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कैराना के लोग बदहाली का चाहते हैं पलायन

अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net

कैराना(उत्तर प्रदेश): इस नगर में में घुसते ही पलायन की वजहें साफ़ नज़र आती हैं. टूटी, जर्जर सड़कें, नदारद आधारभूत ढ़ांचा और ग़ायब स्कूल लेकिन वे सारी वजहें ढ़ूंढ़े भी नहीं मिलती, जिनका शोर मीडिया और साम्प्रदायिकता का कार्ड खेलने के लिए राजनीतिक दल और संगठन मचा रहे हैं.

Kairana

कैराना पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसी भी आम कस्बे जैसा ही है. कुछ भी ऐसा नज़र नहीं आता, जो इसे किसी और मुस्लिमबहुल कस्बे से अलग करता हो. जिस विकास की बात भारत में पिछले कुछ सालों से ज़ोर-शोर से हो रही है, वह यहां नहीं दिखता. स्थानीय लोगों से बात करने पर पता चलता है कि यहां का माहौल ख़राब करने की कोशिशें की जा रही हैं.

यहां के लोगों का कहना है कि इन कोशिशों का मक़सद कैराना के बुनियादी मुद्दों से ध्यान हटाकर लोगों को हिन्दू-मुसलमान के बीच उलझा देने का है.

शामली जिला, खासतौर पर कैराना कारोबारी बदहाली और नागरिक अव्यवस्था से बुरी तरह जूझ रहा है. इससे यहां की आबादी बुरी तरह परेशान हैं, जिसमें हिन्दू-मुसलमान दोनों शामिल हैं. यही वजह है कि रोज़ाना हज़ारों की तादाद में लोग मज़दूरी के लिए हरियाणा के पानीपत जाते हैं. हमने यहां हर वर्ग से जुड़े कई लोगों से बातचीत की. हिन्दू-मुसलमान दोनों ही खुलकर अपनी तकलीफों के बारे में बात करते हैं.

चौक बाज़ार के दुकानदार अशोक हों या बेगमपुरा में चूड़ी बेचने वाले अक़ील अहमद. कैराना के सांप्रदायिक सद्बाव पर दोनों की राय एक है. अशोक कहते हैं, ‘यहां के मुसलमान साम्प्रदायिक नहीं हैं. यहां का व्यापार व रोज़गार सबकुछ एक दूसरे से जुड़ा हुआ है. बस नेता कैराना को बदनाम करने की कोशिश कर रहे हैं.’

अक़ील अहमद कहते हैं, ‘यहां के दुकानदारों में कभी कोई तनाव नहीं रहा. सब मिलजुल कर एक व्यापार करते हैं. यहां कभी कोई साम्प्रदायिक तनाव नहीं हुआ.’

हफ़ीज़ुर्रहमान कहते हैं, ’67 साल की उम्र हो गई. यहां सब में भाईचारा है. यहां सब भाई-भाई हैं. ये नेता कुछ नहीं कर पाएंगे. यहां सब में भाईचारा है और हमेशा रहेगा.’ 70 साल के शौकत अली कहते हैं, ‘न कोई झगड़ा, न कोई फ़साद, न कोई मामला. लेकिन कैराना को बेवजह राजनीतिक मुद्दा बनाकर बदनाम किया जा रहा है. बाज़ार में अब ग्राहक नहीं आ रहे हैं. सारा धंधा चौपट हो गया है.’

60 साल के मो. इस्लाम कहते हैं, ‘यहां हिन्दू-मुसलमान कभी नहीं हुआ. ये सब सियासत है. यूपी में क्राईम कहां नहीं है? और हां, बदमाश, बदमाश होता है, उसे धर्म के साथ जोड़कर देखना सही नहीं है.’

30 साल के इमरान सांसद हुकुम सिंह से सवाल करते हुए कहते हैं, ‘सांसद हुकूम सिंह जी बस इतना बता दें कि उन्होंने कैराना के लिए पिछले दो सालों में क्या किया? आख़िर कैराना आज भी क्यों पिछड़ा हुआ है? मोदी जी की स्कीमों को वे कैराना में लागू क्यों नहीं करवा पाए?’ वहीं अहमद का सवाल है कि रोज़गार की तलाश में कैराना के 40 फीसदी से अधिक मुसलमान भी यहां से पलायन कर चुके हैं. हमारे बाबू जी (कैराना में लोग सांसद हुकूम सिंह जी को बाबू जी कहते हैं) इस पर कुछ क्यों नहीं बोलतें?

