मुज़फ़्फ़रनगर दंगे में हुए अनेकों क़त्ल जिन्हें क़त्ल नहीं माना गया…

TwoCircles.net Staff Reporter

मुज़फ़्फ़रनगर साम्प्रदायिक हिंसा के दौरान अनेकों ऐसे क़त्ल के मामले सामने हैं, जिन्हें सरकार व प्रशासन ने ’सांप्रदायिक हिंसा’ के दौरान हुआ क़त्ल नहीं माना है.


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इन तमाम मामलों का खुलासा मुज़फ़्फ़रनगर साम्प्रदायिक हिंसा की चौथी बरसी पर रिहाई मंच द्वारा जारी एक रिपोर्ट ‘सरकार दोषियों के साथ क्यों खड़ी है?’ से होता है. यह रिपोर्ट मानवाधिकार कार्यकर्ता एडवोकेट असद हयात, रिहाई मंच के महासचिव राजीव यादव व प्रवक्ता शाहनवाज़ आलम ने तैयार की है.

इस रिपोर्ट का कहना है कि –‘सांप्रदायिक हिंसा के दौरान जहां लाशों को गायब किया गया, वहीं कई मामले ऐसे भी सामने आएं, जिनमें क़त्ल कर देने के बाद लाशों को अज्ञात लाश बताकर पुलिस द्वारा दफ़ना दिया गया और इन हत्याओं को सांप्रदायिक हिंसा के दौरान हुआ क़त्ल नहीं माना गया. यहां तक कि पुलिस विवेचक द्वारा झूठी गवाहियां और कहानियां भी गढ़ी गयीं.

कुछ ऐसे ही मामले आप यहां देख सकते हैं :-

1. मेहरदीन निवासी ग्राम डूंगर थाना फुगाना का क़त्ल :- मेहरदीन ग्राम डूंगर का निवासी था, जो अपनी पुत्री के साथ गांव में रहता था. पत्नी की मृत्यु हो चुकी थी और सभी पुत्र पंजाब में मजदूरी करते थे. 7 सितंबर 2013 की रात को सांप्रदायिक तत्वों नें नंगला मंदौड़ की महापंचायत से लौटकर गांव में मुसलमानों के घरों पर पथराव किया. इसी रात को मेहरदीन गायब हो गया. 8 सितंबर की सुबह उसका शव नग्न अवस्था में पवन जाट के घेर में बल्लियों में लटका हुआ मिला. ग्राम प्रधान राम चंदर ने मुसलमानों को धमकाया और मेहरदीन की पुत्री को अपने भाइयों से बात नहीं करने दी और फोन बंद करा दिए. इतना ही नहीं, आनन-फानन लाश को दफ़नवा दिया. गांव से सभी मुस्लिम परिवार पलायन कर गए. राहत शिविरों में आकर पीड़ितों ने इस घटना की जानकारी सामाजिक संगठनों को दी. इस पर रिहाई मंच प्रवक्ता राजीव यादव द्वारा थाना फुगाना में रिपोर्ट मुक़दमा अपराध संख्या -439/2013 दर्ज कराई गई और चश्मदीद गवाहों के बयानों की वीडियो को एफ़आईआर के साथ संलग्न किया गया. पुलिस द्वारा क़ब्र को खुदवाकर पोस्टमार्टम नहीं कराया गया, जबकि यह रिपोर्ट 29 सितंबर2013 को ही दर्ज करा दी गई थी. यह मामला भी विशेष विवेचना सेल को जांच के लिए सौंपा गया. विवेचक द्वारा सभी चश्मदीद गवाहों के बयान दर्ज किए गए और मेहरदीन की पुत्री का भी बयान दर्ज किया गया. विवेचक से बार-बार अनुरोध लिखित में किया गया कि लाश को क़ब्र से निकलवाकर पोस्टमॉर्टम करवाया जाए, परन्तु उनके द्वारा ऐसा नहीं किया गया. ज़िलाधिकारी मुज़फ्फ़रनगर द्वारा एसडीएम बुढ़ाना के नेतृत्व में टीम गठित की गई, जिससे कि लाश को क़ब्र से निकलवाकर पोस्टमॉर्टम करवाया जा सके. परन्तु जनवरी 2014 में गठित इस टीम ने अभी तक लाश को क़ब्र से निकलवाकर पोस्टमार्टम नहीं करवाया है. ऐसा जानबूझ कर किया गया है जिससे कि अभियुक्तों को लाभ हो सके.

