Home Adivasis सिंगरौली : क्या यहां जनतंत्र कॉर्पोरेटतंत्र बन चुका है?

सिंगरौली : क्या यहां जनतंत्र कॉर्पोरेटतंत्र बन चुका है?

TwoCircles.net News Desk

सिंगरौली : ‘पिछले दस सालों से हम कंपनी से अपनी जीविका, आवास और मुआवजे की मांग कर रहे हैं, लेकिन कंपनी लगातार हमारी मांगों को अनसुनी करती चली आ रही है. शुरुआत में कंपनी ने हमें विकास का सपना दिखाया था, लेकिन आज हमारे हिस्से प्रदूषण और राखड़ के अलावा और कुछ नहीं आया. हम इस जन परामर्श में माननीय लोगों के माध्यम से अपनी समस्या को सरकार और देश के सामने रखने आये हैं.’

ये बातें आज मध्य प्रदेश के सिंगरौली कस्बे के नगवां ग्राम में महान संघर्ष समिति की तरफ़ से आयोजित एक जन-सुनवाई के दौरान महान संघर्ष समिति के कार्यकर्ता व नगवा निवासी दिनेश गुप्ता ने कही.

बताते चलें कि मध्य प्रदेश के सिंगरौली कस्बे में एस्सार पावर प्लांट से विस्थापित हुए बंधौरा, नगवां, खैराही, कर्सुआ लाल गांव के ग्रामीण इस जन-सुनवाई में देश के प्रतिष्ठित नागरिकों के सामने विस्थापितों ने अपनी समस्या को रखा. इस जन-सुनवाई के पैनल में सुप्रीम कोर्ट के वकील राहुल चौधरी, प्रणव सचदेवा, राज्यसभा टीवी से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश तथा राष्ट्रीय जनआंदोलनों के समन्वय (एनएपीएम) के राष्ट्रीय संयोजक प्रफुल्ला सामंता शामिल थे.

एनएपीएम के राष्ट्रीय संयोजक प्रफुल्ला सामंत ने कहा, ‘पहले से कार्यक्रम की जो जगह तय थी, उसे पुलिस ने बंद कराने की कोशिश की. ग्रामीणों में धारा-144 लगाने संबंधी अफ़वाह फैलाई गयी.  लोगों से पता चला कि यहां कंपनी के आने के बाद मुआवजा नीति का सही से पालन नहीं किया गया है. कर्सुआ लाल गांव में सिर्फ़ 25 प्रतिशत ग्रामीणों को मुआवजा दिया गया है, जबकि 75 प्रतिशत ग्रामीण अभी भी अधर में लटके है, उनसे कंपनी कहती है कि हम आपका ज़मीन नहीं लेंगे, जबकि ज़मीन पर ग्रामीणों को मालिकाना हक़ भी नहीं दिया जा रहा है. हमारे पास कई ऐसे समझौते के कागज़ आये जिसमें नौकरी का वादा किया गया था, लेकिन नौकरी नहीं दी गयी. सबसे बड़ी दिक्कत है कि ज़िला प्रशासन भी इस तरफ़ कोई ध्यान नहीं दे रही है. मध्य प्रदेश सरकार को एक विशेष समिति बनाकर लोगों की समस्याओं को सुलझाना चाहिए.’

पैनल में शामिल नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के वकील राहुल चौधरी ने कहा, ‘विस्थापन को लेकर जो भी क़ानून हैं, खासकर भूमि अधिग्रहण क़ानून की नीतियों को लागू नहीं किया गया है. पर्यावरण क्लियरेंस के वक्त भी इन नीतियों को लागू करने से संबंधित कागजात दिये जाते हैं, लेकिन यहां आकर लग रहा है कि क्लियरेंस लेने में भी गड़बड़ी की गयी है.’

सुप्रीम कोर्ट वकील प्रणव सचदेवा के अनुसार, ‘समान्यतः ऐसी सुनवाईयों में प्रशासन, कोर्ट और दूसरे संबधित पक्षों का भी रहना ज़रुरी है. लोगों को सुनने के बाद हम कोशिश करेंगे कि एक रिपोर्ट जारी करें.’

राज्यसभा टीवी के वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश ने लोगों की समस्याओं को सुनने के बाद कहा, ‘लोगों के बुनियादी अधिकारों का हनन किया गया है, उन्हें अपने जड़ और ज़मीन से उखाड़ कर विस्थापित होने को मजबूर किया गया और उन्हें उनका अधिकार भी नहीं दिया गया. दूर से सुनने में और यहां ज़मीन पर आकर देखने पर स्थिति बहुत अलग है. यहां स्थिति बहुत भयानक है. साफ दिख रहा है कि यहां जनतंत्र कॉर्पोरेटतंत्र बन चुका है.’

स्पष्ट रहे कि सिंगरौली में एस्सार पावर प्लांट से विस्थापित खैराही, बंधौरा, नगवां और कर्सुआलाल गाँव के ग्रामीण पिछले 5 दिसंबर से अनशन पर बैठे हुए हैं. ये ग्रामीण पिछले दस सालों से अपने विस्थापन और भूमि के एवज में मुआवजा, नौकरी, प्लॉट आदि कानून सम्मत अधिकारों की मांग कर रहे हैं. लेकिन कंपनी उनकी आवाज़ को अनसुनी करती आई है. कार्यक्रम में कुल 285 ग्रामीणों ने अपनी समस्या के बारे में लिखित आवेदन दिया, जिनमें 126 आदिवासी समुदाय से हैं.