एक पत्र ‘देशभक्त आंटी’ स्मृति “मल्होत्रा” ईरानी के नाम…

श्रीमती स्मृति “मल्होत्रा” ईरानी जी,

मैडम! आपका संसद में दिया गया भाषण वाक़ई बेहतरीन था. मैंने आपको पहले अभिनय करते हुए कभी नहीं देखा, क्योंकि मेरे घर में टीवी ही नहीं था. लेकिन आज जब यू-ट्यूब पर आपका भाषण देखा तब मैं आपका अभिनय देखकर दंग रह गया. आपके इस अभिनय की जितनी तारीफ़ की जाए कम है. आपकी आवाज़ में शानदार उतार-चढ़ाव और आपके भाव वाक़ई बेजोड़ थे.


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मुझे लगता है कि दूसरी सभी अभिनेत्रियों को अभी आपसे काफी कुछ सीखने की ज़रूरत है और बेहतर होता कि राहुल गाँधी भी आपसे अभिनय की क्लास लेते…

स्मृति “मल्होत्रा” ईरानी जी, मैं अपने इस पत्र के माध्यम से आपके भाषण के बारे में कुछ बातें करना चाहता हूँ. ज़ाहिर है कि आपने काफी मेहनत से तैयार किया होगा. लेकिन इतनी मेहनत के बाद भी आपने खुद को जाति रहित बताने की कोशिश कर सब बेकार कर दिया.

मैडम यह भारत देश है. इस देश के बारे में बाबा भीमराव अम्बेडकर ने कहा है कि “आप यहां अपना धर्म बदल सकते हैं, घर बदल सकते हैं, परन्तु जाति नहीं बदल सकते. जाति कभी नहीं जाती.” मैडम यहां किसी की जाति का पता लगाना मुश्किल काम नहीं है. कभी-कभी सिर्फ़ उपनाम ही काफी होता है तो कभी-कभी हमारी राष्ट्रीय ख़ुफ़िया एजेंसियां भी इस काम को बखूबी अंजाम देती हैं.

स्मृति “मल्होत्रा” ईरानी जी, आपने अपने भाषण की शुरूआत इस वक्तव्य के साथ किया कि आप किसी की मदद उसका धर्म या जाति देखकर नहीं करतीं और फिर आपने अपने इस कथन को साबित करने के लिए लगभग 66 हज़ार पत्रों में से कश्मीर के निवासी मुस्लिम छात्र इक़बाल रसूल डार का नाम लिया. मैं इसके लिए आपको बधाई देना चाहता हूं.

स्मृति “मल्होत्रा” ईरानी जी, इसके पश्चात आपने जाति की राजनीति करने वाले नेताओं पर निशाना साधते हुए कहा कि –‘उन्होंने एक बच्चे की मौत पर जातिगत ओछी राजनीति की है. रोहिथ आपके लिए एक बच्चे की तरह था और एक मां होने के नाते आपने उसके लिए भावुक होने का प्रदर्शन भी किया. मुझे भी एक पल के लिए लगा कि आप सही कह रही हैं, लेकिन फिर स्मृति “मल्होत्रा” ईरानी जी मेरे मन में यह सवाल उठा कि इस मां को ऐसी क्या ज़रूरत आ पड़ी थी कि उसे रोहिथ को गैर-दलित साबित करने के लिए ख़ुफ़िया एजेंसी का सहारा लेना पड़ा? क्या यह जाति आधारित राजनीति का हिस्सा नहीं था?

स्मृति “मल्होत्रा” ईरानी जी, आपने अपने भाषण में रोहिथ के नोट की आख़िरी लाइन “No one is responsible for my death.” को बार-बार दोहराया. स्मृति “मल्होत्रा” ईरानी जी, मैं जानना चाहता हूँ कि क्या आपको रोहिथ के नोट का सिर्फ यही अंश दिया गया था या आपने जान-बूझ कर सिर्फ इसी अंश को पढ़ा. खैर दोनों ही संभावनाओं के मद्देनज़र मैं आपके साथ रोहिथ के नोट के कुछ अंश और साझा करना चाहता हूं.

“The value of a man was reduced to his immediate identity and nearest possibility. To a vote. To a number. To a thing. Never was a man treated as a mind. As a glorious thing made up of star dust. In every field, in studies, in streets, in politics, and in dying and living.”

आगे वह लिखता है:

“My birth is my fatal accident. I can never recover from my childhood loneliness. The unappreciated child from my past.”