2. आमिर पुत्र रईसुद्दीन की हत्या :- रईसुद्दीन द्वारा रिहाई मंच के प्रवक्ता राजीव यादव और शाहनवाज़ आलम तथा आवामी कौंसिल को अपनी दर्द भरी दास्तान सुनाई गई. रईसुद्दीन ने दिनांक 1 अक्टूबर 2013 को थाना बुढ़ाना में अपनी रिपोर्ट दर्ज कराई, जो बाद में संबंधित थाना बिनौली जनपद बागपत को स्थानांतरित की गई, जिस पर मुक़दमा अपराध संख्या -24/2013 क़ायम हुआ. लगभग तीन महीने का समय इस रिपोर्ट को थाना बुढ़ाना से थाना बिनौली पहुंचने में लगा. जबकि रिपोर्ट में ही यह लिखा है कि आमिर की लाश को सांप्रदायिक तत्वों ने पुलिस की मिलीभगत से दफ़ना दिया है, जिसका क़ब्र से निकलवाकर पोस्टमार्टम करवाया जाए. परन्तु इस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई. रिपोर्ट में जो तथ्य घटना के संबंध में दिए गए हैं, उनके अनुसार दिनांक 7 सितंबर 2013 को सांप्रदायिक माहौल होने के कारण रईसुद्दीन और उसका परिवार गांव से पलायन कर गए और 6 किलोमीटर दूर दूसरे गांव में अपने रिश्तेदारों के घर चले गए. 12 सितंबर 2013 को आमिर ने अपने पिता, माता और पत्नी से कहा कि घर का हाल जान लिया जाए और कुछ ज़रूरी सामान भी ले आया जाए, इसलिए वह साइकिल से अपने गांव अंछाड़ वापस आया. परन्तु शाम तक जब वापस नहीं लौटा और मोबाइल भी ऑफ रहा, तब माता-पिता और पत्नी शाम के समय गांव पहुंचे. जहां घर के अंदर देखा कि आमिर का शव छत से फांसी की अवस्था में लटका था. शोर मचाने पर आस-पड़ोस के लोग इकट्ठा हो गए, जिनमें कोई भी मुस्लिम नहीं था. ग्राम प्रधान सहित दूसरे अभियुक्तों ने रईसुद्दीन, उसकी पत्नी तथा आमिर की पत्नी को अपने घेरे में ले लिया. पुलिस को सूचना मिली और पुलिस मौक़े पर पहुंची. रईसुद्दीन ने पुलिस से कहा कि यह हत्या का मामला है, परन्तु ऊंची पहुंच वाले गांव के दबंग अभियुक्तों ने लाश को दफ़नवा दिया और कहा कि आमिर की मौत बीमारी से हुई है. इतना ही नहीं अभियुक्तों ने कहा कि आमिर को उन्होंने 80 हज़ार रुपया क़र्ज़ दिया था और जब तक यह अदा नहीं होगा तब तक रईसुद्दीन, उसकी पत्नी व मृतक आमिर की पत्नी गांव में ही मकान के अंदर बंद रहेंगे. रईसुद्दीन ने इसका विरोध किया और कहा कि आमिर ने कोई क़र्ज़ नहीं लिया था और यह कहानी झूठी है. परन्तु उनकी एक न चली. पुलिस ने उनकी कोई मदद नहीं की. इस तरह रईसुद्दीन, उसकी पत्नी व मृतक आमिर की पत्नी मकान के अंदर बंद रहें और किसी तरह अपने रिश्तेदारों की मदद से 80 हज़ार रुपये देकर गांव से बाहर निकल पाएं.