मिठाई की दुकान चलाने वाले इलियास अहमद कहते हैं, ‘पिछले दिनों मैंने पूरी क़ीमत देकर एक मकान खरीदा. इसके सारे सबूत मेरे पास मौजूद है. लेकिन मीडिया में पुराना मकान-मालिक मुंह पर कपड़ा डालकर यह बता रहा है कि मुसलमानों ने मेरा घर छीन लिया.’ इलियास बताते हैं कि उनकी दुकान पर हिन्दू कारीगर काम करता है. उसके बारे में मीडियावालों ने यह छापा कि मैंने उसे निकाल दिया, जबकि वह मेरी दुकान पर पिछले 13 सालों से लगातार काम कर रहा है. इलियास जल्द ही अपने पुराने मकानमालिक पर मुक़दमा करने की तैयारी कर रहे हैं कि उन्होंने झूठ क्यों बोला.

इलियास अपना गुस्सा यहां के सांसद हुकूम सिंह पर भी निकालते हैं. उनका कहना है कि सांसद ने आज तक कैराना का एक गढ्डा तक नहीं बनवाया. कैराना में कोई विकास आज तक नहीं हुआ. लोग काम के लिए पानीपत जाते हैं और हर रोज़ एक्सिडेंट में कोई न कोई मारा जा रहा है.

शामली नगर पालिक परिषद के नामित सभासद इकराम कुरैशी का कहना है, ‘मीडिया व नेताओं ने कैराना को बदनाम कर दिया. यहां के हालात पर कभी किसी ने कोई बात नहीं की. कैराना के विकास के मुद्दे पर कभी किसी मीडिया ने कुछ भी नहीं छापा.’ वे बताते हैं कि कैराना कस्बे में 80 फीसदी से अधिक मुसलमान हैं. यानी मुसलमान यहां बहुसंख्यक हैं. लेकिन यहां के व्यापार में मुसलमान अल्पसंख्यक है. 80 फ़ीसदी व्यापारी हिन्दू हैं.

इकराम जानकारी देते हैं, ‘जब 2013 में मुज़फ़्फ़रनगर व शामली दंगों की आग में जल रहे थे. तब भी कैराना में हिन्दू सुरक्षित थे. यहां के मुसलमानों ने खुद नारा दिया था कि यहां के हिन्दुओं की रक्षा करना हमारा धर्म है.’

कैराना में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा संचालित सरस्वती शिशु मंदिर 1977 से चल रहा है. और यहां हिन्दू-मुस्लिम दोनों के बच्चे पढ़ते हैं. इस स्कूल के शिक्षकों का कहना है कि कैराना में कभी दिक्कत नहीं हुई. यहां मुस्लिम बहुसंख्यक हैं. मुसलमानों के बच्चे भी स्कूलों में पढ़ते हैं. लेकिन कभी साम्प्रदायिक भय यहां नज़र नहीं आया. शिक्षक आपराधिक भय के माहौल की उपस्थिति के बारे में ज़रूर स्वीकारते हैं. आपराधिक भय के बारे में उनका दावा है कि ये यूपी के बाक़ी जिलों में कैरान्ना के मुक़ाबिले कहीं ज़्यादा है.

कैराना में 2014 में एक हिन्दू व्यापारी की हत्या के बाद मुसलमान व्यापारियों ने इसके विरोध में पूरे सात दिन अपनी दुकानें बंद रखीं थी. लेकिन यह सदभाव अब सियासी आग में बुरी तरह जल रहा है. यहां के लोग भी यह बखूबी समझ रहे हैं.

दुकानदारों का कहना है कि उन्हें सियासी दलों के सियासत से कोई लेनादेना नहीं है. उन्हें इससे कोई मतलब नहीं है कि कौन नेता क्या कह रहा है? उनकी ख्वाहिश बस यही है कि क़स्बा बस अमन-चैन से रहे और व्यापार पहले की चलता रहे.

कैराना उत्तर प्रदेश के आने वाले चुनावों का फ्लैश-प्वाईंट बन चुका है. सभी पार्टियां अपना-अपना गणित आजमा रही हैं. भाजपा सांसद हुकूम सिंह के पास इन सवालों का कोई जवाब नहीं है कि कैराना का पूरा ढांचा ही क्यों चरमराया हुआ है? असल मुद्दों से ध्यान बंटाकर दंगे जैसे हालात पैदा करने का यह खेल कब तक खेला जाएगा और इसके असल जिम्मेदारों की पहचान कब होगी? जिस क्षेत्र से हुकुम सिंह सात बार विधायक और अब सांसद चुने गए, वह ‘विकास के इंडेक्स’ पर बदहाल क्यों है?