मदारी : जानवरों को नचाने वाली एक बदनसीब कौम

मदारी समाज की औरते अलग तरह का विशेष पहनावा पहनती है,इनका नाम छोटी है।(Photo: Aas Mohammed Kaif/ TwoCircles.net)

आस मोहम्मद कैफ | देवल (बिजनौर)

दिल्ली से 140 किमी दूर दिल्ली-पौड़ी राष्ट्रीय राजमार्ग पर बिजनौर के करीब एक गाँव देवल के बाहर घने जंगल(इसे खोला कहते हैं) में झोपडी डालकर लगभग 100 परिवारों वाली खानाबदोश कौम मदारी रह रही है. 10 वर्ग फ़ीट बांस की खपच्चियाँ से बनी उनकी इस झोपडी में सिर्फ दो चारपाई आ सकती है,जिसमे से एक में मोहम्मद हसन लेटे है जो पिछले दिनों अपनी टांग तुड़वा बैठे है, उनके करीब में बैठे उनके पोते सोनी (14) हमें बताते है कि घुड़सवारी कर रहे थे,घोड़े से गिर गए.


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95 साल के मोहम्मद हसन, सफेद लंबी रौबदार दाढ़ी,बड़ी -बड़ी आँखे,बेहद मजबूत बदन,आवाज़ में गुर्राहट रखते है. उन्हें जहाँ भर में घुमक्कड़ पंती का अदुभुत अनुभव है. मोहम्मद हसन आज  भी किसी भी जवान लड़के से दंगल लड़ने की चुनोती देते है!

यहां ऐसी लगभग 80 झोपड़ियां है और कुछ बिना पलस्तर वाले मकान भी है, मोहम्मद हसन का चेहरा आर्कषित करता है आप उनके आकर्षण से मुक्त नही हो सकते,उनकी बातचीत में सम्मोहन है वो इसे नज़र बांधना कहते हैं.

मदारी समाज इस तरह के घरों में रहता है।(Photo: Aas Mohammed Kaif/ TwoCircles.net)

हसन हमें बताते है इसी नजर बांधने की कला के दम पर हमारी यह कौम रोजी-रोटी कमाती है,कल तक खेल तमाशा कर नज़र बाँधने का काम कर रही थी अब जादुई नग बेचकर करतब दिखा रही है.

सच्चे साफ़ सुथरे और बेबाक मोहम्मद हसन ने अपनी जिंदगी के 60 साल से भी ज्यादा ‘मदारी’ बनकर गुजारे है,अगर उनकी माने तो उन्होंने हजारों जगह अपना मज़मा लगाया है और वो कभी एक जगह दो बार करतब दिखाने नही पहुंचे,मोहम्मद हसन रीछ(भालू की एक सहनस्ल) और बंदर को अपने इशारों पर नचाते थे,लगभग 300 मदारी लोगों की इस बस्ती में सिर्फ वो ही रीछ का खेल दिखाने के जिन्दा इतिहास रखते है,हालाँकि दो चार लोग अब भी बंदर की उछल कूद दिखा देते है.

इस मदारियों की बस्ती के लिए ‘मेनका गांधी’ खलनायक है इत्तेफाक यह है कि यहाँ मेनका गांधी का नाम सभी जानते हैं,पशु प्रेमी राजनेता मेनका गांधी भारत में खेल तमाशो में जानवरों के प्रयोग पर रोक लगाने के लिए जानी जाती है,63 साल की छोटी(उनके अनुसार वो परिवार में सबसे छोटी थी तो उनका यही नाम रख दिया गया उनका कोई दूसरा नाम नही है)कहती है हम तो उन्हें बस अपने बच्चो के मुँह से निवाला छीनने वाली के तौर पर याद रखते हैं, अगर वो हमारा रोजगार बंद करवा रही थी तो हमारे लिए दूसरे काम का बंदोबस्त करती वो तो सरकार है मगर उन्होंने सिर्फ बरबाद किया,आबाद कौन करेगा!

