Home India Politics क्या क्रिकेट भी साम्प्रदायिक ताक़तों के हाथ का खिलौना बन गया है?

क्या क्रिकेट भी साम्प्रदायिक ताक़तों के हाथ का खिलौना बन गया है?

आस मुहम्मद कैफ़, TwoCircles.net

मुज़फ़्फ़रनगर : चैंपनियंस ट्रॉफी के फ़ाईनल में भारत की हार के बाद सोशल मीडिया पर इस तरह का माहौल बनाने की लगातार कोशिश की जा रही है कि पाकिस्तान की जीत पर भारत के मुसलमान बहुत खुश हैं और जश्न मना रहे हैं. कई स्थानीय अख़बारों ने भी ऐसा ही प्रचार किया. कुछ अख़बारों में यह लिखा कि भारत की हार पर पटाखे चलाए गए और ऐसा मुस्लिम बहुल इलाक़ों में हुआ. ऐसा प्रचार तो सोशल मीडिया में खूब चला.

हमने पश्चिम उत्तर प्रदेश के मुज़फ्फ़रनगर के खालापार के निवासी और एक सामाजिक संस्था पैग़ाम-ए-इंसानियत के अध्यक्ष हाजी आसिफ़ राही से पूछा. उन्होंने बताया कि, इस दिन अज़ीम बरकतों वाली शब-ए-क़द्र की रात थी. जब तमाम मुसलमान बारगाह-ए-इलाही में सजदा करके अपने गुनाहों की माफ़ी मांगता है. इस दिन तो वो अपने मुल्क की जीत में भी पटाखे छोड़ने में असमर्थ महसूस करेगा. पाकिस्तान तो वैसे भी हमारा दुश्मन देश है और कश्मीर में खुराफ़ात करता रहता है. यहां कहीं कोई पटाखा नहीं छोड़ा गया.

आगे वो यह भी बताते हैं कि, मुज़फ्फ़रनगर दंगे के बाद से खालापार में वैसे भी पुलिस अलर्ट रहती है और बराबर के गहरा बाग़ में मिलिट्री भी.

खालापार से सटे मोहल्ले अबुपुरा के अनिल कुमार के मुताबिक़ भी उन्होंने खालापार से पटाखों की कोई आवाज़ नहीं सुनी.

मंडल स्तर पर क्रिकेट खेल चुके फ़िरोज़ अली के मुताबिक़, यह पाकिस्तान की क्रिकेट टीम की जीत है. भारत के मुसलमान क्यों जश्न मनाएंगे? क्या पाकिस्तान में रहने वाले हिन्दू समाज के लोगों ने भारत की हार पर मातम मनाया होगा? उन्होंने अपने देश की जीत पर खुशी ज़रूर मनाई होगी. इसी तरह यहां मुसलमानों को भी दुःख हुआ है.

फ़िरोज़ आगे बताते हैं, खेल में हार-जीत होती रहती है. पाकिस्तान एक मैच जीत गया है. अक्सर हम ही ने उसे धूल चटाई है. विश्व कप में वो हमसे कभी नहीं जीत पाए हैं.

उत्तर प्रदेश अंडर—14 के प्रतिभाशाली खिलाड़ी आवेश खान के मुताबिक़, वो अपनी टीम में खेल रहे लड़कों की जाति भी नहीं जानते. बस टीम जानते हैं. उनका ख्वाब है पाकिस्तान के ख़िलाफ़ खेलना. वो कहते हैं, मैं पूरी जान लगा दूंगा. जितनी मैंने कभी ना लगाई हो.

हमारे यह पूछने पर कि वो ऐसा एक खिलाड़ी के तौर पर करना चाहेंगे या एक मुसलमान के तौर पर? तो आवेश खान कहते हैं, एक खिलाड़ी, मुसलमान और इंडियन तीनों के तौर पर. आगे वो हमसे ही पूछने लगते हैं. ‘अच्छा आप बताएं कि भारत के मुसलमान खिलाड़ी पाक के ख़िलाफ़ ज्यादा अच्छा नहीं खेलते?

ये कहानी सिर्फ़ मुज़फ़्फ़रनगर की नहीं है. अलीगढ़ में भी एक अख़बार ने लिखा कि विश्वविधालय के आसपास के इलाक़ों में मुसलमानों ने ख़ुशी मनाई. पड़ताल में यह बात पूरी तरह झूठी पाई गई.

मेरठ का तनावपूर्ण इलाक़ा कहा जाने वाला इस्लामाबाद में भी जश्न मनाए जाने की ख़बर हिन्दू आबादी में उड़ी और सोशल मीडिया पर इसका खूब प्रचार हुआ.

यहां के स्थानीय निवासी जफ़र अहमद के अनुसार यह एकदम झूठी अफ़वाह थी. कुछ लोग नफ़रत फैलाने का काम पूरी ताक़त से कर रहे हैं.

सहारनपुर में भी अफ़वाह फैलाई गई कि डोलीखाल मुहल्ले में कुरैशी समाज के लोग पटाखे फोड़ रहे हैं. इस अफ़वाह पर खुद एसएसपी बबलू कुमार उधर से निकले, मगर उन्हें कुछ नहीं मिला. ये ख़बर भी पूरी तरह से झूठी पाई गई.

मुरादाबाद के कांठ भी मुस्लिम बहुल इलाक़ा है. यहां भी अफ़वाह फैली कि पटाखे छूट रहे हैं. यहां के नदीम मंसूरी के अनुसार ऐसा कुछ नहीं हुआ. अलबत्ता पुलिस ज़रूर आई.

बिजनौर के काजीपाड़ा में भी यह अफ़वाह फैली, मगर यहां भी ये ख़बर झूठी निकली.

यहां के फैसल खान कहते हैं, साम्प्रदयिक ताक़तें नफ़रत फैलाने के बहाने तलाश रही है. क्रिकेट भी ऐसा ही है. यह पुराना फार्मूला है कि मुसलमान पाकिस्तान की जीत पर पटाखे फोड़ता है. अरे, उसके पास रोटी के लिए तो पैसे है नहीं. ईद के खर्च की चिंता उसे खाए जा रही है. पटाखे कैसे छोड़ देगा? ये सब मुसलमान को बदनाम करने की साज़िश है. 

फ़ैसल आगे बताते हैं, इस दिन बहुत शादियां हो रही थी अब मुसलमान तो रमज़ान में शादी भी नहीं करता.

वो आगे कहते हैं कि, जीत जाते तो कहते मुसलमानों ने मातम मनाया. अब खेल भी हिन्दू-मुसलमान हो गया है.

नवभारत टाईम्स के संपादक रहे मेहरूदीन खां कहते हैं, ‘इसका एक ही उपाय है. क्रिकेट बंद कर दो. इसने युवाओं को बर्बाद कर दिया है. या फिर पाकिस्तान से तो खेलो ही मत.’