Home India News टूटती नज़र आती लालू-नीतिश की दोस्ती

टूटती नज़र आती लालू-नीतिश की दोस्ती

अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net

पटना: बिहार में नीतिश-लालू सरकार के छः महीने पूरे हो चुके हैं. लेकिन इस छोटी अवधि में ही नीतिश और लालू की दोस्ती धीरे-धीरे खटाई में पड़ती दिखायी दे रही है.

लालू की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल के कई नेता मुख्यमंत्री नीतिश कुमार पर खुलेआम तंज कस रहे हैं. इस शुक्रवार को पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी के आवास पर राजद के राष्ट्रीय संसदीय दल की बैठक आयोजित हुई. इस बैठक से बाहर निकलते ही राजद के इन सांसदों के निशाने पर नीतिश कुमार थे. सांसद तस्लीमुद्दीन ने मीडिया से बातचीत में कह डाला कि नीतिश कुमार से क़ानून-व्यवस्था की ज़िम्मेदारी नहीं संभल रही है तो वे इस्तीफ़ा दे दें.

तस्लीमुद्दीन ने यह भी कहा, ‘बिहार तो सम्हल नहीं रहा है और मुख्यमंत्री दूसरे राज्यों में घूम रहे हैं.’ वहीं पूर्व केन्द्रीय मंत्री डॉ. रघुवंश प्रसाद सिंह ने महागठबंधन की सरकार पर सवाल उठाते हुए कहा, ‘यह महागठबंधन की सरकार कहां है, इसमें सिर्फ़ कुछ लोग ही शामिल हैं.’

डॉ. रघुवंश प्रसाद सिंह बातचीत में नीतिश कुमार पर सेकुलर राजनीतिक शक्तियों को कमज़ोर करने का आरोप लगाते हैं. वे कहते हैं, ‘नीतिश अकेले घूम-घूम कर सेकूलर ताक़तों को कमज़ोर कर रहे हैं.’ रघुवंश प्रसाद का कहना है, ‘बिहार की महागठबंधन सरकार में राजद भी शामिल है. नीतिश को राष्ट्रीय स्तर पर कोई भी मुहिम शुरू करने के पहले राज्य में अपनी साथी पार्टियों के साथ मिल-बैठ कर लीडर का चयन करना चाहिए, लेकिन वो ऐसा नहीं कर रहे हैं.’

पिछले दिनों नीतिश कुमार ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी से संघमुक्त व शराबमुक्त भारत का नारा दिया. नीतिश से पहले लालू प्रसाद यादव ने ऐलान किया था कि वे लालटेन लेकर बनारस पहुंचेंगे और पूरे मुल्क से भाजपा के सफ़ाया का नारा बुलंद करेंगे. लेकिन लालू से पहले नीतिश कुमार ने ही बनारस पर धावा बोलकर उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों की दिशा बदलनी चाही.

कहानी यहीं ख़त्म नहीं होती है. इससे पहले लालू के बेटे तेजस्वी यादव ने भी अपने विभाग की एक सड़क परियोजना के सरकारी विज्ञापन में नीतिश कुमार की तस्वीर गायब कर दी थि. विपक्ष ने जब सवाल उठाया कि ‘यह विवाद है या कोई नई नीति’ तो तेजस्वी यादव ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला देकर इस मसले को शांत करने का काम किया.

बताते चलें कि इस जदयू-राजद के गठबंधन में राजद का पलड़ा ज़्यादा भारी है. राजद के विधायक सबसे अधिक हैं. सूत्रों की माने तो 2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में राजद और जदयू की अलग-अलग चुनाव लड़ने की संभावनाएं हैं. राजद के नेताओं का मानना है कि बिहार में जिस तरह से मुलायम सिंह यादव ने ग़लती की थी, वही गलती लालू प्रसाद यादव यूपी में नहीं करना चाहते. लेकिन आलम यह है कि नीतिश कुमार मुलायम सिंह यादव से हाथ मिलाने को फिलहाल तैयार नहीं हैं.

ऐसे में देखा जाए तो नीतिश कुमार की कार्यशैली धीरे-धीरे ‘वन मैन शो’ होती जा रही है. नीतिश के एजेंडे में उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं साफ़ दिखाई दे रही हैं, जो 2019 के लोकसभा चुनावों से जुडी हैं.

यानी तमाम वादों और उम्मीदों के साथ सत्ता में आया महागठबंधन आपसी खींचतान और अवधारणा की राजनीति में उलझता दिखाई दे रहा है. ऐसे में सबसे बड़ा नुक़सान उन तमाम वोटरों का है, जिन्होंने इस महागठबंधन के सहारे बिहार के विकास का सपना देखा था.