अयोध्या में राम की नहीं, काम की बात

अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net

फ़ैज़ाबाद/अयोध्या : इस चुनावी मौसम में राम मंदिर की चर्चा अब हर जगह होने लगी है. भाजपा के दिग्गज नेता अब राम मंदिर के बहाने ही यूपी में अपनी नैय्या को पार लगाने में जुट गए हैं. जहां चुनाव के तीसरे चरण के ठीक एक दिन पहले केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने राम मंदिर मुद्दा उठाते हुए कहा कि राम मंदिर अयोध्या में ही बनेगा. वहीं राज्यसभा सांसद विनय कटियार ने चौथे चरण की वोटिंग से ठीक पहले कहा कि, ‘भाजपा के पास राज्यसभा में बहुमत नहीं है इसी वजह से किसी क़ानून के ज़रिए राम मंदिर बनाने की राह मुश्किल हो रही है. राज्यसभा में बहुमत आने के बाद क़ानून प्रक्रिया के तहत राम मंदिर का निर्माण किया जाएगा.’ इसके पूर्व पार्टी के यूपी प्रदेशाध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य ने 25 जनवरी को बयान दिया था कि राम मंदिर आस्था का सवाल है. मंदिर का निर्माण चुनावों के बाद किया जाएगा. इस मामले को लेकर कांग्रेस की लीगल सेल ने चुनाव आयोग में शिकायत की थी. इस शिकायत के बाद चुनाव आयोग ने जांच बिठाई है, अब देखना दिलचस्प होगा कि इस जांच की रिपोर्ट कब आती है और मौर्या के ख़िलाफ़ क्या एक्शन लिया जाता है.


Support TwoCircles

बताते चलें कि‍ विधानसभा चुनाव का कार्यक्रम घोषित होने से ठीक पहले सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया था कि प्रत्याशी और उनके विरोधी धर्म, जाति और भाषा का इस्तेमाल वोट मांगने के लिए नहीं कर सकतें. सुप्रीम कोर्ट ने साफ़ तौर कहा था कि अगर कोई उम्मीदवार ऐसा करता है तो ये जन-प्रतिनिधित्व क़ानून के तहत भ्रष्ट आचरण माना जाएगा.

नेताओं के इन बयानों व शिकायतों से अलग अयोध्या की सच्चाई यह है कि यहां के लोग राम मंदिर की बातों से अब ऊब चुके हैं. 90 के दशक से लेकर अब तक जो खून-ख़राबा और नफ़रत का ज़हर जो इन्होंने देखा है, उसका हासिल इन्हें सिर्फ़ खोखले वादों और राजनीत के दुकानों के नाम पर मिला है. ये अब विकास की बातें करना चाहते हैं. अयोध्या की टूटी सड़कें दिखाते हैं. चारों ओर फैली गंदगी की ओर इशारा करते हैं और विकास के ढ़ल चुके सूरज का रोना रोते हैं.

अयोध्या के साकेत स्नातकोत्तर महाविद्यालय के डॉ. अनिल कुमार सिंह के मुताबिक़ अयोध्या के चुनाव में राम मंदिर कोई मुद्दा नहीं है. बल्कि यहां मुद्दाहीन चुनाव हो रहा है. सच्चाई तो यही है कि ये चुनाव मुद्दे से भटक कर कीचड़ उछालने तक पहुंच चुका है. हालांकि ये मानते हैं कि अब बाक़ी बचे चरणों में साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण की पूरी तैयारी चल रही है. आरएसएस व इनके विचारधारा की दूसरे संगठन खूब घूम रहे हैं. विद्वेष की राजनीति फैलाई जा रही है. मोदी को अवतार-पुरूष बनाकर पेश किया जा रहा है. मतदाताओं में यह संदेश दिया जा रहा है कि मुसलमानों को सबक़ सिर्फ़ मोदी ही सिखा सकते हैं.