हालाँकि मोहम्मद हसन कहते है कि उन्होंने रीछ और बंदर का तमाशा करना मेनका गांधी की मुहिम से डरकर नही छोड़ा,वो एक बार राजस्थान में मुस्लिम राजपूतों के बीच में अपना मज़मा लगाकर खेल दिखा रहे थे, जमूरा जोर पर था और रीछ और बंदर नाच रहे थे, खेल के बाद मैंने लोगो से आटा और पैसे मांगे,मेरे दाढ़ी नही थी,किसी ने पूछा तुम्हारा मज़हब क्या है !मैंने कहा अस्सलाम(इस्लाम)!तब उसने कहा इस तरह जानवरों को कैद करके भीख मांगने से क़ौम की बेइज्जती होती है वो अल्लाह को क्या मुँह दिखाएंगे! हसन दावा करते हैं कि उसके बाद यह बात उनके दिल को लग गई और उन्होंने दाढ़ी रख ली और वो जमात(तबलीग़) में चले गए.

लेकिन यहाँ सब मोहम्मद हसन जैसे नही है,जवाहर अली(34) अब भी तमाशा दिखाते है और एक सिक्के के दो बना देते है वो हमें कहते हैं सिक्का एक ही होता है सब हाथ की सफाई से होता है हम बातों में उलझा लेते है और सफाई से सिक्के बदल देते हैं, इसी तरह की ट्रिक किसी को हवा में उड़ाने में लगाई जाती है,फिलहाल इस बड़ी बस्ती में 3 या 4 चार लोग तमाशा दिखाते है,रीछ वाला खेल मोहम्मद हसन के बाद ही बंद हो गया और बंदर वाला 4 साल पहले इल्यास(43) के साथ हुई मारपीट की एक घटना के बाद बंद कर दिया गया,फिरोजु बताते हैं कि बंदर से कुछ लोगो की भावनाएं आहत होने लगी और वो तमाशा करने वालों को पीटने लगे बस सबने यह करना बंद कर दिया.

अब ज्यादातर मदारी बिरादरी के लोग जादुई नग बेचने का काम कर रहे हैं शेष खच्चर और घोड़े बेचते है, स्थानीय युवक सनी(27) हमें बताते है कि चूँकि मदारिगिरी इनके खून में है इसलिए नग बेचने का इनका तरीका भी अदुभुत है वो ग्राहक का नाम जानकार कई अलग अलग नग पानी में डालते है और इनमे से एक तैरने लगता है,इसे ग्राहक के लिए शुभ माना जाता है,रियाजुदीन(37) कहते है कि यह भी ट्रिक है जिसे भी तमाशा कह सकते हैं बस इसमें हम मांग नही रहे बेच रहे हैं.मदारी बिरादरी के अधिकतर इसी काम को कर रहे हैं.

मोहम्मद हसन इस डेरे के मुखिया है (Photo: Aas Mohammed Kaif/ TwoCircles.net)

मोहम्मद हसन कहते है बदकिस्मती से मजबूती कद-काठी के होने के बावजूद स्थानीय नोजवान मेहनत मजदूरी का काम नही करते और बच्चे स्कूल भी नही जाते,महिलाएं यहाँ अलग तरह की जिंदगी जीती है हमने बदलाव की कोशिशें की है मगर यह लोग अपनी जड़ों को छोड़ना नही चाहते,सभी मुसलमान है मगर नमाज पढ़नी कुछ ही महिलाओं को आती है,लड़कियां बिल्कुल स्कूल नही जाती.

एक झोपड़ी के बाहर सोनू (8)अपने स्कूल बैग के साथ बैठा है वो अभी तक स्कूल यूनिफार्म में है दोपहर के 3 बजे है,उसके आसपास उसी के आयु वर्ग के बच्चे उसे घेरकर खड़े है कुछ उसकी चारपाई पर भी बैठ गए हैं,

सोनू की यूनिफार्म इन्हें आकर्षित कर रही उसके स्कूल के पहचान पत्र पर शाहनवाज़ लिखा है,इस पूरी बस्ती में वो अकेला लड़का है जो किसी अच्छे स्कूल में पढता है,उसके दोनों कानो में कुंडल है,मदारियों में महिलाओं के साथ-साथ पुरुष भी अपने कानों में आभूषण पहनते है.

सोनू(शाहनवाज़)100 परिवारों में इकलौता है जो किसी अच्छे स्कूल में पढता है।(Photo: Aas Mohammed Kaif/ TwoCircles.net)

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