भारत में फ़्लू जैसी मामूली बीमारी से मर रही हैं गर्भवती महिलाएं

सिद्धांत मोहन, TwoCircles.net

श्रीनगर/दिल्ली: भारत में संयुक्त राष्ट्र संघ और यूनीसेफ के दिशानिर्देशों को आधार बनाकर मां और बच्चों की देखभाल करने के प्रयास हो रहे हैं, इनसे कई इलाकों में मदद भी देखने को मिली है. लेकिन वैज्ञानिक पहलुओं को नकारकर आगे बढ़ने में भारत कई छोटी बीमारियों को नज़रंदाज़ कर रहा है, जिनमें प्रमुख है इन्फ्लूएंजा यानी फ़्लू. भारत में सेप्सिस और खून के बहाव के बाद फ़्लू मां और बच्चों की मौत का सबसे प्रमुख और अनोखा कारण बनकर सामने आ रहा है.


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श्रीनगर के शेरी-कश्मीर मेडिकल संस्थान में किए गए एक शोध में यह बात सामने आयी कि उत्तर भारत के एक बड़े हिस्से में गर्भवती महिलाओं और शिशुओं को तमाम टीके लगाए तो जा रहे हैं, लेकिन उन्हें इन्फ्लूएंजा की वैक्सीन नहीं लगायी जा रही है. इसे लेकर जागरूकता का अभाव है. साल 2009 में आए H1N1 वायरस से होने वाले फ़्लू के बाद से उत्तर भारत के कई हिस्सों में गर्भवती महिलाओं की मृत्यु महज़ इन्फ्लूएंजा की चपेट में आने से हो रही है. यही नहीं, इन्फ्लूएंजा की चपेट में आने से महिलाओं के साथ-साथ गर्भस्थ शिशुओं और नवजात बच्चों की मौतों की ख़बरें भी सामने आ रही है. इन्फ्लूएंजा की वजह से सबसे ज्यादा गर्भ के अन्दर होने वाली मौतों में इज़ाफा हुआ है.



(Courtesy – Organic Lifestyle Magazine)

शेरी-कश्मीर इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज़ में किए गए इस शोध में एक हज़ार महिलाओं और उनका इलाज कर रहे डॉक्टरों से बात की गयी और सर्वे किया गया. इनमें से 64 प्रतिशत महिलाएं गांवों से ताल्लुक रखती थी, जबकि बाकी 36 प्रतिशत महिलाएं शहरी इलाकों से जुड़ी हुई थीं. इन हज़ार महिलाओं में 54 प्रतिशत से महिलाएं पहली बार गर्भवती हुई थीं और लगभग सभी महिलाएं घरों में रहती थीं, न कि किसी दफ्तरी काम में जुटी हुई थीं.

आश्चर्यजनक ढंग से इनमें से किसी भी महिला ने इन्फ्लूएंजा की वैक्सीन के बारे में कभी नहीं सुना था. जब मेडिकल संस्थान के लोगों ने कारण पूछा तो गर्भवती महिलाओं ने जानकारी दी कि उनके डॉक्टरों ने इन्फ्लूएंजा के टीके के बारे में न उन्हें कभी जानकारी दी और न ही उन्हें इसके टीके लगवाने की सलाह दी. सभी महिलाओं ने यह बताया कि यदि उनके डॉक्टर यह बताते हैं कि इन्फ्लूएंजा का टीका ज़रूरी है और इसे लगवाने से कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ेंगे, तो उन्हें यह टीका लगवाने में कोई ऐतराज़ नहीं है.
गर्भवती महिलाओं के बाद जब उनके डॉक्टरों से बात की गयी तो चौंकाने वाले नतीजे सामने आए. 90 डॉक्टरों के समूह में से 81 डॉक्टरों ने यह माना कि इन्फ्लूएंजा एक गंभीर बीमारी है, जिसके परिणाम गर्भावस्था में घातक हो सकते हैं. इनमें से महज़ 9 डॉक्टर ऐसे थे, जिन्होंने पिछले पांच सालों में किसी मरीज को इन्फ्लूएंजा का टीका लगाया था. 70 डॉक्टर ऐसे थे, जिन्हें इन्फ्लूएंजा के टीके और लोकल मार्केट में उसकी उपलब्धता के बारे में जानकारी थी, लेकिन उन्होंने अपने मरीजों का टीकाकरण करना ज़रूरी नहीं समझा. सभी डॉक्टरों ने यह भी माना कि मरीजों को इन्फ्लूएंजा का टीका दिया जाना चाहिए, लेकिन उन्होंने खुद रिस्क लेना ज़रूरी नहीं समझा.