 

विवादित ढ़ांचा के क़रीब लवकुश मंदिर के महंत राम केवल दास का कहना है कि राम जन्मभूमि को राजनेताओं ने इतना बर्बाद कर दिया है कि यहां अब रहना मुश्किल हो गया है.

वो आगे बताते हैं कि, ‘किसी भी नेता को भगवान राम से कोई प्रेम नहीं है. सिर्फ़ वोट के चक्कर में राजनीति कर रहे हैं. किसी नेता के चाहने से राम मंदिर नहीं बनने वाला, बल्कि भगवान जब चाहेंगे मंदिर बन जाएगा.’

वहीं अयोध्या के कुटीया पांजी टोला में रहने वाले बाबरी मस्जिद के मामले में मुद्दई मो. इक़बाल अंसारी बताते हैं कि अयोध्या के लोग मंदिर या मस्जिद के नाम पर कोई किसी को वोट नहीं देने वाले हैं. इस मुद्दे पर बाहर के लोग भले ही वोट करते हैं, लेकिन यहां के लोग तो विकास के मुद्दे पर ही पिछली बार भी वोट दिया था, इस बार भी वोट करेंगे. इक़बाल मरहूम हाशिम अंसारी के बेटे हैं.

विवादित ढ़ांचा के ही क़रीब मंदिर रामनिवास के भंडारी श्याम बिहारी मिश्रा का भी कहना है कि, ‘मंदिर चुनाव का मुद्दा नहीं है और न ही अयोध्या की कोई भी जनता इसके नाम पर वोट करेगी.’ लेकिन वो यह भी कहते हैं, ‘इस बार प्रदेश में भाजपा की सरकार बनेगी तो मंदिर बन जाएगा.’ लेकिन इसका मामला तो अभी अदालत में है? इस पर मिश्रा का कहना है कि, ‘तो क्या करें? आदमी की भावना ही ऐसी है. आप देखते रहिए… मोदी जी के कार्यकाल में मंदिर ज़रूर बन जाएगा.’

छात्र राजनीति में सक्रिय रहे 40 साल के शैलेन्द्र रावत बताते हैं कि भाजपा ने राम मंदिर को मुद्दा ज़रूर बनाया है, लेकिन बहुत कम लोगों पर इस मुद्दे का असर यहां पड़ेगा. क्योंकि यहां के लोग चाहते हैं कि बात अब विकास की होनी चाहिए. लोगों के रोज़ी-रोटी की होनी चाहिए.

वो आगे बताते हैं कि मंदिर के नाम पर यहां के लोगों के सिर्फ़ धोखा दिया गया है. लोग भी अब समझ गए हैं कि ये सिर्फ़ राजनीति है, होना कुछ नहीं है. बताते चलें कि शैलेन्द्र रावत को भाजपा चुनाव लड़ने का ऑफर भी दे चुकी है, लेकिन रावत का मानना है कि भाजपा की विचारधारा मुझे बिल्कुल भी पसंद नहीं है और वैसे भी मैं नास्तिक आदमी हूं.

अवध यूनिवर्सिटी में सोशल वर्क की पढ़ाई कर रहे गौरव सोनकर (22) व जुहैर अब्बास (22) का कहना है कि यहां के युवाओं को भाजपा के ज़रिए की जाने वाली नफ़रत की राजनीति समझ में आ चुकी है. अब कोई इन चक्करों में नहीं पड़ने वाला है. क्योंकि मंदिर-मस्जिद के नाम पर अब यहां कोई उद्योग धंधा नहीं लगाना चाह रहा है. इसी के चक्कर में जो उद्योग-धंधे थे, वो भी बंद हो गए. कभी यहां के लेदर इंडस्ट्री का नाम पूरे देश में था, अब ये इंडस्ट्री यहां पूरी तरह से ख़त्म हो चुका है. यहां के ज़्यादातर युवा बेरोज़गार हैं. यहां क़ायदे की स्कूल भी नहीं हैं. यहां गंदगी व लोगों की गरीबी आपको हर तरफ़ नज़र आएगी.  विकास दूर-दूर तक नज़र नहीं आता. थोड़ा-बहुत विकास अगर हुआ भी है तो अखिलेश की देन है.

