई है. इस लाइब्रेरी में सचिव रह चुके मजीद ख़ान के मुताबिक़ मस्जिद कमिटी ने लाइब्रेरी की बिल्डिंग को यह कहकर तोड़ दिया था कि इसे दोबारा तामीर करवाया जाएगा. लेकिन आज मुसाफ़िरखाना तो बन चुका है, लेकिन लाइब्रेरी अभी तक नहीं बन सकी है.

Sajjad Library

जब TwoCircles.net की ख़बर को उर्दू के इंक़लाब अख़बार ने बिहार के एडिशन में प्रकाशित किया तो शहर के कुछ नौजवानों की नींद टूटी. हालांकि कुछ युवा इसके लिए पहले से संघर्षरत थे. इन युवाओं ने इस लाइब्रेरी के पुरानी कमिटी और शहर के बुद्धिजीवियों की मीटिंग बुलाई जहां फैसला लिया गया कि यह लाइब्रेरी दुबारा खड़ी की जाएगी. इसी मीटिंग में एक ऐडहॉक कमिटी का गठन किया गया और फैसला लिया गया कि यह कमिटी जल्द से जल्द इस लाइब्रेरी का निर्माण कराने का काम करेगी. इस कमिटी ने अपना काम अभी शुरू ही किया था कि मस्जिद कमिटी ने एक मीटिंग बुलाई और प्रस्ताव रखा कि इस लाइब्रेरी के तामीर का सारा काम मस्जिद कमिटी करेगी और अगले छ महीने में लाइब्रेरी की पूरी बिल्डिंग बनाकर लाइब्रेरी कमिटी को सौंप दी जाएगी.

Sajjad Library

TwoCircles.net के साथ बातचीत में मस्जिद कमिटी के अध्यक्ष व इस मस्जिद के इमाम नजमुद्दीन क़ासमी बताते हैं कि –‘मस्जिद कमिटी अगले 6 महीने के अंदर इस लाइब्रेरी के तामीर का काम मुकम्मल कर लेगी. लाइब्रेरी की बिल्डिंग तैयार हो जाने के बाद इसे लाइब्रेरी कमिटी को सौंप दिया जाएगा.’ लाइब्रेरी के इतिहास के बारे में पूछने पर वो स्पष्ट तौर पर कहते हैं कि –‘मुझे इस लाइब्रेरी के इतिहास का कोई इल्म नहीं है.’

बताते चलें कि 1937 में मुस्लिम इंडिपेंडेंट पार्टी के गठन के साथ ही बेतिया के अहम दानिश्वरों के साथ मिलकर मौलाना अबुल मुहासिन मोहम्मद सज्जाद ने इस लाइब्रेरी की स्थापना की बात की. 1939 में सज्जाद पब्लिक उर्दू लाइब्रेरी शुरू भी हो गई. इस लाइब्रेरी की बुनियाद डालने वालों में मौलाना असदुल्लाह महमूदी और डॉक्टर रहमतुल्लाह का नाम ख़ास तौर पर लिया जाता है.

दरअसल मौलाना अबुल मुहासिन मोहम्मद सज्जाद वही शख़्स हैं जिन्होंने मुस्लिम इंडिपेंडेंट पार्टी का गठन किया. ये वही पार्टी है, जिसने बिहार में अपनी पहली सरकार बनाई और बैरिस्टर मो. युनूस देश के पहले प्राइम मिनिस्टर प्रीमियम बने. मौलाना बिहार में अमारत-ए-शरीआ के संस्थापक भी थे.

इस लाइब्रेरी के नाज़िम रह चुके शहर के मशहूर शायर अब्दुल ख़ैर निश्तर बताते हैं कि आज़ादी से पहले ये लाइब्रेरी बुद्धिजीवियों, लेखकों, साहित्यकारों और स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल लोगों की वैचारिक बहसों का केंद्र हुआ करती थी. हालांकि इससे पूर्व पीर मुहम्मद मूनिस अपने घर पर एक लाइब्रेरी स्थापित कर रखा था, लेकिन इस लाइब्रेरी के स्थापना होते ही उन्होंने अपनी लाइब्रेरी की सारी किताबें इस लाइब्रेरी को दे दी.

