मेवात के स्कूल में ‘नमाज़’ के नाम पर साज़िश

अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net

मेवात (हरियाणा): ‘ऐ खुदा! इन बच्चों को अपने स्कूल का नाम रौशन करने वाला बना. अपने मां-बाप की इज़्ज़त करने वाला बना. उनकी सेवा करने वाला बना. इन बच्चों को अच्छी तालीम से नवाज़ और ऊंचा मक़ाम अता कर.’


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ईद से एक दिन पहले यानी 6 जुलाई को हरियाणा के मेवात जिले के तावड़ू कस्बे के ग्रीन डेल्स पब्लिक स्कूल के बच्चों के लिए की गयी यह दुआ काफी महंगी पड़ी. स्कूल के मालिक को सार्वजनिक तौर पर माफ़ी मांगनी पड़ी. इसके बावजूद स्कूल पर 5 लाख 51 हज़ार रूपये का जुर्माना लगाया गया और स्कूल मैनेजमेंट से कहा गया कि अब वे अगले दो सालों तक किसी तरह की फ़ीस में कोई इज़ाफ़ा नहीं कर सकते. स्कूल प्रशासन को यह भी फरमान सुनाया गया कि स्कूल से मुसलमान स्टाफ और बच्चों को निकाला जाए.

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दरअसल, इस पूरी घटना के पीछे मासूम बच्चों के अंदर साम्प्रदायिक नफ़रत पैदा करना है. इस साज़िश में मीडिया, स्थानीय नेता और पुलिस की मिलीभगत है. स्कूल में बच्चों के लिए की गयी दुआ को जबरन ‘नमाज़’ बताया गया.

TwoCircles.net ने मेवात जाकर इस घटना की सचाई जानने की कोशिश की. तफ़्तीश के दौरान स्कूल प्रशासन से लेकर स्कूल के टीचरों और बच्चों से बात की गई. स्थानीय पुलिस और आम लोगों से भी मुलाक़ात की गई. उन लोगों से भी मुलाक़ात की गई, जिन पर कुछ स्थानीय लोग इस साज़िश का इल्ज़ाम धरते हैं.

काफी जद्दोजहद के बाद प्रिंसिपल प्रोमिला शर्मा और मालिक भुवनेश्वर शर्मा से मुलाक़ात हुई. प्रोमिला शर्मा के मुताबिक़ इस स्कूल को 1987 में पन्नालाल शर्मा और भूतपूर्व सांसद व मंत्री स्वर्गीय तैय्यब हुसैन ने स्थापित किया था. इस स्कूल में पहली से दसवीं कक्षा तक एके शिक्षा मिलती है. स्कूल को स्थापित करने का मकसद था कि तावड़ू कस्बे के हर समाज के बच्चों को शिक्षा दी जा सके. संस्थापक पन्नालाल शर्मा दिल्ली में जिला शिक्षा अधिकारी रह चुके हैं.

प्रोमिला शर्मा ने बताया, ‘हमारा स्कूल हर त्योहार के मौक़े पर कार्यक्रम आयोजित करता आया है. इसका मक़सद बच्चों को हर धर्म के त्योहारों व संस्कारों से रूबरू कराना होता है. अब इसमें समस्या कहां है, ये मुझे नहीं पता.’

प्रोमिला शर्मा बताती हैं कि 6 जुलाई को स्कूल में कोई नमाज़ नहीं हुई थी. बस बच्चों को ईद के बारे में बताया गया था और कुछ बच्चों ने बजरंगी भाईजान फिल्म के एक गीत ‘भर दो झोली मेरी या मुहम्मद…’ गाया था.

प्रोमिला शर्मा अभी उस दिन के बारे में बता ही रही थीं कि स्कूल के चेयरमैन भुवनेश्वर शर्मा ने इस संबंध में बात करने से मना कर दिया.

इस मामले में हमारी अगली मुलाक़ात स्कूल की उस अध्यापिका से हुई, जिसके बारे में मीडिया ने प्रकाशित किया था कि स्कूल की एकमात्र मुस्लिम टीचर केरल से आई थी और उसी ने नमाज़ पढ़ाई और अब दिल्ली भाग गई.

लेकिन सचाई यह है कि यह टीचर इसी तावड़ू क़स्बे की रहने वाली है. वे 31 मार्च को अंग्रेज़ी पढ़ाने के लिए इस स्कूल से जुड़ी थीं. वे बच्चों को सिर्फ़ 2 महीने 6 दिन ही पढ़ा सकी हैं. अब उन्होंने इस्तीफ़ा दे दिया. घटना के बारे में नाम न प्रकाशित करने की शर्त पर वे बताती हैं, ‘प्रिंसिपल ने मुझसे कहा कि स्कूल ईद के मौक़े पर एक कार्यक्रम आयोजित कर रहा है, उसमें आपको ईद के बारे में बच्चों को बताना है.’