इधर अयोध्या के हनुमानगढ़ी अखाड़े के महंत ज्ञान दास ने भी कहा है कि अगर प्रधानमंत्री चाहें तो राम मंदिर का निर्माण हो जाएगा, लेकिन वे इस मुद्दे पर कुछ भी नहीं बोल रहे हैं. ज्ञान दस ने कहा कि अभी तक तो उनका समर्थन अखिलेश के साथ है, लेकिन अगर प्रधानमंत्री का बयान राम मंदिर पर आता है तो फिर सोचा जाएगा.

स्पष्ट रहे कि अयोध्या के नाम पर यूपी में सरकारें बनीं और गिरीं. मगर अयोध्या की स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ. यहां का पिछड़ापन ज्यों का त्यों है. यह सब बातें हैं, जो  लोगों के ज़ेहन को मथने का काम कर रही हैं. वे अब साम्प्रदायिकता की जगह विकास की बातों पर ध्यान लगा रहे हैं. और ये एक अच्छा संकेत भी है.

बताते चलें कि फ़ैज़ाबाद ज़िले में अयोध्या, बीकापुर, गोसाईंगंज, मिल्कीपुर व रूदौली नाम के 5 विधानसभा क्षेत्र हैं. पिछले 2012 चुनाव में इन पांचों सीट में सिर्फ़ रूदौली को छोड़कर बाक़ी सब सीटों पर सपा का ही क़ब्ज़ा रहा.

इस बार अयोध्या सीट भाजपा के लिए नाक की लड़ाई वाली सीट बन चुकी है. ये वही सीट है जिसे लेकर 1991 से ही भाजपा के हर चुनाव घोषणा-पत्र में राम मंदिर निर्माण का वादा किया जाता रहा है, लेकिन 2012 में इसी अयोध्‍या में पार्टी के लल्लू सिंह को हार का सामना करना पड़ा जो इससे पहले यहां से 5 बार विधायक रहे थे. हालांकि लल्लू सिंह 2014 में लोकसभा चुनाव लड़े और चुनाव जीत गए. इस बार इस सीट से पार्टी ने ऋषिकेश उपाध्‍याय जो कि लंबे समय से बीजेपी कार्यकर्ता हैं, का टिकट काट कर ट्रांसपोर्ट बिजनेस चलाने वाले वेद प्रकाश गुप्‍ता को दिया है. जिन्हें पार्टी के अंदर भी प्रतिरोध का सामना करना पड़ रहा है.

स्पष्ट रहे कि इस बार अयोध्या विधानसभा सीट से 14 प्रत्याशी मैदान में हैं. सपा ने तेज नारायण पांडेय उर्फ़ पवन पांडेय, भाजपा ने वेद प्रकाश गुप्ता, बसपा ने मो. बज़्मी सिद्दीक़ी, रालोद ने धर्मेन्द्र कुमार उपाध्याय, भाकपा ने सूर्याकांत पांडेय, भाकपा माले ने अखिलेश कुमार, मौलिक अधिकार पार्टी ने दिलीप चौधरी, जन अधिकार पार्टी ने देवकी नंदन मौर्या, रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया ने प्रदीप कुमार कोरी, बहुजन मुक्ति पार्टी ने बंशीलाल यादव, जनवादी पार्टी ने महेश कुमार निषाद, आदर्शवादी कांग्रेस पार्टी ने डॉ. रिपनजॉय सिंह और अधिकार पार्टी ने सुशील जयसवाल को चुनावी मैदान में उतारा है. वहीं राधे श्याम श्रीवास्तव बतौर निर्दलीय प्रत्याशी अपनी क़िस्मत आज़मा रहे हैं. यहां मतदान 27 फरवरी को है.

 

SUPPORT TWOCIRCLES HELP SUPPORT INDEPENDENT AND NON-PROFIT MEDIA. DONATE HERE