इस शोधकार्य को निदेशित करने वाले शेरी-कश्मीर मेडिकल संस्थान के पल्मोनरी डिज़ीज़ एक्सपर्ट डॉ. परवेज़ कॉल बताते हैं, ‘हमारे शोध में हमने पाया कि बहुत सारे स्त्री रोग विशेषज्ञ अपने मरीजों को इन्फ्लूएंजा के टीके नहीं लगा रहे हैं. वे यह तो मान रहे थे कि यह रोग घातक हो सकता है और इसके टीके लगाए जाने ज़रूरी थी, लेकिन वे टीके लगाने को लेकर तैयार नहीं थे.’

इसके अलावा साल 2015 में हुए एक और शोध के दौरान शेरी-कश्मीर मेडिकल संस्थान में जब 266 महिलाओं की जांच की गयी तो इनमें से 41 महिलाएं प्राणघातक H1N1 इन्फ्लूएंजा की जांच में पॉजिटिव पायी गयीं. और अन्य दस महिलाएं सामान्य इन्फ्लूएंजा की शिकार पायी गयीं. इसी जांच के दौरान हुई पूछताछ में इन महिलाओं ने स्वीकार किया कि उनके डॉक्टरों ने कभी उन्हें इन्फ्लूएंजा की जांच के लिए प्रेरित नहीं किया. इन महिलाओं को सांस लेने में तकलीफ़ और फेफड़ों में जकड़न की समस्याएं होती थीं. आश्चर्य की बात यह है कि कई महिलाओं ने इन तकलीफों को प्राथमिकता देना ज़रूरी नहीं समझा.

ज्ञात हो कि साल 1918, 1957 और 2009 के दौरान फैले इन्फ्लूएंजा के दौरान गर्भवती महिलाएं सबसे ज़्यादा खतरे की क़गार पर थीं. भारत में इन्फ्लूएंजा से होने वाली मौतों का प्रतिशत भी इस दशक में बढ़ोतरी पर है. लेकिन WHO के निर्देशों के बावजूद भारत में इन्फ्लूएंजा को लेकर कोई परेशानी नहीं दिख रही है. भारत में इन्फ्लूएंजा अभी भी एक ऐसी बीमारी के रूप में प्रसिद्ध है, जिस पर ध्यान न देने से भी बात बनायी जा सकती है.

यही नहीं, इन्फ्लूएंजा को लेकर भारत की उदासीनता का अंदाज़ इसी बात से लगाया जा सकता है कि भारत में इन्फ्लूएंजा पर अभी तक महज़ 229 शोधकार्य सामने आए हैं, जिनमें से सारे साल 2009 के बाद के हैं. इसका मतलब यह लगाया जा सकता है कि इन्फ्लूएंजा को लेकर पब्लिक हेल्थ सेक्टर में यदि उदासीनता है, तो वैज्ञानिक तबके में भी इसे लेकर जानकारियों का प्रवाह बेहद कम है.

डॉ. परवेज़ कौल इस मामले में बुनियादी जानकारी मुहैया कराते हैं. उन्होंने इस मसले पर सबसे अधिक शोध किया है. वे कहते हैं, ‘इसे लेकर जानकारियां बेहद कम हैं. लोगों के भीतर इन्फ्लूएंजा की इमेज बहुत छोटी बनी हुई है, वे इसे हानिकारक नहीं मानते हैं. लेकिन इसी में चूक होती है. यह बीमारी तो गंभीर नहीं है, लेकिन इसके परिणाम ज़रूर गंभीर हैं. खासकर तब, जब गर्भवती महिलाओं की बात आती है.’

