इस दशहरा व मुहर्रम के दिन भी हुई ‘अच्छाई पर बुराई की जीत’

अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net

दशहरा बुराई पर अच्छाई की जीत का पर्व है. मुहर्रम अच्छाई के लिए शहीद हो जाने की दास्तान. इन दोनों का साथ-साथ आना, साम्प्रदायिक सदभाव और बुराई पर अच्छाई की जीत का शाश्वत संदेश-सा है. ये दोनों ही त्योहार हिन्दू और मुसलमानों को अपने हक़-हक़ूक़ और सच्चाई की ख़ातिर खड़े होने और टकराने का हौसला देते हैं.


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गंगा जमुनी तहज़ीब के इस देश में होना तो ये चाहिए था कि लोग इस ख़ास मौके पर एक-दूसरे के धर्म को समझने की कोशिश करते, इन पुरानी दास्तानों से सबक़ लेते. लेकिन हुआ ये कि अख़बार छोटी-छोटी बातों पर फ़साद की कहानियां कह रहे हैं. यानी जिन त्योहारों का काम क़रीब लाने का था वो सियासत के मौसम में दूरियां बढ़ा रहे हैं.

अख़बारों की कतरनें बता रही हैं कि दशहरा व मुहर्रम के मौक़े से मुल्क में ख़ासतौर पर यूपी व बिहार में साम्प्रदायिक सौहार्द को बिगाड़ने का खेल जमकर खेला गया और क़ानून की धज्जियां खुलेआम उड़ायी गयीं.

एक ख़बर के मुताबिक़ उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद ज़िला के गोविन्द नगर इलाक़े में बजरंग दल कार्यकर्ताओं के ज़रिए हथियारों की पूजा की गई और पूजा के बाद हथियारों को लहराते हुए जमकर फायरिंग की गई. इस फायरिंग से इलाक़े के लोगों में दहशत फैल गई. हालांकि इस पूरे मामले में पुलिस ने तुरंत कार्रवाई करते हुए दो बजरंग दल कार्यकर्ताओं को गिरफ़्तार किया. देवबंद में भी रावण दहन को लेकर पुलिस व बीजेपी कार्यकर्ताओं में तकरार हुआ.

वहीं अलीगढ़ के जलाली इलाक़े में क़ब्रिस्तान की ज़मीन पर रावण जलाने से पूरे इलाक़े में तनाव फैल गया. यहां के अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों का आरोप है कि पुलिस की मौजूदगी में क़ब्रिस्तान के गेट का ताला तोड़ा गया और रावण दहन किया गया. यहां के लोगों का कहना है कि उन्हें रावण दहन से कोई समस्या नहीं है. हम लोग हर धर्म के त्योहारों की इज़्ज़त करते हैं, लेकिन बदले में कम से कम हमारे मस्जिदों व क़ब्रिस्तानों की तो इज़्ज़त की जाए.

यूपी के कुशीनगर जिले के बतरौली गांव में मूर्ति-विसर्जन के दौरान झड़प व पथराव के बाद पूरे इलाक़े का साम्प्रदायिक सदभाव बिगाड़ दिया गया. दोनों समुदाय के लोग आमने-सामने थे. पूरे इलाक़े में क़रीब तीन घंटे तक आगजनी और लूटपाट होती रही. दर्जनों दुकानों व मकानों को आग के हवाले कर दिया गया.

बलरामपुर में भी मूर्ति-विसर्जन जुलूस के दौरान जमकर पथराव हुआ, जिससे पूरे इलाक़े में तनाव फैल गया. चश्मदीदों के मुताबिक़ इस जुलूस में शामिल कुछ शरारती तत्वों ने एक मस्जिद पर अबीर-गुलाल उड़ाना शुरू किया. कुछ लोगों के ज़रिए मना किए जाने पर पहले गाली-गलौज और फिर पथराव शुरू कर दिया गया. जवाब में दूसरे समुदाय के लोगों ने भी पथराव किया.

गोंडा से भी मूर्ति-विसर्जन जुलूस के दौरान जमकर पथराव होने की ख़बर है. कुछ शरारती तत्वों ने नूरामल मंदिर के सामने मूर्तियों को रोक दिया. हल्की-फुल्की झड़प व पथराव के बाद पूरे इलाक़े में तनाव का माहौल रहा.

यूपी के इटावा शहर में मुहर्रम के जुलूस को लेकर मारपीट हुई. इस मारपीट की घटना से पूरे इलाक़े में तनाव फैल गया, लेकिन पुलिस की सूझबूझ से यह शहर जलने से बच गया.

बिहार की कहानी भी कुछ ऐसी ही रही. यहां मधेपुरा के बिहारीगंज में दुर्गापूजा के एक पंडाल में आरकेस्ट्रा के दौरान दो समुदाय के कुछ लड़कों में मारपीट हुई, आरकेस्ट्रा आयोजिक करने वालों ने एक खास समुदाय के लोगों को पीटकर पुलिस के हवाले कर दिया, जिसे बाद में पुलिस ने छोड़ दिया. अब उस लड़के ने अपने दोस्तों के साथ वापस आकर फिर से एक लड़के की पिटाई कर दी. बस इसे झगड़े को तुरंत साम्प्रदायिक रंग देकर पूरे इलाक़े में तनाव का माहौल बना दिया गया.

सीतामढ़ी के रिगा इलाक़े में भी मुहर्रम का जुलूस निकालने को लेकर दो समुदाय में झड़प हुई और पूरे इलाक़े का माहौल ख़राब किया गया. पूर्वी चम्पारण के तुरकौलिया में कुछ शरारती तत्वों द्वारा कथित तौर पर एक दुर्गा-पूजा पंडाल में तोड़फोड़ के बाद तनाव का माहौल बन गया. कई दुकाने जला दी गयीं. अफ़वाहों को रोकने के लिए पुलिस को इंटरनेट सेवा बंद करनी पड़ी. तुरकौलिया के साथ-साथ पूर्वी चम्पारण के कई गांव में अभी भी तनाव है. पश्चिम चम्पारण के बेतिया शहर में मुहर्रम के जुलूस पर पथराव करके साम्प्रदायिक सदभाव को बिगाड़ने की कोशिश की गयी.

ये सिर्फ़ वे घटनाएं हैं, जिसे सिर्फ़ एक अख़बार के दिल्ली संस्करण को पढ़कर लिखा गया है. अगर विस्तृत रूप में बाक़ी अख़बारों का अध्ययन किया जाए तो ऐसी अनगिनत घटनाएं पिछले दो दिनों में हुई हैं. इसके अलावा साम्प्रदायिक सदभाव बिगाड़ने के ऐसी सैकड़ों घटनाएं हैं, जिन्हें किसी अख़बार ने कवर नहीं किया है.

इस रिपोर्ट को लिखने के दौरान कई सवाल पैदा हो रहे हैं. लेकिन इन सवालों का क्या? इनके जवाब अगर ढ़ूंढ़ने निकल गए तो और भी कई सवाल पैदा होंगे. लेकिन सच तो यह है कि यदि इन त्योहारों का औचित्य हम नहीं समझ सकते तो फिर इन्हें मनाने का मक़सद क्या है? सवाल है कि देश के एक बड़े सूबे में इन महान त्योहारों के मौक़ों पर सदभाव बिगाड़ने की कोशिश क्यों की गयी? सरकार क्यों हाथ पर हाथ धरे बैठी रही? क्या ये सिलसिला चुनावी राजनीति के आने वाले तूफान का संकेत नहीं है, ये सोचने वाली बात है.

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