भारत में सरकार नाम की कोई चीज़ है या नहीं?

डॉ. खजान सिंह

हाल ही में दबंगो द्वारा गुजरात के ऊना में दलितों के साथ किए गए अमानवीय व्यवहार ने सारे देश के बहुजनो को हिलाकर रख दिया. वैसे तो देशभर में आए दिन इस प्रकार की घटनाएं देखने-सुनने में आती रहती है. पर इस घटना से एक बात साफ दिखाई देती है कि दबंगो के हौसले कितने बुलंद है कि दलितों की पिटाई सबूत सोशल मीडिया पर वायरल करते है.


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इस घटना का वीडियो देखकर रोंगटे खड़े हो जाते है और इस बात पर संदेह होने लगता है कि भारत में सरकार नाम की कोई चीज है या नहीं? यदि है तो उनकी इन दबंगो के साथ मिलीभगत होने की बू क्यों आती है? इस प्रकार की देश में यह पहली घटना नहीं है. जैसे कि अक्टूबर 2002 में हरियाणा के जिला झाझर में हुई घटना जिसमे 5 दलितों को गाय की खाल उतारने के आरोप में दबंगो ने बुरी तरह पीटकर मौत के घाट उतार दिया था.

इन दबंगो ने समय-समय पर बहुजन समाज में दहशत फ़ैलाने का काम किया, जिससे वे खुद देश की धन-धरती पर काबिज रह सके और बहुजन समाज के लोग उनकी गुलामी करते रहें. अभी हाल ही में हरियाणा के रोहतक जिले में एक दलित युवती के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया. इन्ही दबंगो ने उस युवती के साथ पहले भी सामूहिक बलात्कार किया था, जिसके कारण वे जेल में थे और अभी जमानत पर छूटकर आये थे. वे दलित लड़की पर मुक़दमा वापिस लेने का दबाव डाल रहे थे, जिसे लड़की ने खारिज कर दिया था.

पिछले वर्ष उत्तर प्रदेश के गौतमबुद्ध नगर के दादरी में अख़लाक़ को इस अफवाह पर मौत के घाट उतार दिया कि उनके घर में गोमांस था. उसके बेटे को पीट-पीटकर अधमरा कर दिया गया.

पिछले ही वर्ष हरियाणा के फरीदाबाद जिले के एक गाँव सुनपेड़ में एक दलित व्यक्ति जितेन्द्र के सोते हुए परिवार पर गाँव के ही दबंगो ने पेट्रोल छिड़ककर आग लगा दी थी. जिसमे उनके दो मासूम बच्चे जलकर मर गये थे और जितेंद्र की पत्नी रेखा बुरी तरह जल गई थी.

पता चला है कि गुजरात की हालिया घटना से घबराकर हरियाणा की भाजपा सरकार ने चुपके से जितेंद्र को सरकारी नौकरी का ऑफर दिया है कि कही ये मुद्दा फिर से न उठ जाए.

पिछले ही वर्ष दलित छात्र रोहित वेमुला की मृत्यु पर पूरे देश में खूब बवाल हुआ था, लेकिन उसे आत्महत्या के लिए उकसाने वाले लोगों पर कोई कार्रवाई नहीं की गयी.

देशभर में इस प्रकार की या इससे भी और घृणित घटनाएं होती रहती है. लेकिन इस घटना का वीडियो सार्वजनिक करना साबित करता है कि असल अपराधी बहुजन समाज को एक सन्देश देना चाहते है कि उनका दबंगई में वर्चस्व है और वे समाज को अपने हिसाब से ही चलाएंगे.

गुजरात की इस घटना से तो यही साबित होता है कि उन्होंने एक व्यक्ति को नहीं, एक परिवार को नहीं, एक जाति एक समाज को नहीं बल्कि उन्होंने तो पूरे के पूरे बहुजन समाज को मारा है. परंतु दलित समाज के नेताओं ने इसके विपरीत समझा. अपवाद छोड़ दें तो वे यह मानकर चले कि घटना एक व्यक्ति के साथ, एक परिवार के साथ या एक जाति के साथ हुई है और इन दलित नेताओं की जुबान तक नहीं खुली. अगर किसी ने इस घटना का पुरजोर विरोध किया तो वह मायावती हैं, जिनकी वजह से बहुजन समाज में एक बार फिर जान पड़ती-सी दिखाई दे रही है.

इस बात को देश के विशेष तौर पर गुजरात के दलितों ने अच्छी तरह से समझा कि घटना एक व्यक्ति, एक परिवार, एक जाति, एक समाज की नहीं है बल्कि पूरे बहुजन समाज की है. तभी तो इतना व्यापक और पुरजोर विरोधकर दलितों ने अपनी ताकत और आत्मसम्मान का अहसास कराया. गुजरात के दलितों ने अन्य दलितों को भी एक रास्ता दिखाया है कि हमें खुद को एक सूत्र में बांधकर इस प्रकार की घटनाओं का मुंहतोड़ जवाब देना चाहिए. उसे राजनीति के आश्रय में जाने देने का इन्तिज़ार नहीं करना चाहिए.

दबंगई की इसी कड़ी में भाजपा के उपाध्यक्ष दयाशंकर सिंह ने बसपा की अध्यक्षा मायावती पर एक अभद्र टिपणी की. यह घटना भी इस बात की ओर साफ़ इशारा करती है कि ऊंचाईयां छूने के बाद भी दलित व्यक्ति की सवर्णवादी समाज में कोई कद्र नहीं है. ऐसे समाज में मनुवाद के नियम चलते हैं.

मायावती पर इस अभद्र टिप्पणी के बाद बहुजन समाज का जो प्रतिकार देखने में सामने आया है, उससे ऐसा लगने लगा है जैसे 1990 के आस-पास का समय फिर वापस आ गया है. वह समय जब कांशीराम के नेतृत्व में बहुजन समाज अपने सम्मान की लड़ाई में ऊंचाइयों की ओर तेजी से बढ़ रहा था. इस घटना से एक और बड़ी बात देखने में सामने आई. वह ये कि बहुत सारे बहुसंख्यक और सवर्ण नेतृत्व वाले राजनीतिक दल एक ही मंच पर खड़े हो गए. उन्होंने एक समेकित विरोध किया और भाजपा की सरकार के निर्माण के बाद दलित विमर्श का इतना बड़ा रास्ता खोला.

[खजान सिंह सामाजिक विमर्शकार हैं और एक्टिविज़्म से जुड़े हुए हैं. उनसे [email protected] पर संपर्क किया जा सकता है.]

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