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रायबरेली : यहां है कांग्रेस की प्रतिष्ठा की लड़ाई

अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net

रायबरेली : रायबरेली की जंग बेहद ही दिलचस्प हो चुकी है. कभी कांग्रेस का गढ़ रहा ये जिला इस समय त्रिकोणीय संघर्ष के दौर से गुज़र रहा है. बावजूद इसके ज़्यादातर लोगों का मानना है कि इस बार रायबरेली सदर सीट पर मुक़ाबला आमने-सामने का है. 

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रायबरेली के रॉबिन हुड कहे जाने वाले यहां से पांच बार विधायक रहे और पिछले 13 सालों से कांग्रेस को कोसते रहने वाले अखिलेश सिंह की बेटी अदिति सिंह इस सीट पर आकर्षण का केन्द्र बनी हुई हैं. अमेरिका से मैनेजमेंट में ग्रेजुएशन पूरा करने के बाद लौटकर रायबरेली की धूल भरी गलियों में क़िस्मत आज़मा रही अदिति को खुद प्रियंका गांधी पार्टी में लेकर आई हैं. इसीलिए राहुल के साथ-साथ प्रियंका ने भी यूपी में अपने प्रचार का आगाज़ यहीं से किया. बल्कि आगाज़ के साथ-साथ ये भी कह सकते हैं कि प्रियंका के प्रचार का ख़ात्मा भी यहीं हुआ, क्योंकि रायबरेली के अलावा वो कहीं भी प्रचार के लिए नहीं गई. ऐसे में यहां की सियासी लड़ाई पर प्रदेश भर की निगाहें टिक गई हैं.

उद्योग-धंधों के लिहाज़ से रायबरेली में वायदों की फैक्ट्री लगी हुई है, मगर ज़मीन पर स्थितियां अलग नज़र आती हैं. आज भी रायबरेली व आसपास के गांव वाले इस उम्मीद के साथ कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी की ओर अपेक्षा व उम्मीद भरी नज़रों से देख रहे हैं कि कब उनकी नज़र इनायत होगी और रायबरेली का कायाकल्प हो जाएगा.

रायबरेली रेलवे स्टेशन के क़रीब ही एक मोटर गैरेज में काम करने वाले 45 साल के राजू इस बात को लेकर परेशान हैं कि रायबरेली में उद्योग-धंधों के लिहाज़ से कुछ खास बचा नहीं हैं. सड़कों की हालत भले ही सही है, लेकिन सड़कों का सिस्टम कभी-कभी दिल रूला देता है. सड़कों पर लगने वाला जाम यहां की सबसे बड़ी परेशानी है. दूसरा रोज़गार के लिहाज़ से यहां कुछ खास नहीं है. यहां के ज़्यादातर नौजवान लखनऊ में रिक्शा चला रहे हैं. 

इस बार के चुनाव में वोट किसे देंगे? इस सवाल पर वे अखिलेश सिंह का नाम लेते हैं. लेकिन अखिलेश सिंह तो चुनाव लड़ ही नहीं रहे हैं? तो जवाब था, ‘तो क्या हुआ. उनकी बिटिया तो है. बात तो वही है ना.’ आप उनकी बिटिया को वोट किस आधार पर दे रहे हैं? जवाब था, ‘कोई आधार नहीं है. सब सभे दे रहे हैं तो हमहूं दे रहे हैं. वैसे भी लड़ाई में वही है. और कौन है.’

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लेकिन अनिल सिंह का मानना है कि यहां लड़ाई में कांग्रेस की अदिति सिंह के साथ-साथ बसपा के शाहबाज़ खान भी हैं. और कहीं ऐसा न हो कि इन दोनों की लड़ाई में भाजपा के अनिता श्रीवास्तव न निकल जाएं. क्योंकि पिछले चुनाव में भाजपा भी ठीकठाक वोट ले आई थी. 

बताते चलें कि 2012 के चुनाव मे यहां से अखिलेश सिंह की जीत हुई थी. उन्हें 75588 वोट मिले थे, वहीं सपा के राम प्रताप यादव ने दूसरे स्थान पर रहते हुए 46094 वोट पाए थे. कांग्रेस के अवधेश बहादुर सिंह को 35660 वोट मिले और तीसरे स्थान पर रहे.    

19 साल की अंजली कुमारी पहली बार वोट दे रही हैं. वोट देने को लेकर वो काफी उत्साहित हैं. उनका कहना है, ‘अदिति दीदी काफी पढ़ी-लिखीं हैं. अमेरिका में पढ़ी हैं. वो चाहती थी तो वहां रहतीं, ऐश की ज़िन्दगी गुज़ारतीं, खूब पैसे कमाती, बावजूद उनको हमारी फिक्र है. इससे अधिक हम सबके लिए फ़ख्र की बात क्या हो सकती है. इस बार यहां के सारे युवा उन्हीं को वोट देंगे.’ ऐसी ही बातें सोनू, अमजद, इरशाद, अंकित व पूजा सिंह की भी हैं. खासतौर पर यहां के युवाओं का रूझान अदिती सिंह की ही ओर है. 

वहीं हरेराम मिश्रा का कहना है, ‘अभी अखिलेश की बिटिया राजनीतिक रूप से परिपक्व नहीं है. वो गांव के समस्याओं से भी अंजान हैं. ऐसे में ज़्यादातर लोग आकर्षण में उनके साथ नज़र आ रहे हैं. लेकिन वोट वाले दिन वो वोट किसी और ही प्रत्याशी को देंगे.’ हरे राम के मुताबिक़ बसपा प्रत्याशी शाहबाज़ खान काफी मज़बूत हैं क्योंकि वो यहीं के रहने वाले हैं. उन्हें दलित वोटों के साथ-साथ मुस्लिम वोट भी खूब मिलेंगे.  

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रायबरेली में जीत-हार सीधे कांग्रेस के प्रतिष्ठा से जुड़ गई है. एक महत्वपूर्ण बात यहां की दो सीटों पर सपा-कांग्रेस का आमने-सामने होना भी है. ऐसे में नतीजे क्या होंगे, ये कांग्रेस-सपा गठबंधन की ताक़त के साथ ही इन दोनों ही पार्टियों के व्यक्तिगत दमखम की भी निशानी होगी. 

स्पष्ट रहे कि रायबरेली जिले में 6 विधानसभा सीटें हैं. इस बार रायबरेली से चुनाव में 13 प्रत्याशी चुनावी मैदान में हैं. कांग्रेस से अदिती सिंह, बसपा से मो. शाहबाज़ खान, भाजपा से अनीता श्रीवास्तव, रालोद से भारती पांडे, आज़ाद भारत पार्टी से मानवेन्द्र सिंह, जस्टिस पार्टी से रमेश कुमार, बहुजन मुक्ति पार्टी से राजेश कुमार, राष्ट्रीय जन अधिकार पार्टी से विश्वनाथ वर्मा, समतावादी रिपब्लिकन पार्टी से साबिर खान और मानवतावादी समाज पार्टी से सोनू लाल चुनावी दंगल में अपनी क़िस्मत आज़मा रहे हैं. वहीं जगदीश प्रसाद, दिनेश कुमार और पीयूष शर्मा भी बतौर निर्दलीय प्रत्याशी चुनावी मैदान में हैं.