Home India Politics मोदी के बनारस में भाजपा से ही बिफरे पड़े हैं भाजपाई

मोदी के बनारस में भाजपा से ही बिफरे पड़े हैं भाजपाई

सिद्धांत मोहन, TwoCircles.net

वाराणसी : यूपी विधानसभा चुनाव के मद्देनज़र भारतीय जनता पार्टी ने बनारस की आठ विधानसभा सीटों पर से पांच पर अपने प्रत्याशी घोषित कर दिए हैं. इसके बाद कल बनारस आए भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्या ने अपने ख्वाब में भी नहीं सोचा होगा कि प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र और नरेंद्र मोदी के जनसंपर्क कार्यालय पर उन्हें ‘मुर्दाबाद’ और ‘वापस जाओ’ के नारे सुनने को मिलेंगे.

लेकिन केशव प्रसाद मौर्या की आशाओं के विपरीत ऐसा हो रहा है. टिकट बंटवारे के बाद से ही शहर के भाजपा कार्यकर्ताओं में जबरदस्त नाराजगी थी. इसी नाराजगी के बीच जब केशव प्रसाद मौर्या शहर में आए तो उन्हें नारेबाजी और भयानक विरोध का सामना करना पड़ा. नरेंद्र मोदी के जनसंपर्क कार्यालय में स्थिति यहां तक पहुंच गयी कि केशव प्रसाद मौर्या बस पिटते-पिटते बचे.

भाजपा ने जिन सीटों पर अपने उम्मीदवारों की घोषणा की है, उनमें नगर की तीन सीटें इस पूरे विवाद के केंद्र में हैं. शहर उत्तरी, दक्षिणी और कैंट.

शहर दक्षिणी से साल 1989 के बाद से लगातार भाजपा के विधायक श्यामदेव राय चौधरी का कब्जा रहा है. श्यामदेव राय चौधरी को शहर के पार्टी कार्यकर्ताओं और समर्थकों ही नहीं, आम जनता के बीच भी बहुत लोकप्रियता हासिल है. इस विधानसभा चुनाव में भाजपा के टिकट घोषित होने के पहले कयास लगाए जा रहे थे कि श्यामदेव राय चौधरी की सीट को छोड़कर बाकी सभी सीटों पर नए प्रत्याशियों की घोषणा होगी, लेकिन पार्टी ने यहीं तीन दशकों से विधायक श्यामदेव राय चौधरी को ठेंगा दिखाते हुए किसी और को टिकट दे दिया. यहीं पर श्यामदेव राय चौधरी के समर्थकों का गुस्सा फूट पड़ा और यह गुस्सा अब पार्टी से सम्हाले नहीं सम्हल रहा है.

इसके बाद बात करें शहर उत्तरी की तो यहां भाजपा से रवीन्द्र जायसवाल विधायक हैं. रवीन्द्र जायसवाल के साथ दुर्भाग्य यह है कि उन्होंने पिछ्ला विधानसभा चुनाव कठिन 1700 वोटों के अंतर से जीता था, इस बार तो कयास यह लगाए जा रहे थे कि यदि रवीन्द्र जायसवाल दुबारा चुनाव लड़ते हैं तो वे हार जाएंगे. इस सीट पर 2012 लोकसभा चुनावों के दौरान कांग्रेस से भाजपा में गए दयाशंकर मिश्र दयालु ने नज़र बनायी हुई थी, लेकिन उन्हें और कयासों, दोनों को ठेंगा दिखाते हुए इस सीट को वापिस रवीन्द्र जायसवाल को दे दिया गया.

