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ट्रिपल तलाक़ : अदालत उलेमाओं को इसका हल निकालने दे —मौलाना अरशद मदनी

अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net

नई दिल्ली : ‘ट्रिपल तलाक़ के मसले में खुद दख़ल देने के बजाए अदालत को इसे उलेमाओं को हल निकालने के लिए दे देना चाहिए कि वो खुद इसका हल निकालें.’

ये बातें आज नई दिल्ली के कांस्टीट्यूशन क्लब में देश में भाईचारा, अमन व अमान की बहाली और असम में हिन्दू व मुसलमानों की नागरिकता की सुरक्षा के सिलसिले में जमीयत उलेमा-ए-हिन्द की ओर से आयोजति एक प्रेस कांफ्रेंस में जमीयत के अध्यक्ष मौलाना सैय्यद अरशद मदनी कही.

उन्होंने एक सवाल के जवाब में कहा कि, जब सुप्रीम कोर्ट बाबरी मस्जिद के मामले में यह कह सकती है कि आपस में बातचीत करके इस मसले का हल निकाला जाए, तो फिर ट्रिपल तलाक़ के मसले में वो ऐसा क्यों नहीं कर सकती कि उलेमा ही बैठकर इस ट्रिपल तलाक़ के मसले का हल निकालें. वैसे भी ये मसला शरीअत का है.

मदनी ने ट्रिपल तलाक़ के मसले को प्रोपगेंडा क़रार दिया. मदनी ने कहा, ‘अगर ट्रिपल तलाक़ का मुद्दा ज़ुल्म का है, तो पहले भी इसके ख़िलाफ़ आवाज़ उठती. ऐसा लगता है कि प्रोपेगेंडा के तहत ऐसा हो रहा है. अभी तो ऐसा लग रहा है कि कोर्ट तैयार बैठा है कि दो दिनों में फ़ैसला करना है. हमारी अदालतों को जितनी फ़िक्र ट्रिपल तलाक़ व यूनिफॉर्म सिविल कोड के मामलों में है, उतनी ही फिक्र दूसरे मामलों में क्यों नहीं. बेगुनाह बच्चे 20-20 सालों से जेल में हैं. देश के अनगिनत मुद्दें अदालतों में पेंडिंग पड़े हुए हैं.’ हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि, हमें सुप्रीम कोर्ट पर पूरा भरोसा है और कोर्ट का जो भी फैसला होगा, हमें मंज़ूर होगा.

इस प्रेस कांफ्रेंस में अरशद मदनी ने गौर-रक्षा का मसला भी उठाया. उन्होंने कहा, ‘गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित कर देना चाहिए. आख़िर केन्द्र सरकार इसके लिए एक क़ानून क्यों नहीं बना रही है?’

आगे उन्होंने कहा कि, पिछले 50 सालों से गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित करने की मांग सरकार से की जा रही है, लेकिन सरकार ने इस ओर कभी भी ध्यान नहीं दिया. जबकि इस गाय के नाम तथाकथित गौ-रक्षक न सिर्फ़ लोगों को लूट रहे हैं, बल्कि लोगों का क़त्ल तक कर रहे हैं. अब ये खेल बंद होना चाहिए.

बाबरी मस्जिद के मसले पर बोलते हुए कहा कि, शुरू से ही जमीयत इसकी लड़ाई लड़ रही है. हम 60 बार बातचीत के ज़रिए इसके हल की कोशिश कर चुके हैं, लेकिन कोई फ़रीक़ इसका हल बातचीत के ज़रिए निकालने को तैयार नहीं हुआ. हम मुल्क की अदालत व दस्तूर (संविधान) से मुतमईन हैं. अब इसका आख़िरी फ़ैसला अदालत को ही निकालना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट का जो फ़ैसला होगा, हम उसका इस्तक़बाल करेंगे.

आगे उन्होंने सहारनपुर के जातीय संघर्ष पर भी अपनी बात को रखते हुए कहा कि, आप देख लीजिए कि सहारनपुर में किस तरह से दलितों को दबाया जा रहा है. 

इस प्रेस कांफ्रेंस में असम के मुद्दे पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि, ‘नागरिकता का जो मुद्दा असल में चल रहा है, वो 1985 में असम समझौते के साथ ही एक प्रकार से समाप्त हो गया, उसे एक बार फिर से कुछ साम्प्रदायिक संगठनों द्वारा जीवित किया गया है. इन संगठनों की जो मांग है, वो हास्यापद है. विदेशी नागरिकता के इस मामले से 48 लाख विवाहित महिलाओं की नागरिकता पर खतरे के बादल मंडरा रहे हैं.’

मौलाना अरशद मदनी ने कहा, ‘हम हज़ारों साल से इस मुल्क में रह रहे हैं. हमारा पुराना  इतिहास है कि इस देश में कभी कोई भेदभाव नहीं रहा. हमारी आपसी भाईचारा, प्यार व मुहब्बत की तारीख़ रही है. आज इस प्यार व मुहब्बत की इस तारीख़ को आग लगाई जा रही है. आप मीडिया वालों इस मुल्क को जलने से बचा लो.’