यदि मां गर्भावस्था के शुरुआती तीन महीनों के दौरान किसी किस्म के इन्फ्लूएंजा से पीड़ित है, तो मां के साथ-साथ बच्चे को भी ख़तरा होने की संभावनाएं हैं. परवेज़ कौल कहते हैं, ‘यदि मां को किसी भी किस्म का इन्फेक्शन है तो बच्चे के भी उससे प्रभावित होने का खतरा बना रहता है. ऐसा बहुत कम देखा गया है कि गर्भ के अन्दर बच्चों को इन्फ्लूएंजा हुआ हो, लेकिन मां को ऐसा होने से बच्चों के विकृत और अल्प-विकसित होने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं.’

परवेज़ कौल कहते हैं, ‘ऐसा नहीं है कि पहले गर्भवती महिलाओं की मौतें नहीं हो रही थीं. हो रही थीं, लेकिन हमारे पास इन्फ्लूएंजा की जांच-पहचान के लिए संसाधन नहीं थे. संभव है कि इन्फ्लूएंजा से होने वाली मौतों के कारणों का पता ही न लग पा रहा हो, अब हमारे पास संसाधन हैं तो हमें ऐसे मामलों के बारे में पता चल रहा है.’

अभी सबसे बड़ी समस्या यह है कि भारत सरकार द्वारा चलायी जा रही योजनाओं में इन्फ्लूएंजा के टीके को लेकर कोई ठोस नीति नहीं निर्धारित की गयी है, जबकि जानकारों का मानना है कि इन्फ्लूएंजा से पीड़ित गर्भवती महिलाओं की बढ़ती हुई संख्या को देखते हुए सरकार को इस ओर मजबूत कदम उठाने चाहिए. केंद्र सरकार की ओर से पिछले साल ही इन्फ्लूएंजा वैक्सीन को लेकर सिफारिश की गयी थी, लेकिन डॉक्टरों द्वारा इस सिफारिश को अमल में लाया जाना अभी बचा हुआ है.

इस मामले में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय स्थित चिकित्सा विज्ञान संस्थान में महिला व प्रसूति रोग की विशेषज्ञ डॉ. मंजरी माटा से बातचीत करने पर वे बिलकुल अनभिज्ञता ज़ाहिर करती हैं और कहती हैं कि उन्हें इस बारे में कोई जानकारी नहीं है.

लेकिन निजी मेडिकल संस्थानों में इन्फ्लूएंजा वैक्सीन को लेकर सजगता धीरे-धीरे बढ़ रही है. दिल्ली के रॉकलैंड अस्पताल की विशेषज्ञ डॉ. शीतल अग्रवाल बताती हैं, ‘इन्फ्लूएंजा का टीका सरकार की तरफ से टीकाकरण के कार्यक्रम में चिन्हित नहीं किया गया है. इसके बारे में सिफारिश की तरह बताया गया है. लेकिन इस टीके को हम अपने मरीजों को ज़रूर लगाते हैं.’ वे आगे बताती हैं, ‘यही कारण है कि इन्फ्लूएंजा के टीके सरकारी अस्पतालों में नहीं लगाए जा रहे हैं. आधे से ज्यादा लोगों को या तो जानकारी नहीं है, और जिन्हें जानकारी है वे सरकारी कार्यक्रमों के अधीन बंधे हुए हैं.’

देश के कई इलाकों में किए गए शोध से मालूम हुआ कि देश के अलग-अलग हिस्सों में गर्भवती महिलाएं इन्फ्लूएंजा से पीड़ित हैं. कुल गर्भवती महिलाओं में इन्फ्लूएंजा से पीड़िताओं का प्रतिशत 25 से 30 प्रतिशत के बीच है. भारत में इन आंकड़ों को लेकर स्वास्थ्य विभाग की मुस्तैदी एकदम नदारद है. इन्फ्लूएंजा से मरने वाली महिलाओं को लेकर सरकार के पास कोई आंकड़ा नहीं उपलब्ध है. अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं द्वारा दिए गए दिशानिर्देशों के बावजूद भारत में इन्फ्लूएंजा की वैक्सीन को लेकर कोई तैयारी नहीं दिख रही है, जिसकी वजह से यह फ़्लू अब गर्भवती महिलाओं की मौत का कारण बनता जा रहा है.

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