Home Lead Story सोनभद्र :  आरक्षित सीट घोषित होने के बाद पलट गए हैं समीकरण

सोनभद्र :  आरक्षित सीट घोषित होने के बाद पलट गए हैं समीकरण

सिद्धांत मोहन, TwoCircles.net

ओबरा : सोनभद्र विधानसभा की दो सीटों द्वारा चुनाव आयोग द्वारा अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित करने के बाद इलाका एक राजनीतिक तनाव से गुजर रहा है. इसके पीछे चुनाव आयोग द्वारा लिए गए औचक निर्णय और इस वजह से टिकट के लिए जोड़तोड़ और खर्च कर रहे मतदाताओं की निराशा एक बड़ी वजह है.

सोनभद्र विधानसभा में कुल चार विधानसभा सीटें हैं. सीट संख्या 400 से 403 तक इन सीटों में क्रमशः घोरावल, रॉबर्ट्सगंज, ओबरा और दुद्धी की सीटें शामिल हैं. इनमें से ओबरा और दुद्धी को चुनाव आयोग द्वारा अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित कर दिया गया है.

ऐसे में बीते एक साल से चुनाव प्रचार और टिकट के लिए लॉबिंग में लाखों-करोड़ों खर्च कर चुके लगभग सभी चुनाव प्रत्याशियों ने अपना माथा पकड़ लिया है. इसके साथ-साथ राजनीतिक दलों की भी जान सांसत में अटक गयी है.

साल 2012 के विधानसभा चुनाव में दुद्धी विधानसभा सीट को अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित कर दिया गया था. उस समय इस सीट से निर्दलीय प्रत्याशी रूबी प्रसाद ने सपा के नरेश कुमार को हराकर जीत दर्ज की थी. ओबरा की सीट अनारक्षित थी, जिस पर बसपा के सुनील कुमार ने भाजपा के देवेन्द्र शास्त्री को हराकर जीत दर्ज की थी.

लेकिन इस साल इस विधानसभा सीटों के जनजातियों के जाने के बाद से यहां की सियासत इसलिए सकते में हैं क्योंकि यहां आदिवासियों को बेहद बिरले ही प्रत्याशी बनाया जाता था. गाहे-बगाहे पिछड़ी जातियों के लोगों को प्रत्याशी बनाया जाता था, जिनकी जीत का हिसाब-किताब बेहद मिलाजुला किस्म का होता था.

ओबरा विधानसभा बीते विधानसभा चुनावों के दौरान ही बनी है. इस सीट पर यह दूसरा विधानसभा चुनाव है. बीते साल तक यह सीट अनारक्षित थी. चुनाव आयोग द्वारा सीट को जनजातियों के लिए आरक्षित करने के पहले यहां बेहद जोरशोर से चुनाव प्रचार जारी था. भाजपा, कांग्रेस और बसपा के उम्मीदवारों के नाम भी लगभग तय थे लेकिन अधिसूचना आते ही सभी प्रत्याशी अब दिखना बंद हो गए हैं और सभी प्रत्याशियों के दफ्तर बंद हो गए हैं.

फिलहाल कई पार्टियों के कार्यकर्ताओं और नेताओं ने मिलकर सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की है, जिसमें उन सीटों के आरक्षण को पलटने की याचना है.

इलाके में पिछले 40 सालों से काम कर रहे विचारक और सामाजिक कार्यकर्ता नरेंद्र नीरव कहते हैं, ‘आप आदिवासियों के जंगल, उनकी ज़मीन या उनके पेड़-पौधों पर कब्जा करके शहर बना लें, फैक्टरी बना लें और पैसे कमाने लगें और ये सोचें कि आदिवासी को चुनाव भी न लड़ने को मिले? ये कैसी बात होती है भाई?’

नरेंद्र नीरव आगे कहते हैं, ‘आयोग द्वारा इन सीटों को आरक्षित घोषित करना अच्छा फैसला है. पार्टियां इससे ज़रूर हतोत्साहित होंगी क्योंकि उनका पूरा प्रचार कार्यक्रम धरा रह गया है लेकिन यह अच्छी बात है कि जनजातियों को कुछ सामने आने का मौक़ा मिलेगा.’

सपा ने यहां विजय सिंह गोंड को अपना प्रत्याशी घोषित किया है. विजय गोंड के बारे में स्थानीय जानकारी यह है कि उनकी आदिवासियों में बेहद अच्छी पकड़ है. उन्हें जीत मिलने के भी आसार हैं. उनका जनाधार भी मजबूत है. दुद्धी से रूबी प्रसाद की जीत के बारे में कहा जाता है कि आदिवासी इलाकों में रूबी प्रसाद के चुनाव चिन्ह बाल्टी को अपनी गाड़ी में लगाने के बाद आदिवासी इलाकों का दौरा करने के बाद ही रूबी प्रसाद की जीत संभव हो सकी.

एक आशंका यह भी जतायी जा रही है कि इलाके के आदिवासियों को टिकट मिलने के बाद मतदान में कमी आएगी, लेकिन गंवई इलाकों का मत-प्रतिशत बढ़ सकता है. कल इस इलाके के लोगों द्वारा सुप्रीम कोर्ट में दायर की गयी जनहित याचिका की सुनवाई होनी है, जिस पर माना जा रहा है कि कोई भी राहत मिलने के आसार बेहद कम हैं.