स्मृति “मल्होत्रा” ईरानी जी, मुझे आपसे जानने की ख्वाहिश है कि आप जाति के प्रश्न पर क्यों भाग खड़ी होती हैं? क्यों आप इन सवालों को सुनकर विचलित हो जाती हैं? मायावती जी के सवाल पर जवाब देने की जगह आपकी बौख़लाहट भरी आवाज़ आपकी बैचैनी छुप क्यों नहीं पाती? आप ऐसे सवालों का जवाब क्यों नहीं देती? खैर मैं अब आपके भाषण के अगले हिस्से जेएनयू की तरफ़ बढ़ता हूं. लेकिन उससे पहले में इतिहास से कुछ आपके समक्ष प्रस्तुत करना चाहता हूं.

स्मृति “मल्होत्रा” ईरानी जी, वर्ष 1989 में जब तत्कालीन प्रधानमंत्री ने मंडल कमीशन की रिपोर्ट लागू कर दलित और पिछड़ों के सामाजिक व आर्थिक न्याय की दिशा में काम करने की कोशिश की. दलित पिछड़ों ने भी इसको लागू कराने के लिए लामबंद होना शुरू हुए, तब वह लामबंदी संघ की आंखों की कील बन गई. इस आन्दोलन के शुरू होने से पहले ही ख़त्म करने के लिए दलित-पिछड़ों को राम मंदिर निर्माण रथ यात्रा के लिए धर्म की बूटी दे दी गई. यह बूटी संघ के लिए वरदान साबित हुई और मंडल कमीशन के कुछ सुझाव छोड़कर बाकी आज तक लागू नहीं हो सका है.

आज फिर वर्तमान समय में जब रोहिथ की शहादत के बाद दलित, पिछड़े और अल्पसंख्यक एक आन्दोलन के रूप में एकजुट हुए हैं, तब आपने देश को जेएनयू की घटना के ज़रिए ‘राष्ट्रवाद’ का घोल पिलाना शुरू किया, क्योंकि आप जान चुकी हैं कि जनता धर्म की राजनीति से त्रस्त हो चुकी है. ऐसे में आपका छद्म ‘राष्ट्रवाद’ ही आख़िरी उपाय बचता है. इस सन्दर्भ में समुअल जोनसन का कथन बिल्कुल सटीक बैठता है: “Patriotism is the last refuge of scoundrel.”

स्मृति “मल्होत्रा” ईरानी जी, वैसे मैं सिर्फ़ आपसे सवाल ही नहीं करना चाहता, बल्कि आपका आभार भी व्यक्त करना चाहता हूं. आपका आभार व्यक्त करने की वजह आपके द्वारा जनता के साथ साझा किया गया Marcus Tullius Cicero का कथन है:

A nation can survive its fools, and even the ambitious. But it cannot survive treason from within. An enemy at the gates is less formidable, for he is known and carries his banner openly. But the traitor moves amongst those within the gate freely, his sly whispers rustling through all the alleys, heard in the very halls of government itself. For the traitor appears not a traitor; he speaks in accents familiar to his victims, and he wears their face and their arguments, he appeals to the baseness that lies deep in the hearts of all men. He rots the soul of a nation, he works secretly and unknown in the night to undermine the pillars of the city, he infects the body politic so that it can no longer resist. A murderer is less to fear.

स्मृति “मल्होत्रा” ईरानी जी, इस कथन में बिल्कुल सही कहा गया है कि एक देश अपने मूर्खों और महत्वकांक्षियों को निभा सकता है, लेकिन अपने अन्दर के राजद्रोह को नहीं. मैं इस कथन से सहमत हूं. आज भारत को ख़तरा है, उन तथाकथित देशभक्तों से जिन्हें तिरंगे के तीन रंग अशुभ नज़र आते हैं. आज भारत को ख़तरा है, उन देशभक्तों से जिन्होंने 52 वर्षों तक अपने मुख्यालय पर तिरंगा नहीं फहराया. आज भारत को ख़तरा है उन देशभक्तों से जिनका आदर्श स्वतंत्र भारत का प्रथम हत्यारा है. आज भारत को ख़तरा है उन देशभक्तों से जिनका आदर्श हिटलर जैसा बर्बर शासक है. एक बार फिर से धन्यवाद स्मृति “मल्होत्रा” ईरानी जी इस कथन को साझा करने के लिए…

जय भीम, जय हिन्द

मो. ज़ाकिर रियाज़

(मो. ज़ाकिर रियाज़ ने जामिया मिल्लिया इस्लामिया से सामाजिक कार्य में पोस्ट ग्रेजुएशन किया है. वर्तमान में रेहड़ी पटरी कामगारों के अधिकारों के लिए कार्यरत हैं.)

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