महाराष्ट्र के अंडरट्रायल क़ैदियों की खुशी का सबब बने जावेद

अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net

दिल्ली : महाराष्ट्र की जेल में क़ैद जावेद नाम के एक शख़्स की मुहिम ने क़ैदियों की ज़िन्दगी में एक बड़ा बदलाव ला दिया है. महाराष्ट्र की विभिन्न जेलों में बंद हज़ारों अंडरट्रायल क़ैदी अब अपने परिजनों से टेलीफोन पर बात कर सकेंगे. महाराष्ट्र जेल प्रशासन यहां की सभी जेलों में टेलीफोन लगाने का पूरी योजना तैयार कर चुका है.


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इस योजना के तहत पहली ‘क्वाइन बॉक्स सुविधा’ राज्य के सांगली जिले की जेल में शुरू की गयी है. अब यहां के क़ैदी हर हफ्ते पांच मिनट अपने घर बात कर सकेंगे. जिला कलेक्टर शेखर गायकवाड़ ने बीते मंगलवार को सांगली जेल में इस सुविधा का उद्घाटन किया. इससे पहले यह सुविधा सिर्फ़ सज़ायाफ्ता क़ैदियों के लिए थी.

बताते चलें कि तक़रीबन साढ़े सात साल से जेल की सलाखों के पीछे ज़िन्दगी गुज़ार चुके जावेद ए अब्दुल माजिद ने अंडरट्रायल क़ैदियों के हक़ के ख़ातिर मुम्बई हाईकोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया था. उसकी मांग थी कि जेल में बंद हर अंडरट्रायल कैदी को अपने घरवालों से बातचीत की सुविधा मिलनी चाहिए, क्योंकि उनका दोष सिद्ध नहीं हुआ है और क़ानून उन्हें दोष साबित होने तक बेगुनाह मानता है.

जावेद की सबसे अहम दलील यह थी कि देश के दूसरे राज्यों की जेलों में अंडरट्रायल क़ैदियों को यह सुविधा उपलब्ध कराई जा रही है तो फिर महाराष्ट्र के क़ैदियों के साथ यह भेदभाव क्यों?

जावेद से हमारी मुलाक़ात 2015 में भारत सरकार के कार्मिक मंत्रालय के लिए रिसर्च के दौरान हुई थी. जावेद तब साढ़े सात साल मुंबई की आर्थर रोड जेल में बतौर अंडरट्रायल क़ैदी गुज़ार कर ज़मानत पर रिहा हुए थे.

उन्होंने उस मुलाक़ात में बताया था, ‘मेरी मां व 75 साल की दादी मुझसे जेल में मिलना चाहती थी. लेकिन उनके लिए मुझसे मिलना काफी कठिन काम था. बावजूद इसके वे तमाम परेशानियों को झेलकर मुझसे मिलने आते थे. कई बार उन्हें सड़कों के किनारे इधर-उधर रात गुज़ारनी पड़ती थी. पुलिस मिलाने के नाम रिश्वत मांगती थी.’

उनका कहना था, ‘असल मुद्दा यह है कि जिनका परिवार दूर रहता है, उन्हें अपने लोगों से मिलने के लिए तरसना पड़ता है और मिलने के सिवाय उनसे बात करने का कोई दूसरा तरीक़ा भी नहीं है. पुलिस हमें तो परेशान करती ही है, परिवार के लोगों को भी परेशानी में डालती है. तभी मैंने जेल में मुलाक़ात को लेकर एक आरटीआई फाईल की. मैंने आरटीआई के माध्यम से सूचना जमा की कि बंगलौर सेन्ट्रल जेल, पश्चिम बंगाल के जेलों व दिल्ली के तिहाड़ जेल व रोहिणी डिस्ट्रीक जेल में क़ैदियों को अपने घर बात करने के लिए टेलीफोन की सुविधा मिली हुई है. इसके लिए जेल प्रशासन ने कुछ समय व रेट तय किया हुआ है. इससे दूर के क़ैदियों का यह फ़ायदा होता है कि उन्हें अपने परिवार को मिलने के लिए बुलाना नहीं पड़ता. फोन के माध्यम से ही बात हो जाती है. लेकिन इस तरह की सुविधा अभी महाराष्ट्र के जेलों में नहीं है. हमने सूचना एकत्रित करके बॉम्बे हाईकोर्ट में एक पीआईएल फाइल की, जिसे कोर्ट ने 05 अगस्त, 2013 को रिट पेटिशन के तौर पर स्वीकार कर लिया है.’

जावेद ने जेल के अंदर कई आरटीआई डाले थे. हालांकि ज़्यादातर आरटीआई पुलिस स्टेशन के संबंध में थे. इसके अलावा उन्होंने मेडिकल सुविधाओं को लेकर भी आरटीआई डाली थी. कैंटीन के संबंध में भी आरटीआई डाली थी. क्योंकि कैंटीन में रेट का मसला हमेशा से रहा है और जावेद की नज़र इस पर बनी हुई थी. कैंटीन में सामान सही नहीं होते और रेट दोगुने-तिगुने होते हैं. जावेद की आरटीआई के बाद से जेल में कई मामलों में कुछ बदलाव भी आया था.

बहरहाल, कोर्ट के इस फैसले से भले ही उनकी ज़िन्दगी में कोई रोशनी नहीं आने वाली, लेकिन महाराष्ट्र के जेलों में बंद तक़रीबन 18 हज़ार अंडरट्रायल क़ैदियों की ज़िन्दगी में एक नई रोशनी ज़रूर पैदा कर दी है.

जावेद औरंगाबाद असलहा कांड मामले में महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले के तलोजा जेल में अपनी 8 साल की सज़ा काट रहा है, जिसमें से उसने 7.5 साल ट्रायल के दौरान ही काट दिए. महाराष्ट्र के हर अंडरट्रायल क़ैदी को जावेद की कोशिश ने अपने घरवालों के साथ एक भावनात्मक जुड़ाव बनाए रखने का सुनहरा मौक़ा ज़रूर दे दिया है. जावेद का प्रयास इच्छाशक्ति और कोशिश की सफलता का एक जीता-जागता उदाहरण है.

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