Home Lead Story समाजवादी पार्टी मुसलमान विरोधी पार्टी है –शफ़ीक़ुर्रहमान बर्क़

समाजवादी पार्टी मुसलमान विरोधी पार्टी है –शफ़ीक़ुर्रहमान बर्क़

शफ़ीक़ुर्रहमान बर्क़

अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net

सम्भल: कभी समाजवादी पार्टी के आधार स्तंभ रहे शफ़ीक़ुर्रहमान बर्क़ अब असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (मजलिस) के साथ हैं. उन्होंने न सिर्फ़ मजलिस का दामन थामा है, बल्कि उनके पोते ज़ियाउर्रहमान बर्क़ सम्भल विधानसभा सीट से मजलिस के टिकट से चुनाव भी लड़ रहे हैं. माना जा रहा है कि शफ़ीकुर्रहमान बर्क़ ने मजलिस का हाथ अपने पोते को सपा से टिकट न मिलने के बाद थामा है.

TwoCircles.net ने डॉ. शफ़ीक़ुर्रहमान बर्क़ से बातचीत की और जानना चाहा कि उनके मजलिस में आने की वजह क्या है और वो अब समाजवादी पार्टी के बारे में क्या सोचते हैं.

शफ़ीक़ुर्रहमान बर्क़

डॉ. बर्क़ का कहना है, ‘मैं बुनियादी तौर पर तो सपा का आदमी था बल्कि मैं सपा का संस्थापक सदस्य हूं. लेकिन इस पार्टी में मेरे साथ काफी नाइंसाफ़ी हुई. मुझे पार्टी ने ही 2014 के लोकसभा चुनाव में सम्भल से हरवाने का काम किया. बेईमानी करके मुझे हरवाया गया.’

डॉ. बर्क़ ने स्पष्ट तौर पर कहा, ‘यहां मुझे ज़बरदस्ती हरवाया गया है. मैं सपा का प्रत्याशी था और सपा ही मुझे हरवा रही थी. यहां के एमएलए – मंत्री इक़बाल महमूद मेरा समर्थन करने के बजाय बसपा के उम्मीदवार को वोट डलवा रहे थे. खुद भी, उनका सारा परिवार और सपा का सारा संगठन मेरी मुख़ालफ़त कर रहा था. इक़बाल महमूद ने संगठन के साथ मिलकर आरएसएस के आदमी को जितवाया. मैंने मुलायम सिंह से कहा था कि यहां के एमएलए को पार्टी को निकाला जाए, लेकिन मुलायम ने आज तक कोई एक्शन नहीं लिया.’


लंबी बातचीत में डॉ. बर्क़ कहते हैं, ‘सपा ने मुसलमानों के लिए कुछ नहीं किया. मुसलमानों से जितने वादे किए थे, उसमें से एक भी पूरा नहीं किया. खुद मुलायम ये कह चुके हैं कि उनका लड़का अखिलेश मुसलमान विरोधी है. अब आप ही बताईए कि एक ऐसी पार्टी जो मुसलमानों के ख़िलाफ़ काम कर रही हो, उसे मुसलमान वोट क्यों दे?’

सपा छोड़ने की वजह पूछने पर डॉ. बर्क बताते हैं, ‘उन्होंने तो मेरी हैसियत ही नहीं समझी. मेरे साथ दोहरी पॉलिसी अपना रहे थे.’ उन्होंने आगे कहा, ‘जो बेटा अपने बाप व चाचा का नहीं, वो मुसलमानों का क्या होगा.’

बाप-बेटे के झगड़े को वो कैसे देखते हैं, इस सवाल पर डॉ. बर्क़ का कहना है, ‘बाप-बेटे के झगड़े से सपा को फ़ायदा नहीं, नुक़सान होगा. ये एक गेम था और इस गेम से पार्टी को फ़ायदा कम, नुक़सान ज़्यादा मिलेगा.’


ओवैसी बड़े नेता हैं या शफ़ीकुर्रहमान बर्क़, इस सवाल पर डॉ. बर्क़ मुस्कुराते हुए कहते हैं, ‘वो यहां आए हैं और लेकिन मैं तो यहां नया नहीं हूं, पुराना हूं. इसी वजह से यहां एकदम से पार्टी का बोलबाला भी हो गया.’ वो आगे कहते हैं, ‘उनका (ओवैसी) जलवा अपनी जगह है, उसमें अब इज़ाफ़ा हो गया है. जहां तक मेरे जलवे की बात है, तो मेरा तो जलवा ही जलवा है. पूरे हिन्दुस्तान में लोग मुझे जानते व पहचानते हैं.’

मुसलमानों के मौजूदा हालात पर बोलते हुए डॉ. बर्क़ कहते हैं, ‘मुसलमानों को अब अपने मुस्तक़बिल के बारे में सोचना होगा. एकजुट होकर आगे आना होगा. मैं हिन्दस्तान के अंदर मुसलमानों का इत्तेहाद चाहता हूं. मुसलमान टुकड़ों में बंटा हुआ है. बिरादरियों व नज़रियात में बंटा हुआ है, लेकिन बहैसियत एक क़ौम मुसलमानों का इत्तेहाद अब ज़रूरी है. मुसलमान अगर मुत्तहिद होकर काम करे तो इस देश की तस्वीर ही बदल जाएगी. ये देश और तरक़्क़ी कर जाएगा.’

86 साल के डॉ. शफ़ीक़ुर्रहमान बर्क़ संभल सीट से 1974, 1977, 1985 और 1989 में विधायक रह चुके हैं. पहले बसपा में थे और 1990-91 में वो यूपी के कैबिनेट मंत्री थे. उसके बाद 11वीं, 12वीं, 14वीं व 15वीं लोकसभा चुनाव में इस ज़िला से जीत दर्ज करके सांसद भी बने. 15 अप्रैल 2009 को सपा और अपने सांसद पद से इस्तीफ़ा देकर बसपा में शामिल हो गए और 15वीं लोकसभा चुनाव में बसपा के टिकट से अपनी जीत दर्ज की. 2014 लोकसभा चुनाव में वापस फिर से सपा के प्रत्याशी थे और भाजपा के सत्यपाल सिंह से 5174 वोटों के अंतर से चुनाव हार गए.