Home India News यादगार निशानियों के साथ ख़त्म हुआ साहित्य का इंटरनेशनल उत्सव

यादगार निशानियों के साथ ख़त्म हुआ साहित्य का इंटरनेशनल उत्सव

अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net

किशनगंज : बिहार के किशनगंज में चल रहे पहला ‘सीमांचल इंटरनेशनल लिटरेरी फेस्टिवल’ आज इस उम्मीद और अपने कई यादगार निशानियों के साथ ख़त्म हुआ कि साहित्य का ये जश्न अगले साल इससे भी अधिक धूमधाम से सेलिब्रेट किया जाएगा. सीमांचल के साहित्य का ये जश्न कई मायनों में अनोखा रहा. फनिश्वरनाथ रेणू की ज़मीन एक बार फिर साहित्य के रत्नों की आभा से प्रकाशवान नज़र आया.

‘सीमांचल इंटरनेशनल लिटरेरी फेस्टिवल’ का दूसरा और आख़िरी दिन संगीत, सिनेमा और साहित्य के नाम रहा. ख़ास तौर पर इस बात पर चर्चा की गई कि उर्द शायरी और हिन्दी सिनेमा का क्या संबंध है. इसके अलावा अल्लामा इक़बाल के जीवनी पर भी विस्तारपूर्वक चर्चा की गई. हिन्दी शायरी पर भी वक्ताओं ने अपनी बात रखीं. पब्लिशर की यात्रा पर भी एक परिचर्चा लोगों के ध्यान का केन्द्र बना.

Seemanchal Internatonal Literary Festival

अमीरूल्लाह खान के साथ उर्दू और सिनेमा के रिश्तों पर एक परिचर्चा के दौरान द हिन्दू –फ्रंटलाईन के सीनियर डिप्टी एडिटर ज़िया-उस-सलाम ने कहा कि –‘उर्दू किसी धर्म-विशेष की भाषा नहीं है, बल्कि हिन्दुस्तानियों की भाषा है. मुझे याद है कि 1975 के आस-पास ‘जय संतोषी मां’ नाम से एक फ़िल्म आई थी और पूरे दिल्ली में उसके पोस्टर उर्दू भाषा में लगे थे.’

उन्होंने इस परिचर्चा के दौरान कहा कि फिल्म के बहाने एक्टर और डायरेक्टर की बात तो खूब होती है, लेकिन वो जगह जहां यह सिनेमा आम जनता व दर्शकों से रूबरू होती है, उसकी कोई चर्चा नहीं करता.

Seemanchal Internatonal Literary Festival

ज़िया-उस-सलाम का इशारा सिनेमा घर की ओर था. उन्होंने बताया कि वो दिल्ली के सिनेमा घरों पर एक प्रोजेक्ट के दौरान कुछ काम करने की सोची. इस परिचर्चा के दौरान उन्होंने दिल्ली के कई सिनेमा घरों की कहानी सुनाई और बताया कि उन्होंने दिल्ली में बुरका पहनने वाली औरतों मदरसों के बच्चों और कुरआन व हदीस की तालीम देने वाले मौलानाओं को भी छुप-छुप कर फिल्में देखते हुए देखा है. पुराने दिल्ली में मदरसा के बच्चों के लिए एक ख़ास सिनेमा घर था, जिसमें खुफिया रास्तों से इनकी इंट्री होती थी और उसी रास्ते से इन बच्चों को बाहर निकाला जाता था. बुरके वाली औरतें पहले पर्दा बाग में जमा होती थीं, फिर वहां से जो सिनेमा घर दूर होता था, वहां जाया करती थी.

एक दूसरे सेशन में सिंगापुर में रहने वाले लेखक, पत्रकार और ‘किताब इंटरनेशनल’ नामक पब्लिशिंग कम्पनी के संस्थापक ज़फर हसन अंजुम और यूके में रहने वाले मशहूर उर्दू शायर डॉ. नदीम ज़फ़र ज़िलानी ने अल्लामा इक़बाल के ज़िन्दगी, फिलॉस्फ़ी और उनके सियासी सफ़र पर विस्तारपुर्वक परिचर्चा की.

Seemanchal Internatonal Literary Festival

ज़फ़र अंजुम ने कहा कि इक़बाल का साहित्य पुरे विश्व का साहित्य है. साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि इक़बाल भारत की विरासत हैं, पाकिस्तान की नहीं. इक़बाल ने जहां ‘सारे जहां से अच्छा, हिन्दुस्तां हमारा…’ लिखा और वहीं पाकिस्तान के लिए तराना-ए-मिल्लत भी. तो दूसरी ओर मुसोलिनी और वामपंथियों की भी तारीफ़ की. ज़फर ने कहा कि आज की तारीख में प्रधानमंत्री मोदी भी उतने ही ताक़तवर और प्रभावशाली हैं जैसे कि मुसोलिनी थे.