3. एहसान का क़त्ल :- एहसान अपनी दूसरी पत्नी रेश्मा व बच्चों के साथ बड़ौत में रहता था और फेरी लगाकर कबाड़ इकट्ठा करता था. दिनांक 15 सितंबर 2013 को वह कबाड़ इकट्ठा करने के लिए ग्राम फ़तेहपुर पुट्ठी थाना बिनौली पहुंचा. जहां मुस्लिम होने के कारण सांप्रदायिक तत्वों ने पीट-पीट कर उसकी हत्या कर दी. सांप्रदायिक तत्वों द्वारा मुक़दमा अपराध संख्या -332/2013 थाना बिनौली में दर्ज कराया गया कि घास काटने वाली महिलाओं ने बताया कि पाइप काटने वाले चोरों का गिरोह एक ट्यूबवेल पर पाइप काट रहा है. इस समाचार को सुनकर ग्रामीण दौड़ पड़े. ग्रामीणों को आता देखकर गिरोह भाग निकला, परन्तु उसका एक सदस्य पकड़ लिया गया जिसको भीड़ ने पीटा है जो मौक़े पर ही पड़ा है. पुलिस द्वारा यह रिपोर्ट दर्ज कर ली गई. जब शाम को रेश्मा को कुछ चश्मदीद गवाहों से इसकी जानकारी मिली तो वह गवाहों के साथ अपनी रिपोर्ट दर्ज कराने थाना बिनौली पहुंची. परन्तु पुलिस ने उसकी तहरीर के आधार पर रिपोर्ट दर्ज नहीं की और उस तहरीर में कुछ काटने के लिए कहा जिसका विरोध रेश्मा और चश्मदीद गवाहों ने किया. किसी तरह यह रिपोर्ट मुक़दमा अपराध संख्या -332ए/2013 थाना बिनौली में दर्ज हो पाई. तब से अब तक पुलिस द्वारा रेश्मा और उसके चश्मदीद गवाहों का बयान दर्ज नहीं किया गया है. विवेचना में अभी तक यह साफ़ नहीं हो सका है कि वो घास काटने वाली महिलाएं कौन थीं, जिन्होंने ग्रामीणों को पाइप काटने वाले कथित गिरोह की जानकारी दी थी.

