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‘मेरी पत्नी प्रसव पीड़ा से कराहती रही और मैं मजबूरन एनआईए के कार्यालय जाता रहा’

TwoCircles.net News Desk

लखनऊ : ‘7 मार्च 2017 से लेकर आज तक एटीएस और एनआईए के लोग मुझे रोज़-रोज़ तंग करते रहे हैं. पहले एटीएस अपने दफ्तर कानपुर में ले जाकर प्रताड़ित करती रही, उसके बाद अपने लखनऊ हेडक्वाटर पर प्रताड़ित किया. वहां एनआईए की टीम भी आकर पूछताछ करती रही. बाद में समय-समय पर एनआईए के कार्यालय से फोन करके बुलाया जाता रहा और प्रताड़ित किया जाता रहा.’

सुरक्षा एजेंसियों द्वारा किए जा रहे डी-रेडिकलाइजेशन के इस सच का खुलासा आज कानपुर के मोहम्मद आतिफ़ ने रिहाई मंच द्वारा यूपी प्रेस क्लब लखनऊ में आयोजित प्रेसवार्ता में किया. 

प्रेस वार्ता को संबोधित करते हुए मोहम्मद आतिफ़ ने कहा कि, ‘दबाव बनाया जाता रहा कि मैं पकड़े गए लोगों के ख़िलाफ़ एनआईए के कहे पर बयान दूं. पूछताछ के नाम पर मुझे रेल बाज़ार थाने कानपुर, एटीएस मुख्यालय लखनऊ में मारा-पीटा भी गया.’

आतिफ़ ने अपनी दर्द भरी कहानी सुनाते हुए कहा कि, ‘पुलिस वाले मेरे सर, गर्दन पर घूंसा मारते थे और पैरों पर फाइवर के डंडे बरसाते थे. एनआईए आॅफिस लखनऊ में मुझे मानसिक रुप से लगातार प्रताड़ित किया गया. सादे पेपर पर साइन करवाया गया और कभी-कभी एक कागज़ पर लिखवाते थे कि प्रति प्राप्त किया. हालांकि मुझे कोई कागज़ नहीं दिया जाता था.’

वो आगे बताता है कि, ‘एनआईए द्वारा बार-बार बुलाए जाने से मैं अपना कारोबार ठीक से नहीं देख पाया और इसी बीच मेरी पत्नी प्रसव पीड़ा से कराहती रही और मैं मजबूरन एनआईए के कार्यालय जाता रहा.’

आतिफ़ का कहना है कि, ‘मुझे मनीष सोनकर ने रेल बाजार थाना कानपुर में बुलाकर कहा कि अगर तुम यह बयान नहीं दोगे कि तुम सैफुल्लाह और उसके साथ के लोगों से मिले हुए हो और तुमने इन लोगों का साथ दिया है तो तुम्हारी बीबी और उसके पेट में पल रहे बच्चे को मार दिया जाएगा. तुमको और तुम्हारे घर वालों को आतंकवाद में फंसा दिया जाएगा.’

आतिफ़ के मुताबिक़, ‘एनआईए अफ़सरों ने मेरा फेसबुक एकाउंट और पासवर्ड दिनांक 18 मार्च 2017 को ले लिया है. कभी भी वे और उनका फोन आ जाता और वो लखनऊ आने को कहते हैं. यहां आने के बाद मुझे घर लौटते-लौटते रात हो जाती थी. घर पहुंचने के बाद फिर से फोन आ जाता कि कल फिर आना है. मुझे कल 8795843266 से चन्द्रशेखर सिंह ने तो वहीं लगातार 9454409415 इंस्पेक्टर वीरेन्द्र वर्मा, 8317017598 इंस्पेक्टर चन्द्र शेखर सिंह, 05222391958 एनआईए आॅफिस से, 9444084799 चेन्नई से, 9412190977, 9454402324 मनीष सोनकर कानपुर एटीएस, 9140810979, 7786826623, 9331013397 कलकत्ता से, 8574164026, 7348108904, 7785006926, 9453330327 जावेद एटीएस लखनऊ के तमाम फोन आते रहे हैं, जिससे मैं मानसिक रुप से बहुत परेशान हो गया हूं.’

आतिफ़ इस प्रेस वार्ता को संबोधित करते हुए बताया कि, ‘मैंने 26 अप्रैल 2017 को माननीय मुख्य न्यायाधीश सर्वोच्च न्यायालय, माननीय मुख्य न्यायाधीश उच्च न्यायालय इलाहाबाद, गृह मंत्री भारत सरकार, उत्तर प्रदेश के डीजीपी और चेयरमैन मानवाधिकार आयोग भारत सरकार को प्रार्थना पत्र भेजकर सहायता की गुहार की है.’

वो आगे कहता है, ‘इन दिनों मेरी 15 दिन पहले पैदा हुई बच्ची की तबीयत बहुत ख़राब है पर वो लोग हैं कि एक नहीं सुनते हैं. अंत में पीड़ित होकर मैंने एनआईए आॅफिस जाना मुनासिब नहीं समझा और बेहतर समझा कि अपनी पीड़ा आप लोगों के सामने रखूं.’

मोहम्मद आतिफ़ के भाई आक़िब ने कहा कि, ’24 अप्रैल 2017 को लगभग 11 बजे दिन में मैं घर से निकला था कि रास्ते में महफूज़ नाम के एक साहब मिलें, जिन्होंने मुझसे मेरा मोबाइल सिम के साथ मांगा. न देने पर उन्होंने कहा कि हिट लिस्ट में सबसे ऊपर तुम्हारा नाम है. जावेद साहब लखनऊ और एसटीएफ़ के शर्मा जी को तुम्हारा नाम पहुंचा दिया गया है, जल्द तुम नपोगे.’

इस प्रेसवार्ता को संबोधित करते हुए रिहाई मंच अध्यक्ष मुहम्मद शुऐब ने कहा कि किसी भी केस में विवेचक का कर्तव्य होता है कि वह तथ्यों को यथा रुप में इकट्ठा करके न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करे. एक विवेचक का काम सत्यता का पता लगाना होता है न कि किसी अभियुक्त को सज़ा दिलाना. उसको सदैव पूर्व अवधारणा से ऊपर उठकर विवेचना करनी चाहिए न कि पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर पकड़े गए व्यक्ति के विरुद्ध साक्ष्य बनाने का काम करना चाहिए. लेकिन इस समय जितने भी लोग पकड़े गए हैं, उन सबको सज़ा दिलाने के लिए पूरी तरह से जांच और सुरक्षा के नाम पर ये एजेंसियां लोगों पर दबाव बनाकर झूठे साक्ष्य देने के लिए मजबूर कर रही हैं.

एडवोकेट मुहम्मद शुऐब आगे बताते हैं कि, गिरफ्तार किए गए व्यक्ति का अधिकार है कि वह विवेचना में पूछताछ के दौरान अपनी पसन्द के अधिवक्ता से मिल सके, लेकिन एनआईए के उस केस में जिसमें लखनऊ में सैफुल्लाह की हत्या हुई, न्यायालय ने आदेश दिया है कि विवेचना के दौरान अभियुक्तों के अधिवक्ता यदि चाहें तो दो सौ मीटर की दूरी से निगरानी रख सकते हैं. सवाल उठता है कि क़ानून कहता है कि गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को अपनी पसन्द के अधिवक्ता से मिलने का अधिकार है किन्तु न्यायालय भी उसे इस अधिकार से वंचित कर देती है. इस कारण कहीं से भी न्याय की अपेक्षा मुश्किल होती जा रही है.