भोपाल मुठभेड़, जो सिर्फ फर्जी नहीं थी, बल्कि उसे फर्जी दिखाया भी गया : कलीम सिद्दीकी

TCN News

‘गुजरात में जब तथाकथित पुलिसया मुठभेड़ में मुसलमानों का क़त्ल होता था तो गुजरात पुलिस उसे मुठभेड़ को सही मुठभेड़ बताने की कोशिश करती थी, लेकिन भोपाल मुठभेड़ ने नए ट्रेंड को जन्म दे दिया है. इस मुठभेड़ को फर्जी तरीके से किया ही नहीं बल्कि दिखाया भी गया कि यह मुठभेड़ फर्जी है ताकि विरोधी पार्टियाँ इस मुठभेड़ पर सवाल करें और इन नौजवानों के पक्ष में खड़ी हों. ताकि इससे होने वाले ध्रुवीकरण का लाभ भाजपा को मिल सके, क्योंकि गुजरात में हुए पाटीदार और दलित आन्दोलन ने भाजपा की राजनीतिक ज़मीन को मात्र गुजरात में ही नहीं बल्कि पूरे देश में हिला दिया,’ यह आरोप अहमदाबाद के सामाजिक कार्यकर्ता और इन्साफ फाउंडेशन के अध्यक्ष कलीम सिद्दीकी का, जो दलित आन्दोलन से भी जुड़े रहे हैं.


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घटना को संज्ञान में लेते हुए अहमदाबाद के सामाजिक संगठनो ने गुजरात की जेलों में बंद मुस्लिम कैदियों की सुरक्षा पर चिंता व्यक्त की है. ऐसी घटना गुजरात में न हो इसके लिए सामाजिक संगठनो, उनके कार्यकर्ताओं और वकीलों से सक्रिय रहने की अपील की गयी है. एक पत्र के द्वारा गुजरात के मुख्यमंत्री श्री विजय रूपानी से मांग की गयी है कि वे स्वयं गुजरात की जेलों में बंद मुस्लिम, दलित एवं आदिवासी विचाराधीन कैदियों की सुरक्षा को सुनिश्चित करें.

मीटिंग के दौरान सामाजिक कार्यकर्ता जावेद कुरैशी (जो मुस्लिम इलाके से गार्बेज डम्पिंग साईट के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे हैं) ने कहा, ‘दादरी कांड के आरोपी को तिरंगे में लपेटकर भाजपा के लोग शहीद घोषित कर देते हैं जबकि मुजीब व दीगर मुस्लिम नौजवानों को भारतीय मीडिया आतंकी घोषित कर देती है. इनसे तो बेहतर विदेशी मीडिया सीएनएन और बीबीसी हैं, जो मारे गए नौजवानों को आरोपी लिख रहे हैं. भारतीय संविधान के अनुसार जब तक उच्च न्यायालय में किसी आरोपी पर आरोप सिद्ध न हो जाएं तब तक ऐसे शब्दों का प्रयोग सही नहीं है.’

मुजीब शेख़ की मां मुमताज़ ने भी इस बात को लेकर आपत्ति दर्ज की है कि उसके शहीद बेटे को मीडिया आतंकी क्यों लिख रहा है जबकि उसका नाहक क़त्ल हुआ है. उन्होंने कहा कि वह शहीद है और मै एक शहीद की मां हूं. उन्होंने बताया कि जब वे अपने बेटे की लाश लेने भोपाल गयीं तो उन्हें गाँव के लोगो ने बताया कि उन सभी लोगो को पुलिस गाड़ी में लाई थी. पुलिस ने उन्हें गाड़ी से निकाला, छोड़ा और फिर मार दिया. उसका केस जल्द ही पूरा होने वाला था. उसके खिलाफ कोई पुख्ता सुबूत नहीं थे. उन्होंने कहा, ‘मुझे कानून पर पूरा भरोसा है. हम कानूनी लड़ाई लड़ेंगे ताकि जो मेरे बेटे के साथ हुआ है वह दूसरों के बच्चों साथ न हो.’

परिवार के लोगों ने बताया कि गोली के अलावा उसके सिर में चोट के निशान भी थे. पोस्टमार्टम के समय उसकी दाढी को भी काट दिया गया था, जो गलत है.

जनाज़े में शामिल दरियापुर के फरहान सैय्यद ने कहा कि हजारों की संख्या में अहमदाबाद के कोने-कोने से मुस्लिम जनाज़े में लोग शामिल हैं, लेकिन कांग्रेस पार्टी का कोई मुस्लिम नेता नजर नहीं आ रहा है जबकि कांग्रेस के पास में अहमदाबाद में बीस काउंसिलर और एक मुस्लिम एमएलए के लावा कई पदाधिकारी मुस्लिम हैं. यह मुस्लिम समाज के लिए एक निराशा है.

आने वाले दिनों में मुस्लिम संगठनो के अलावा दलित समाज के भी कई संघठन इस तथाकथित मुठभेड़ के विरोध में साझा विरोध दर्ज करें, इसके लिए रणनीति बनायी जा रही है ताकि दोबारा कोई ऐसी घटना न हो.

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