4. इंतज़ार का क़त्ल :- इंतज़ार ग्राम दोघट में निवास करता था, जिसकी उम्र 16 वर्ष थी. दिनांक 09 सितंबर 2013 की सुबह पवन नामक व्यक्ति गांव में मुसलमानों के साथ गाली-गलौच करने लगा. पवन नंगला मंदौड़ की पंचायत में गया था जिसका हवाला देकर वह कह रहा था कि ‘मुसलमानों ने बहुत बर्बरता पूर्वक सचिन व गौरव की हत्या की है, जिसका बदला लिया जाना है’ पवन ने यह धमकी इदरीस और उसके साथी सलीम को दी. इस घटना को कई मुसलमानों ने देखा. 8 सितंबर 2013 को जनपद बागपत में कई स्थानों पर सांप्रदायिक हिंसा हो चुकी थी और मुसलमान भयवश पलायन कर रहे थे. 9 सितंबर 2013 को इंतजार की लाश एक खेत में मिली. घटना के संबंध में इदरीस ने मुक़दमा अपराध संख्या -300/2013 थाना दोघट में दर्ज कराया, जिसमें यह स्पष्ट उल्लेख है कि इदरीस व सलीम को पवन ने धमकी दी थी. परन्तु विवेचना के दौरान पुलिस द्वारा यह कहानी उलट दी गई. पुलिस ने मुख़बिर के बयान के आधार पर यह कहानी गढ़ी कि इंतजार के साथ सलीम दुष्कर्म करता था. सलीम ने पवन को भी इसमे शामिल होने के लिए कहा और जब सलीम और पवन ने मिलकर इंतजार के साथ सामूहिक दुष्कर्म, खेत में करने का प्रयास किया तो इंतजार ने इसका विरोध किया. इसी दौरान सलीम और पवन ने इंतजार की हत्या कर दी और लाश को खेत में छोड़ दिया. पुलिस द्वारा इदरीस के ही कुछ रिश्तेदारों को गवाह बनाया गया जिसमें इन गवाहों ने कहा कि उन्होंने सलीम और पवन को खेत की तरफ़ से भागकर सड़क पर आते हुए देखा. इतना ही नहीं पुलिस द्वारा सलीम और पवन का इक़बालिया बयान भी दर्ज कर लिया गया. इस तरह पुलिस द्वारा सांप्रदायिक हत्या के मामले को दुष्कर्म का मामला बना दिया गया. इदरीस और उसके परिजन जिन्हें पुलिस चश्मदीद गवाह बता रही है, पुलिस की कहानी को झूठा बता रहे हैं. उनका कहना है कि उन्होंने पवन और उसके अज्ञात साथियों को खेत से भागते हुए देखा था जहां से इंतजार की लाश मिली और उनमें सलीम नहीं था. सलीम को वह अच्छी तरह जानते और पहचानते हैं. इदरीस का कहना है कि मुझे और सलीम को पवन द्वारा धमकी दी गई थी, तब किस तरह सलीम पवन का साथी हो सकता है. इदरीस और सलीम दोनों का कथन है कि दुष्कर्म की कहानी पुलिस द्वारा गढ़ी गई है. पुलिस की इस कहानी से मृतक इंतजार के सम्मान और गरिमा को भी चोट पहुंची है.

5. ख़लील की हत्या :- ख़लील की पत्नी नजराना नें अपनी रिपोर्ट मुक़दमा अपराध संख्या -43/2014 थाना बागपत में दर्ज कराई. पुलिस द्वारा घटना के तत्काल बाद उसकी रिपोर्ट दर्ज नहीं की गई थी. बाद में न्यायालय के आदेश पर यह मुक़दमा दर्ज हुआ. रिपोर्ट में दर्ज विवरण के अनुसार 10 सितंबर 2013 को जब नजराना अपने पति खलील के साथ बस में बैठकर बागपत आ रही थी, तब बस में गांव काठा में तीन-चार व्यक्ति चढ़ गए. उसे बुर्के में देखकर उससे पूछने लगे कि तुम्हारे साथ कौन-कौन है. इन व्यक्तियों ने नजराना और उसके पति खलील को बस से उतार लिया. नजराना का कहना है कि इसके बाद खेत में ले जाकर नजराना के पति की हत्या कर दी गई. यह सब उसके सामने हुआ. नजराना मदद के लिए बस स्टैंड की तरफ़ वापस भागी किन्तु किसी ने उसकी मदद नहीं की. तब वह अपने परिजनों के पास गई और पुलिस को साथ लेकर घटना स्थल पर पहुंची, जहां उसकी लाश गायब थी परन्तु मौक़े पर खलील का खून सना बनियान और खून सना पत्थर पुलिस द्वारा बरामद किया गया. परन्तु पुलिस द्वारा इन सभी को दबा दिया गया. हिन्दुस्तान समाचारपत्र में 13 सितंबर 2013 को समाचार प्रकाशित हुआ कि पुलिस के कहने पर गोताखोरों ने यमुना में खलील की लाश को तलाशा किन्तु लाश नहीं मिली. अमर उजाला में 15 सितंबर 2013 को समाचार प्रकाशित हुआ कि खून सना बनियान और पत्थर बरामद हुआ है, हालांकि मीडिया द्वारा भी कहानी को ट्विस्ट किया गया. प्रश्न यह है कि पुलिस द्वारा तुरंत ही नजराना की रिपोर्ट दर्ज क्यों नहीं की गई? और क्यों नजराना को न्यायालय की शरण में रिपोर्ट दर्ज कराने के लिए जाना पड़ा. इसका एक ही जवाब है कि बागपत पुलिस पूरी तरह संवेदनहीन थी और अभियुक्तों को लाभ पहुंचाने और सबूत मिटाने का कार्य कर रही थी. मामले में अभी तक पुलिस द्वारा नजराना और उसके गवाहों के बयान दर्ज नहीं किए गए हैं.