Sajjad Library

अब्दुल ख़ैर निश्तर आगे बताते हैं कि 1939 से 1964 तक यह लाइब्रेरी लगातार चलती रही. 1965 में यह लाइब्रेरी बंद हो गई. 1972 में शहर के कुछ नौजवानों ने डॉक्टर अब्दुल वहाब की सरपरस्ती में इस लाइब्रेरी को फिर से शुरू किया. उसके बाद 1995 तक यह लाइब्रेरी किसी तरह से चलती रही. 1996 में यह लाइब्रेरीपूरी तरह से ख़त्म हो गई.

बताते चलें कि इस लाइब्रेरी में तक़रीबन 12 हज़ार से ऊपर उर्दू, हिन्दी, पाली, फ़ारसी व अरबी में महत्वपूर्ण किताबें थी. सैकड़ों पाण्डुलिपियां भी यहां मौजूद थीं. उस समय के तमाम मशहूर अख़बार व रिसाले जैसे सर्चलाईट, इंडियन नेशन, आर्यावर्त, सदा-ए-आम, संगम, शमा, फूल आदि इस लाइब्रेरीमें आते थे. दूर-दूर से लोग यहां पढ़ने आते थे. इब्ने-सफ़ी सीरीज़ की सभी किताबें इस लाइब्रेरी में मौजूद थी. इसके अलावा जासूसी उपन्यास भरे हुए थे. लेकिन बंद होने के बाद अधिकतर किताबें सड़ गयीं. जो महत्वपूर्ण किताबें थी, शहर के बुद्धिजीवी उसे अपने घर लेकर चले गए. कई किताबें ज़मीन में दफन कर दी गयीं. कुछ किताबें अभी बगल की जंगी मस्जिद में सड़ रही हैं और उसे देखने वाला कोई नहीं है. बिहार उर्दू अकादमी को दिए एक दस्तावेज़ के मुताबिक़ 1990 तक इस लाइब्रेरीमें पांच हज़ार से अधिक किताबें थीं.

3.jpg

चम्पारण का गौरवशाली इतिहास इसके पन्नों में दर्ज है. ये पन्ने चम्पारण के मुसलमानों के संघर्ष से लेकर उसके गौरवशाली अतीत और संघर्षशील वर्तमान की पूरी दुनिया साक्षी है. चम्पारण के इस लाइब्रेरी को दोबारा ज़िंदा करने के इन प्रयासों की जमकर सराहना की जानी चाहिए ताकि पूरे मुल्क में जहां-जहां भी ऐसी महान धरोहरें ध्वस्त या जर्जर होने के कगार पर हैं तो उन्हें फिर से संजोकर, संवार कर इतिहास के इस शानदार चेहरे को वर्तमान के हाथों संवारा जा सके.

जिन नौजवानों इसको पुनर्जीवित करने की कोशिशों में अपना योगदान दिया है वे न सिर्फ़ बधाई के पात्र हैं, बल्कि अपने आप में रोल मॉडल भी हैं. इन नौजवानों की इस शानदार प्रयास को जन-जन के सामने लाने की ज़रूरत है. अगर देश का नौजवान इस तरह की रचनात्मक और क्रांतिकारी पहल का हिस्सा बन सका तो वो दिन दूर नहीं जब हमें अपने नौजवानों के योगदान पर गर्व होगा. चम्पारण की ये लाइब्रेरी इसी गर्व की जीती-जागती झांकी है.

SUPPORT TWOCIRCLES HELP SUPPORT INDEPENDENT AND NON-PROFIT MEDIA. DONATE HERE