आखिर में जिस सीट पर बवाल है, वह है कैंट विधानसभा. यहां भाजपा मजबूत है, लेकिन इस बार कांग्रेस से जुड़े पूर्व सांसद राजेश मिश्रा इस सीट से चुनाव लड़ सकते हैं, ऐसे में वयोवृद्ध विधायक ज्योत्स्ना श्रीवास्तव हार जातीं. लेकिन यहां ज्योत्स्ना श्रीवास्तव बैठ गयीं और टिकट उनके बेटे सौरभ श्रीवास्तव को मिल गया. बस शहर में बवाल हो गया. विरोध होना था सो हुआ, साथ में कई जगह पोस्टर भी लग गए कि ‘हमने बूढ़ा होने तक ज्योत्स्ना श्रीवास्तव को झेला. अब क्या बूढ़ा होने तक उनके बेटे और उनके बेटे के बेटे तक को झेलेंगे?’ सौरभ श्रीवास्तव के खिलाफ कई मुक़दमे दर्ज हैं और कई जगहों पर उनकी छवि सिर्फ फोटो-खेंचवा तक ही सीमित रह गयी है. और एक ही परिवार में टिकट बंटने को लेकर परिवारवाद का आरोप झेलने वाली कांग्रेस पार्टी भी यहां की मौक़ा नहीं छोड़ रही है.

दयालु को जन्मदिन का ‘तोहफ़ा’

दयाशंकर मिश्र दयालु जिस दिन अपना जन्मदिन मना रहे थे, उसी दिन पार्टी के प्रत्याशियों की लिस्ट आ गयी. कांग्रेस के टिकट पर लगातार हार रहे दयालु गुरु दो सालों पहले भाजपा में शामिल हुए थे. उन्हें टिकट नहीं मिला. क्यों नहीं मिला, इसके पीछे कोई साफ़ कारण नहीं है. लेकिन अंदरखाने से खबर यह है कि भाजपा से जुड़ने के बाद दयालु को टिकट के लिए कांग्रेस दफ्तर के पास देखा गया था, इसलिए उन्हें चलता कर दिया गया.

एक खबर यह भी आ रही है कि दयालु को केशव प्रसाद मौर्य बनारस के मेयर के चुनाव के लिए वादा कर गए हैं. लेकिन यह बात भी साफ़ है कि राजनीतिक लालसा से भरे दयालु मेयर का चुनाव लड़ते हैं तो यह मानकर लड़ेंगे कि उन्होंने अपना राजनीतिक करियर ख़त्म कर दिया है. लेकिन दयालु के करीबी बताते हैं कि विधायकी की राह का रोड़ा साफ़ करने के लिए दयालु भाजपा में गए थे, लेकिन पार्टी खुद ही सबसे बड़ा रोड़ा बन गयी है.

बात रही श्यामदेव राय चौधरी की तो कल केशव प्रसाद मौर्या उनके घर आशीर्वाद लेने पहुंचे. श्यामदेव राय चौधरी ने आशीर्वाद नहीं दिया और पूछा कि मेरा टिकट क्यों काटा गया? केशव प्रसाद मौर्या कोई जवाब नहीं दे सके. इसी ताव में श्यामदेव राय चौधरी ने प्रदेश अध्यक्ष के मुंह पर ऐलान कर दिया कि न वे किसी पार्टी का प्रचार करेंगे ना ही किसी प्रत्याशी का. खबर है कि श्यामदेव राय चौधरी निर्दलीय चुनाव लड़ सकते हैं. लेकिन खबर यह भी है कि केशव प्रसाद मौर्या ने यह ‘गुपचुप’ वादा किया है कि अगले दो दिनों में कुछ बदलाव हो सकते हैं, हालांकि प्रदेश अध्यक्ष ने यह भी कहा है कि कोई टिकट नहीं बदले जाएंगे.

नारेबाजी और बवाल के बीच ठहरकर देखें तो बनारस में भाजपा, जो पहले से ही कमज़ोर है, अब सरेंडर करने के मिजाज में दिख रही है. टिकट बंटवारे से लेकर विधायकों के जनता के बीच मौजूद रहने तक, पार्टी भयानक तौरपर नुकसान झेल रही है. और झेलती रहेगी यदि हालात न सुधरे तो.