6. चांद हत्याकांड :- मृतक चांद के भाई मक़सूद निवासी ग्राम काठा ने थाना बागपत में मुक़दमा अपराध संख्या -608/2013 दर्ज कराई है. रिपोर्ट के अनुसार नामजद तीन अभियुक्तों ने जिनमें एक ग्राम प्रधान का भाई और दूसरा बीडीसी सदस्य का भाई है, चांद के पास घर पर दिनांक 9 सितंबर 2013 को आए थे और चांद से कहा कि 50 हज़ार रुपया लेकर चलो तुम्हें स्क्रैप (कबाड़) सस्ते दामों में दिलवाऊंगा. चूंकि दोनों अभियुक्तों का घर आना-जाना था इसलिए विश्वास करके चांद उनके साथ चला गया, परन्तु वापस नहीं लौटा. काफी तलाश की गई. चश्मदीद गवाह नसीम और शाहिद ने बताया कि उन्होंने अंतिम बार चांद को अभियुक्तों के साथ गांव की सीमा से बाहर बने एक ट्यूबवेल के पास सड़क पर देखा था और जब उससे पूछा तो उसने बताया कि मैं इन लोगों के साथ जा रहा हूं और हम यहां खड़े हो कर कुछ लोगों का इंतजार कर रहे हैं. जानकारी मिलने पर मक़सूद ने अभियुक्तों से पूछा परन्तु उन्होंने कहा कि हमें नहीं मालूम कि वह कहां गया है. दस दिन तक तलाश चलती रही मक़सूद को पता चला कि पुलिस ने एक अज्ञात लाश को दफ़न कराया है, तो जाकर पता किया. मक़सूद ने चांद के कपड़े देख कर पहचाना. पुलिस ने बताया कि इस अज्ञात व्यक्ति की लाश 9 सितंबर को ट्यूबवेल के पास मिली थी, जिसे पंचनामा भर कर दफ़ना दिया गया. पंचनामे के गवाह ग्राम प्रधान व बीडीसी बने और ग्राम चौकीदार सलादउ्दीन के हस्ताक्षर भी बतौर गवाह पंचनामे पर हैं. लाश के फोटो भी कराए गए हैं. इसका उल्लेख भी पंचनामे पर है. मक़सूद ने कहा कि ग्राम प्रधान, बीडीसी और ग्राम चौकीदार तीनों ही चांद को अच्छी तरह जानते और पहचानते थे, जिसका सबूत अनेक फोटोग्राफ़ हैं, जिनमें यह साथ-साथ खड़े हैं. तब क्यों अज्ञात में लाश को दफनाया गया? मक़सूद ने पुलिस से लाश का फोटो मांगा तो काफी आनाकानी के बाद एक ऐसा फोटो मक़सूद को दिखाया गया जिसमें लाश का कोई भी अंग स्पष्ट नहीं है. और न ही उसका चेहरा, हाथ, पैर दिखाई देते हैं. स्पष्ट है कि यह लाश जो फोटो में दिखाई गई है वह किसी अन्य व्यक्ति की है. पंचनामे के गवाह ग्राम चौकीदार का कहना है कि पुलिस दरोगा ने उसको ग्राम प्रधान के घर पर बुलाया था, जहां पर ग्राम प्रधान और बीडीसी की उपस्थिति में उससे जबरन पंचनामे पर बतौर गवाह हस्ताक्षर करवाए गए. उसने लाश नहीं देखी और न ही लाश उसके सामने सील हुई और उसे दरोगा द्वारा बताया गया कि लाश को पोस्टमॉर्टम हेतु भेजा गया है. पोस्टमॉर्टम के बाद लाश कहां दफ़नायी गई, इसका पता उसे नहीं है.