ज़फ़र अंजुम ने 2014 में ‘इक़बाल : द लाईफ़ ऑफ ए पोएट, फिलॉस्फ़र एंड पॉलिटिशियन’ पुस्तक लिखा है. इस किताब की ख़ासियत यह है कि एक आम अंग्रेज़ी पाठक जो इक़बाल को बहुत गहराई से नहीं जानता है, वो इस किताब को पढ़ने के बाद इक़बाल के ज़िन्दगी उनके फिलॉस्फी और सियासी ख्यालात को अच्छी तरह से जान जाएगा.

इसी परिचर्चा के दौरान नदीम ज़िलानी ने कहा कि इक़बाल ने गुरु नानक और श्रीराम के ऊपर भी नज़्में लिखी और राम को ‘इमाम-ए-हिन्द’ की उपाधि से नवाज़ा.

Seemanchal Internatonal Literary Festival

इसके बाद रिया मुखर्जी और आभा अयंगर द्वारा वर्तमान समय में लघु-कथाओं के लिखे जाने से सम्बंधित चुनौतियां और संभावनाओं पर चर्चा की. इस परिचर्चा की कमान नाज़िया हसन संभाल रही थीं.

कार्यक्रम के तीसरे हिस्से में लेखिका जयंती शंकर की नई किताब ‘होराइजन अ फार’ का विमोचन हुआ. मिली ऐश्वर्या ने ज़फर अंजुम के साथ वर्तमान प्रकाशन जगत की चुनौतियों के बारे में चर्चा की. मिली ऐश्वर्या पेंगुईन से जुड़ी हैं और इन दिनों इस प्रकाशन में कमर्शियल व बिजनेस से जुड़ी किताबों के लिए एडिटर इन चीफ़ हैं. मिली ने कहा कि पेंगुइन में उच्चतम स्तर की गुणवत्ता का लेखन ही छापा जाता है. भारतीय बाजार में किताबों की क़ीमत को लेकर लोग काफी संवेदनशील हैं. 50 रूपये के अंतर से भी किताबों की बिक्री बुरी तरह प्रभावित होती है.

इस लिटरेरी फेस्टिवल के आख़िर में मराठी फिल्म ‘यात्रा’ की स्क्रीनिंग की गई, जो यहां के लोगों के लिए आकर्षण का केन्द्र रहा. ज़फर अंजुम ने बताया कि इस फिल्म की ख़ास स्क्रीनिंग विश्व में पहली बार आज सीमांचल अंतराष्ट्रीय साहित्य उत्सव, किशनगंज में ही की जा रही है. विश्व के बाज़ारो में फिल्म को बाद में रिलीज़ किया जायेगा. इस तरह से किशन में दो दिन से चलने वाला साहित्य का इंटरनेशनल उत्सव ख़त्म हुआ.

Seemanchal Internatonal Literary Festival

इस पहले ‘सीमांचल इंटरनेशनल लिटरेरी फेस्टिवल’ की सोच को ज़मीन पर उतारने वाले ज़फ़र हसन अंजुम TwoCircles.net से बातचीत में बताते हैं कि एक छोटे से जगह साहित्य का ये अंतर्राष्ट्रीय उत्सव उम्मीद से अधिक कामयाब रहा. क्योंकि ये पहला साहित्य महोत्सव था, बावजूद इसके यहां के लोगों ने न सिर्फ़ इसमें बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया, बल्कि इसकी ज़रूरत भी महसूस की. उम्मीद की जानी चाहिए अगले साल का आयोजन इससे भी अधिक धमाकेदार होगा.

सच पूछे तो ये महोत्सव अरसे बाद साहित्य की इस बंजर हो चुकी ज़मीन पर सिर्फ़ पानी की छींटे की तरह ही था, लेकिन जाते-जाते इस बात का पैग़ाम ज़रूर दे गया कि अगले साल जमकर बरसेगा जिससे सीमांचल में साहित्य की ज़मीन को फिर से हमवार हो जाएगी.

सीमांचल का ये आयोजन एक यादगार मौक़े की तरह तारीख़ में दर्ज हो गया. इस मौक़े पर हुई परिचर्चाएं समाज व साहित्य की दशा को समझते हुए दिशा को तय करने का काम किया. जिस दौर में सरकार व प्रशासन साहित्य को लेकर लगातार उदासीन होती नज़र आ रही है, उस दौर में साहित्य का यह उत्सव उम्मीद की एक किरण दिखाता है.

उम्मीद की जानी कि सीमांचल के इस साहित्यिक महोत्सव के बहाने इस ज़मीन के एक से बढ़कर एक साहित्यिक प्रतिभाओं की उपलब्धियां उभर कर सामने आएंगी. कई ऐसे किरदार भी सामने रखे जाएंगे जो अपनी शानदार प्रतिभा के बावजूद समय की आंधी में उपेक्षित रह गए. सीमांचल के साहित्यिक ज़मीन को जल्द ही एक चमकता हुआ सूरज नसीब होगा. और उम्मीद इस बात की है कि इसके उजियारे से पूरा मुल्क ऊर्जावान व रोशन होगा.