वे आगे बताती हैं, ‘6 जुलाई को सुबह 8:45 में हर दिन की तरह स्कूल में प्रार्थना के लिए बच्चे जमा हुए. लेकिन उस दिन प्रार्थना में गायत्री मंत्र की जगह नज़्म ‘लब पे आती है दुआ, बनकर तमन्ना मेरी’ मोबाईल के ज़रिए बजाई गई. इसके बाद मैंने बच्चों के ईद का त्योहार क्यों मनाया जाता है, के बारे में बताया. फिर बच्चों ने ‘भर दो झोली मेरी या मुहम्मद…’ क़व्वाली गाई और एक छोटा सा नाटक पेश किया, जिसमें उन्होंने यह संदेश देने की कोशिश की कि सबको मिलजुल कर रहना चाहिए. उसके बाद मैंने दुआ कराई.’ (दुआ में जो बातें कही गईं, वे इस खबर के शुरूआत में मौजूद है)

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अध्यापिका की बातों की पुष्टि इसी स्कूल के दो बच्चे भी करते हैं. बच्चों ने यह भी बताया कि हमारे स्कूल में दूसरे त्योहारों के बारे में भी बताया जाता है. उस त्योहार के मौक़े से हमें प्रसाद भी खाने को दिया जाता है. लेकिन इस बार ईद का त्योहार था तो हमें सेवईयां व रसगुल्ले खिलाएं गए.

एडवोकेट हाशिम खान बताते हैं, ‘कुछ लोगों ने जान-बूझकर इसे मुद्दा बनाया. हमारे बच्चे भी रोज़ उसी स्कूल में गायत्री मंत्र पढ़ते हैं, तो क्या वे हिन्दू हो गए? तो ऐसे में यदि बच्चों ने दुआ ही मांग ली तो क्या वे मुसलमान हो गए? ये सब समाज को तोड़ने वाले लोग हैं.’

मेवात में ही अपना निजी स्कूल चलाने वाले शहज़ाद अहमद का कहना है, ‘ये तो हरियाणा सरकार भी चाहती है कि स्कूलों में बच्चों को हर त्योहारों व संस्कृतियों के बारे में बताया जाए. केन्द्र सरकार द्वारा संचालित सीबीएसई भी चाहती है कि हर स्कूल ऐसी एक्टिविटी कराए, जिसमें बच्चे दूसरे धर्म के संस्कृतियों से भी रूबरू हों.’

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तावड़ू की इस छोटी घटना ने पूरे मेवात के अंदर आपसी भाईचारे के मायने ही बदल दिए हैं. स्थानीय लोगों में इस घटना को लेकर काफी रोष हैं. जहां एक तरफ़ हिन्दुओं को इस बात की फ़िक्र सता रही है कि हमारे बच्चों को कैसे ‘नमाज़’ पढ़ा दी गई, वहीं मुसलमानों का कहना है कि हमारे बच्चे तो हर रोज़ इन्हीं स्कूलों में गायत्री मंत्र पढ़ रहे हैं. होली खेल रहे हैं. दिवाली मना रहे हैं. सरस्वती की पूजा कर रहे हैं. तो क्या हम भी अपने बच्चों को इन स्कूलों से हटा लें.

कुछ लोगों की यह भी फिक्र है कि कहीं यह सब कुछ किसी साज़िश के तहत तो नहीं किया जा रहा है ताकि यहां के मासूम बच्चों के दिमाग़ में भी ज़हर भर दिया जाए और वे दूसरे धर्म की रिवायतों से कभी रूबरू न हो पाएं.

32 साल के मो. शाहिद बताते हैं, ‘1947 में जब पूरे हरियाणा का माहौल बिगड़ गया था, तब भी तावड़ू में कुछ नहीं हुआ था. यहां के लोग हमेशा से मिल-जुलकर रहे हैं. लेकिन 2014 में चुनाव के ठीक पूर्व यहां का माहौल ख़राब किया गया. एक डंपर की चपेट में आकर एक बाइक सवार की मौत के कारण पूरे शहर को आग में झोंक दिया गया. मामला उस समय कुछ दिनों में शांत हो गया था. लेकिन उस समय से यहां आरएसएस व बजरंग दल जैसी संस्थाएं सक्रिय हैं और वे लोगों के दिलों में नफ़रत भरने का काम ही कर रही हैं.’

हमने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मेवात जिले के प्रचारक डॉ. आर.पी. शर्मा से भी काफी लंबी बातचीत की. उनका स्पष्ट तौर पर कहना है, ‘हमें ऐसी सेक्यूलर स्कूलों की ज़रूरत नहीं है, जो हमारे छोटे-छोटे बच्चों के कोमल मस्तिष्क में हमारी अनुमति के बिना इस तरह से संस्कार भर रहे हैं.’