पुलिस द्वारा कुछ अभियुक्तों को गिरफ्तार किया गया. जिन्हें छोड़ने के लिए सपा सरकार में शामिल एक दर्जा प्राप्त मंत्री वीरेंद्र सिंह ने पुलिस विवेचक को फोन करके अभियुक्तों को छोड़ देने के लिए कहा जिसे विवेचक ने मना कर दिया. इस पर विवेचक की मंत्री से झड़प भी हुई. विवेचक द्वारा इसका विवरण मंत्री के फोन नम्बर व नाम सहित थाना बागपत की जीडी में दर्ज कराया गया. तफ्तीश पर यह फोन नम्बर मंत्री का ही निकला. मक़सूद को अभी तक न्याय नहीं मिल सका है.

अन्य मामले :- इसी प्रकार ग्राम लाख निवासी इक़बाल की हत्या का मामला है, जिसकी हत्या सांप्रदायिक तत्वों ने की. परन्तु पुलिस द्वारा उसे खेत में करंट लगने से हुई मौत बता दिया गया. जबकि चश्मदीद गवाह इसे सांप्रदायिक हत्या बता रहे हैं. घटना के संदर्भ में मुक़दमा अपराध संख्या -145/2013 थाना आदर्श मंडी शामली में दर्ज हुआ है.

दूसरा मामला शकील की हत्या का है, जो बहावड़ी ग्राम का निवासी था. पुलिस द्वारा एक अज्ञात लाश को शकील के पुत्र दिलशाद को दिखाया गया और अनपढ़ दिलशाद से शिनाख्त करा ली गई कि यह लाश शकील की ही है. लाश चेहरे से नहीं पहचानी जा सकती थी. बाद में पुलिस ने कहा कि यह लाश शकील की नहीं हो सकती, क्योंकि पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में मृतक की उम्र 25 साल लिखी है, जबकि मृतक शकील की उम्र 45 से ज्यादा होनी चाहिए. इसी कारण दिलशाद को अभी तक मुआवज़ा नहीं मिल सका और यह रहस्य भी और गहरा हो गया कि आखिर यह लाश किसकी थी? इसका जवाब पुलिस के पास नहीं है, परंतु सुप्रीम कोर्ट के समक्ष विवेचना सेल ने अपनी पीठ स्वयं थपथपाई कि कितनी निष्पक्ष विवेचना की जा रही है.

तीसरा मामला मुज़फ्फ़रनगर निवासी साबिर का है, जिसके पिता बहादुर उर्फ शकील ने गुमशुदगी की रिपोर्ट थाना बुढ़ाना में दिनांक 16 सितंबर 2013 को दर्ज कराई. इसी प्रकार इस्लामुद्दीन और निसार की गुमशुदगी का मामला है जिसके संबंध में थाना भोपा में मुक़दमा नम्बर -465/2013 दर्ज है. थाना रतनपुरी में गांव टोड़ा निवासी रिटायर्ड हवलदार नफ़ीस अहमद की गुमशुदगी का मामला भी दर्ज है, जिसकी हत्या हो गयी है, क्योंकि 8 सितंबर 2013 से गुमशुदा यह व्यक्ति अभी तक अपने घर वापस नहीं लौटा है.

गुमशुदगी का एक मामला जावेद का भी है, जो कृष्णापुरी मुज़फ्फ़रनगर से दिनांक 12 सितम्बर 2013 से गायब है. जिसकी रिपोर्ट थाना कोतवाली मुज़फ्फ़रनगर में जावेद की मां फ़रजाना ने दर्ज कराई. आसिफ़ निवासी ग्राम नियाजूपुरा मुज़फ्फ़रनगर की गुमशुदगी के बारे में उसके वालिद मोहम्मद हयात ने रिपोर्ट दर्ज कराई. आसिफ़ 7 सितम्बर 2013 से गायब है. गुमशुदगी से संबंधित बहुत से अन्य मामले भी हैं.

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