एएमयू छात्र संघ चुनाव : वोटिंग कल, निशाने पर रहेंगे ज़मीरूद्दीन शाह

अफ़रोज़ आलम साहिल व अमित कुमार, TwoCircles.net

अलीगढ़ : 8 अक्टूबर यानी शनिवार का दिन अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) के लिए ‘जम्हूरियत के मौसम-ए-बहार’ का एक बेहद ही ख़ास दिन है. अगर यहां के छात्रों की मानें तो यह दिन छात्र संघ चुनाव के नतीजों के साथ-साथ एएमयू और मुस्लिम राजनीति का भविष्य भी तय करेगा.


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ऐसा कहा जाता है –‘ताज महल की सफ़ेदी मद्धम पड़ सकती है. लाल क़िला की सुर्खी कम हो सकती है, लेकिन एएमयू के छात्रों की तहज़ीब व यहां की रिवायत कभी ख़त्म नहीं हो सकती…’ यह रिवायत सड़े-गले तंत्र के ख़िलाफ़ जिहाद करने और सिस्टम को चुनौती देकर नए विचारों की खेप तैयार करने की है. एएमयू की हमेशा से यह परंपरा रही कि यहीं से देश के हर मज़लूम तबकों के लिए आवाज़ उठती रही है. इसकी झलक गुरूवार को गाजे-बाजे और आतिशबाज़ी के शोर के बीच यूनियन हॉल के प्राचीर से हुए फाइनल स्पीच में भी दिखी. यहां स्पीच दे रहे सचिव, उपाध्यक्ष व अध्यक्ष पद के उम्मीदवारों में कश्मीर को लेकर गुस्सा व चिंता भी दिखा. यहां के वाईस चांसलर ज़मीरूद्दीन शाह पर ‘मोदी-भक्त’ होने का आरोप भी लगा और साथ ही पिछले सालों में वाईस चांसलर द्वारा उठाए गए क़दमों की समीक्षा व उसकी जमकर आलोचना भी की गई.

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अध्यक्ष पद के उम्मीदवार मुहम्मद अब्दुल फ़राह शाज़ली ने कहा कि –‘हिन्दुस्तान के आज़ादी की सही दिशा सर सैय्यद अहमद खान ने दिखाई. सर सैय्यद ने उस वक़्त दलितों के हक़ के लिए आवाज़ उठाया था, जब देश में न मायावती थी और न कोई मंडल.’

शाज़ली ने यह भी कहा कि –‘वीसी साहब, पहले एएमयू का डेमोक्रेटिक कैरेक्टर बहाल करें, फिर इसके बाद माईनॉरिटी कैरेक्टर पर बात करें. एएमयू के छात्र अपना हक़ लेना बखूबी जानते हैं.’ शाज़ली ने कश्मीर को लेकर भी अपनी चिंता व्यक्त की. बताया कि 4 हज़ार लोग मारे जा चुके हैं, लेकिन पता नहीं, देश का मानवाधिकार आयोग कहां सोया हुआ है.

अध्यक्ष पद के उम्मीदवार फ़ैज़ुल हसन ने भी वीसी पर जमकर प्रहार किया. उन्होंने कहा कि –‘वर्तमान वीसी एएमयू के सबसे कम पढ़े-लिखे वीसी हैं. हम उन लोगों पर सवाल उठाते हैं, जिन्होंने इन्हें चुना.’

हसन ने आगे कहा कि –‘मैं अगर जीता तो एएमयू के माईनॉरिटी कैरेक्टर के लिए सुप्रीम कोर्ट जाउंगा, दिल्ली में धरना दूंगा.’ उन्होंने एएमयू में फैले भ्रष्टाचार पर भी जमकर बोला.

अध्यक्ष पद के उम्मीदवार मुहम्मद रिज़वान के निशाने पर भी वीसी ज़मीरूद्दीन शाह ही रहें. उन्होंने कहा कि –‘वीसी साहब गांधी जी की हत्या करने वालों के पक्षधर हैं. ये एएमयू के वक़ार को गिरा रहे हैं.’

आगे रिज़वान ने कहा कि –‘सियासत क्षेत्रवाद की नहीं, छात्रों के अधिकारों को लेकर होनी चाहिए. इस कैम्पस से दलाली ख़त्म करने की ज़रूरत है.’

इस बार एएमयू छात्र संघ चुनाव में अध्यक्ष पद के लिए पांच उम्मीदवार मैदान में हैं, लेकिन हसमुद्दीन व सलमान खान इस ऐतिहासिक स्पीच में मौजूद नज़र नहीं आएं. वहीं उपाध्यक्ष पद के लिए कहकशां खानम, मोहम्मद नदीम अंसारी, फ़रहान अली, जानिब हसन व मोहम्मद अराफ़ात हसन रिज़वी मैदान में हैं. सचिव पद के लिए मुहम्मद शिकोह, मोहम्मद इमरान गाज़ी, वरुण वार्षणेय, नबील उस्मानी व महफूज़ आलम अपने क़िस्मत की आज़माईश कर रहे हैं. इस बार फाईनल स्पीच के दौरान आज से 50 साल पहले 1966 में एएमयू छात्र संघ के अध्यक्ष रहे डॉ. मोहसिन रज़ा भी शामिल थे.

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बताते चलें कि थियोलॉजी डिपार्टमेंट में पीएचडी कर रही कहकशां खानम इस छात्र संघ चुनाव में एकमात्र महिला उम्मीदवार हैं. यहां यह भी स्पष्ट रहे कि इस फाईनल स्पीच में उम्मीदवारों को इस बार अपने मन की बोलने के बजाए एक टॉपिक दिया गया था. यह टॉपिक था –‘आज़ादी की लड़ाई में एएमयू का रोल’ लेकिन कई उम्मीदवारों ने इस टॉपिक का विरोध किया और कहा कि यह टॉपिक ‘एएमयू की बर्बादी में वीसी का रोल’ होना चाहिए. वहीं कहकशां खानम ने इसे वीसी की गुलाम ज़ेहनियत का परिचय होना बताया.

कहकशां ने यह भी कहा कि –‘जेएनयू में कन्हैया की ढ़ाल शहला राशिद है तो एएमयू में कहकशां खानम भी तैयार है.’ कहकशां इस स्पीच में बुर्के में आई थीं. और उन्होंने खुद ही इसका कारण बताते हुए कहा कि –‘मीडिया हमेशा बुर्के पर चीखती है. इसे टारेगट करती है. मैं आज बुर्के में इसलिए आई हूं, क्योंकि मैं अब इसी बुर्के को अपना परचम बनाउंगी.’

उम्मीद की जानी चाहिए कि एएमयू का यह छात्र संघ चुनाव इस बार देश के ताज़ा-तरीन मुद्दों पर छात्र-नेतृत्व का एक सशक्त उभार लेकर सामने आएगा. ख़ासकर देश के मुस्लिम युवाओं के बीच लोकतांत्रिक तरीक़ों से अपने अधिकारों को पहचानने और उन्हें हासिल करने का यह ‘छात्र-संघ चुनाव’ एक मंच साबित होगा. ये उम्मीद इसलिए भी और ज़्यादा ज़ोर पकड़ती जा रही है क्योंकि एएमयू के पास एक परंपरा है. एक विरासत है और देश की राजनीति व आज़ादी की लड़ाई में योगदान का एक ज़बरजस्त इतिहास है.

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