Home Articles जानिए कि दुनिया में मुस्लिम न होते तो क्या होता?

जानिए कि दुनिया में मुस्लिम न होते तो क्या होता?

सिद्धांत मोहन, TwoCircles.net

बीते दिनों भाजपा की सांसद साध्वी प्रज्ञा ने कहा कि देश कांग्रेसमुक्त तो हो गया अब इसे मुस्लिममुक्त बनाना है. ऐसे भी राष्ट्रवाद की कट्टर बहसों में मुस्लिमों को पाकिस्तान पलायित कर देने की बात उठती रहती है. विकसित देशों में भी मुस्लिमों ने कई ऐसे आरोप झेले हैं. फ्लोरिडा में दो दिनों पहले हुए हमलों में फिर से समलैंगिक समुदायों के साथ-साथ मुस्लिम समुदाय पर भी औचित्य उठ रहे हैं. ऐसे में हम कुछ ऐसी सूची लेकर आए हैं, जिनसे पता चलता है कि विश्व में मुस्लिम यदि न होते तो क्या होता और क्या न होता

Poem of Devi Prasad Mishra on 16th May

1. कॉफ़ी

नौवीं शताब्दी में यमन में कॉफ़ी पहली बार बनायी गयी. यमन मूलतः अरब का मुस्लिम देश है. ऐसी मान्यता है कि कॉफ़ी का इस्तेमाल सूफी करते थे, वे रात में की जानेवाली अराधना के वक़्त इसे पीते थे. बाद में कुछ छात्रों द्वारा इस कैरो में लाया गया और कैरों के शासकों के बीच कॉफ़ी लोकप्रिय हो चली. तेरहवीं शताब्दी में तुर्की पहुंची. इसके बाद सोलहवीं शताब्दी आते-आते कॉफ़ी पूरे यूरोप पैदा और निकाली जाने लगी.
2. सर्जरी यानी शल्यचिकित्सा

ग्यारहवीं शताब्दी की शुरुआत में जाने-माने डॉक्टर अल ज़हरावी ने एक लगभग 1500 पृष्ठों की एक किताब प्रकाशित की थी. इस किताब को अगले 500 सालों तक यूरोप में सर्जरी के इनसाइक्लोपीडिया और मेडिकल के सन्दर्भों की तरह इस्तेमाल किया जाता रहा. ज़हरावी ने ही पहली बार सर्जरी में काम आने वाले घुल जाने वाले टांके इस्तेमाल में लाए. इसके पहले लगाए जाने वाले टांके काटने के लिए एक और सर्जरी करनी पड़ती थी. ज़हरावी को पहली बार सर्जरी के माध्यम से शिशु का जन्म कराने की ख्याति मिली हुई है.
3. बीजगणित

फारस के गणितज्ञ अल-ख्वारिज़मी की किताब ‘किताब अल-जब्र व इ-मुगाब्ला’ से बीजगणित यानी अलजेबरा की उत्पत्ति मानी जाती है. यह काम तब तक सामने नहीं आ पाया जब तक ब्रिटेन के रहने वाले अरबी विशेषज्ञ अलबर्ट ने इस पूरी किताब का अनुवाद नहीं कर लिया. मान्यता है कि इसी किताब के आधार पर संख्याओं को उनकी मात्रा के ज़रिए गुणात्मक रूप से बढ़ाने की प्रक्रिया सामने आयी. बाद में यह कहा जाने लगा कि बीजगणित की उत्पत्ति वेदों से हुई है और यह दलील दी गयी कि वेदों में लिखे गए गणितीय प्रमेय ही बीजगणित की रचना करते हैं. बाद में यह साफ़ हुआ कि वैदिक गणित आज के गणित से बिलकुल भिन्न है.

4. टूथब्रश

लगभग 600 ईस्वी के आसपास यह मालूम हुआ कि पैगम्बर मोहम्मद खुद को साफ़ रखने पर भरपूर जोर देते हैं. पहली बार टूथब्रश का इस्तेमाल पैगम्बर मोहम्मद ने ही किया था. मिस्वाक के पेड़ों की टहनियों से दांत साफ़ करने की प्रक्रिया पैगम्बर मोहम्मद ने ही शुरू की थी.

5. संगीत वाद्ययंत्र

कई वाद्ययंत्रों को बनाने का श्रेय मुस्लिम पद्धति और जीवनशैली को जाता है. इस प्रक्रिया में सबसे प्रचलित वाद्ययंत्र गिटार है. सबसे पहले इसे ‘आउड’ कहा जाता था. तत्कालीन मुस्लिमबहुल स्पेन के अभिलेखों में अंडलूसियन अरबी में ‘क़िटारा’ नामक वाद्ययंत्र का उल्लेख मिलता है. कहा जाता है कि इसे सबसे पहली बार एक संगीत शिक्षक ने उमायद के शासक आब्देल रहमान (द्वितीय) की अदालत में लाया था. तभी यह चलन में आया और स्पेन ही इस यंत्र का विकास हुआ, जिसे हम गिटार के रूप में जानते हैं. इसके साथ यह भी कहा जाता है कि संगीत में इस्तेमाल किया जाने वाले पश्चिमी नोट अरबी वर्णमाला से ही लिए गए हैं.

6. ऑप्टिक्स यानी प्रकाश का विज्ञान

बसरा के रहने वाले अबू अल-हसन को यह ख्याति प्राप्त है कि सबसे पहले उन्होंने ही मानव की आँख के काम करने के तरीके के बारे में बताया था. उन्होंने पारदर्शी शीशों का उपयोग करके आंखों के काम करने के तरीके की खोज की थी. एक तरह से चश्मों के उपयोग का श्रेय भी उन्हें ही जाता है क्योंकि सबसे पहले अबू अल-हसन ने ही बताया था कि गोलाई में मुड़े हुए शीशों की मदद से देखने की दिक्कतों का इलाज किया जा सकता है. यही नहीं, उन्होंने ग्रहों और तारों के विज्ञान पर भी बहुमूल्य लेख लिखे, जिनसे कई सिद्धांतों का आविष्कार किया गया.

इनके साथ ही मार्चिंग बैंड, कई दवाईयां, अस्पताल, सभ्यताएं, कई किस्म के बर्तन, स्थापत्य भी इस्लाम की ही देन हैं. इसे व्यक्ति के स्तर पर भी देखा जा सकता है, लेकिन यह तो साफ़ ही है कि दुनिया में यदि मुसलमान न होते तो ये चीज़ें भी नहीं होतीं.