डॉ. आर.पी. शर्मा बताते हैं, ‘यह स्कूल इससे पहले 25 दिसम्बर को क्रिस्मस भी मना चुका है. तब भी हमारे लोगों ने इसका विरोध किया था. लेकिन हमने उस समय यह सोचकर स्कूल को छोड़ दिया कि यहां ईसाई नहीं हैं. लेकिन हम अपने बच्चों को ‘नमाज़’ पढ़ाने की इजाज़त बिल्कुल नहीं देंगे. क्योंकि यह इलाक़ा काफी संवेदनशील है. हिन्दू यहां अल्पसंख्यक हैं. इस घटना से हमारी भावनाएं आहत हुई हैं.’

वे आगे बताते हैं, ‘स्कूल में ‘नमाज़’ का सच सामने आने के बाद अभिभावकों में काफी रोष है. उन्होंने पहले स्कूल के सामने विरोध-प्रदर्शन किया. फिर एसएचओ, तहसीलदार ने इन प्रदर्शनकारी अभिभावकों को थाना परिसर में बुलाया. वहां स्कूल के मालिक को भी पुलिस ने बुला रखा था.’

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उनके मुताबिक़ अभिभावकों की ओर से 5-6 लोगों को पंच चुना गया. पहले इन पंचों के सामने स्कूल मालिक ने माफ़ी मांगी. फिर उन्होंने सार्वजनिक तौर पर तमाम अभिभावकों से माफी मांगी. और इसी पंच ने इस गलती के प्रायश्चित के लिए इलाक़े के प्रमुख धार्मिक कार्यों के लिए 5 लाख 51 हज़ार का आर्थिक सहायता करने की बात कही. जिसे स्कूल प्रशासन ने अभी तक नहीं दिया है.

डॉ. शर्मा बताते हैं, ‘स्कूल में नमाज़ पढ़ाने के पीछे कोई साज़िश ज़रूर है. ऐसा करने के लिए स्कूल को कहीं न कहीं से मोटा पैसा ज़रूर मिला है. या फिर उन्होंने मुस्लिम बच्चों को आकर्षित करने के लिए ऐसा किया है.’

वो बताते हैं, ‘इस मुद्दे को अभी ठंडा नहीं होने देंगे. सीएम व शिक्षा मंत्री से जल्द ही इस सिलसिले में मुलाक़ात करेंगे. हमारे लोग अपने बच्चों को इस स्कूल से हटाना चाह रहे हैं, लेकिन यह स्कूल टीसी नहीं दे रहा है. इसी कारण मैनेजमेंट के कुछ लोग भी इस्तीफ़ा देने के मूड में हैं.’

इस सिलसिले में तावड़ू थाना के एसएचओ जयप्रकाश से बात करने पर बताते हैं, ‘इस संबंध में कोई एफ़आईआर या शिकायत थाने में नहीं आई है.’

थाने में हुई पंचायत के बारे में पूछने पर वे इंकार करते हैं कि थाने में ऐसी कोई पंचायत लगाई गई या किसी को कोई जुर्माना किया गया. हालांकि थाने में पंचायत हुई है, इसकी ख़बर फोटो के साथ कई प्रमुख समाचार-पत्रों ने भी प्रकाशित है.

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दिलचल्प बात यह है कि इसी थाने के मुंशी योगेश कुमार हमसे बातचीत में बताते हैं कि यहां पंचायत हुई थी. जो जुर्माना लगाया था उसे स्कूल ने अभी तक नहीं दिया है, इसको लेकर फिर से पंचायत होने की संभावना है.

बातचीत में जब हमने पूछा कि यदि स्कूल ने जुर्माना नहीं दिया तो? इस प्रश्न के उत्तर में उनका कहना था, ‘उग्र भीड़ कुछ करवा लेती है.’ तो फिर पुलिस किसलिए है? इसके जवाब में योगेश कुमार कहते हैं, ‘भीड़ के आगे तो सीएम भी फेल हैं, पुलिस क्या चीज़ है.’

सच तो यह है कि कुछ समय से देश के तमाम हिस्सों में इस तरह के प्रयोग किए जा रहे हैं. मुज़फ़्फ़रनगर से लेकर कैराना तक एक-एक घटना को नया मोड़ देकर माहौल बिगाड़ने की साज़िश रची जा रही है. इसी क्रम में अगली प्रयोगशाला मेवात का यह स्कूल भी बन रहा है.

लेकिन अब सवाल स्कूल में पढ़ रहे सभी बच्चों का है. क्या अब स्कूल का माहौल भी पूरी तरह से ख़राब कर दिया जाएगा? क्या बच्चों के मस्तिष्क में भी मज़हबी बातें भर दी गई हैं? सोचने वाली बात यह भी है कि आगे क्या होगा? क्या स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे अब आपसी भाईचारे और मुहब्बत के पहचान को धर्म के आईने से देखेंगे? कम से कम तावड़ू की इस घटना में समाज को तोड़ने की साज़िश करने वाली ताक़तों की कोशिश तो यही नज़र आती है.

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