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मैंने उस जुर्म की 8 साल सज़ा काटी, जो मैंने किया ही नहीं – मोहम्मद नूर अहमद

अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net

जमशेदपुर (झारखंड) : ‘मैंने उस जुर्म की सज़ा काटी, जो मैंने कभी किया ही नहीं.’ ये बातें हैं 36 साल के मो. नूर अहमद की हैं, जो अपनी ज़िन्दगी के बेशक़िस्मती आठ सालों को जेल की सलाखों के पीछे गुज़ारकर आए हैं.

नूर अहमद को कोलकाता एटीएस ने 13 जनवरी 2006 के दिन नूर के आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैय्यबा के सदस्य होने के आरोप में उनके घर से उठाया था. उन पर देशद्रोही गतिविधियों में संलिप्त होने का भी आरोप लगा था. इसके अलावा नूर के ख़िलाफ़ आरोपों की एक लम्बी फ़ेहरिस्त भी थी. बावजूद इन सभी आरोपों के नूर अहमद पूरे 8 साल जेल में गुज़ारने के बाद 2014 के फरवरी महीने में कोलकाता के अदालत से बाइज़्ज़त बरी हो गए हैं. अदालत ने इन्हें निर्दोष माना.

नूर अहमद TwoCircles.net के साथ बातचीत में बताते हैं, ‘पूरे 8 साल में मैं अपनी मां को हमेशा बेबस देखता था. मुझसे मुलाक़ात का वक़्त दिन के तीन बजे होता था लेकिन मां सुबह के 10 बजे ही पहुंच जाती थी. घंटों खड़े होकर मेरा इंतज़ार करती थी. ये सब देखकर मेरा दिल रो उठता था.’

नूर अहमद बताते हैं, ‘जेल में तरह-तरह के ख़्याल व सवाल आते थे. सबसे बड़ी चिंता इस बात की होती थी कि जेल से जब जेल से रिहा होकर जाएंगे तो खुद को लोगों के सामने कैसे पेश करेंगे? कैसे फिर से ज़िन्दगी की नई शुरूआत करेंगे?’
आगे नूर बताते हैं, ‘रिहाई के बाद अल्लाह ने हमें हिम्मत दी. मैंने नई ज़िन्दगी की शुरूआत की. इसमें घर के लोगों ने मेरा पूरा साथ दिया. हालांकि कुछ लोग मुझसे डरे-सहमे ज़रूर रहें.’

नूर अहमद अपनी ज़िन्दगी की उन बुरी यादों को अब हमेशा के लिए भुला देना चाहते हैं. लेकिन नूर का कहना है, ‘8 साल जेल में काटकर बाइज़्ज़त बरी हो चुका हूं. लेकिन आज भी झारखंड में कुछ भी कहीं होता है तो कुछ गिने-चुने मीडिया वाले फिर से मेरा नाम उछाल देते हैं. पता नहीं वो क्या सोचकर ऐसा करते हैं.’

नूर अहमद स्थानीय मीडिया से काफी नाराज़ नज़र आते हैं. वे बताते हैं कि जब वे गिरफ़्तार हुए थे तो सबने ख़बर लगायी. लेकिन जब वे रिहा होकर बाहर आए तो किसी ने एक कॉलम की भी ख़बर नहीं लिखी. बस TwoCircles.net ने रिहाई की ख़बर लिखी थी. इसके अलावा स्थानीय दैनिक हिन्दुस्तान ने एक छोटी-सी ख़बर लगाई थी.

नूर अहमद कहते हैं, ‘आख़िर ये मीडिया वाले अदालत की तौहीन क्यों करते हैं? ऐसा अगर फिर से कुछ किया तो इस बार मैं इनके ख़िलाफ़ मानहानि का मुक़दमा दायर करूंगा.’

नूर पश्चिम बंगाल के मानव अधिकार आयोग से अपील करते हैं कि कोलकाता के जेलों में आज भी हर क़ैदी को पूरी तरह से नंगा कर दिया जाता है. यह अमल गैर-इंसानी है. अमानवीय है. आयोग इस पर पाबंदी लगाए.

नूर अहमद ने इसी 24 अक्टूबर को झारखंड के राज्यपाल को ज्ञापन देकर अल्पसंख्यक और दलितों पर हो रहे जुल्म पर विरोध जताया है और मांग की है कि बालूमाथ में पीड़ितों के परिजनों को मुआवजा दिया जाए. साथ ही हज़ारीबाग में तौसिफ़ पर जो जुल्म हुआ है, उसके खिलाफ़ पुलिसकर्मियों पर मामला दर्ज किया जाए.

बताते चलें कि नूर अभी रियल इंडिया फाउंडेशन नामक एक ट्रस्ट बनाकर जमशेदपुर में शिक्षा व स्वास्थ्य के क्षेत्र में काम कर रहे हैं. साथ ही नूर झारखंड कांग्रेस प्रदेश कमिटी के अल्पसंख्यक विभाग के उपाध्यक्ष भी हैं.

आख़िर में वे कहते हैं कि समाज-सेवा की अभी सख्त ज़रूरत है. इसकी शुरूआत आप अपने घर से कर सकते हैं. मैं समाज के हर तबक़े के लोगों से अपील करूंगा कि ज़रूरत पड़ने पर वे रक्तदान ज़रूर करें. किसी को अपना खून देते समय यह न सोचें कि जिसको खून दे रहा हूं वो किस जाति, धर्म या समुदाय का है.