By TCN News,
लखनऊ : पिछले दिनों मीडिया में आए वीडियो पर योगी आदित्यनाथ ने आरोप लगाया कि इसके पीछे नक्सलवादी ताकतों की साज़िश है. इसके बाद वीडियो के मूल स्रोत डाक्यूमेंट्री फिल्म ‘सैफ्रन वार’ के निर्माता-निदेशक सदस्यों ने इसे उल-जलूल हरकत करार देते हुए फिल्म में उठाए गए दलितों के हिन्दूकरण, महिला हिंसा, देश विरोधी विदेशी संगठनों से योगी के गठजोड़ और राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या में इस राजनीति की भूमिका से ध्यान हटाने की कोशिश बताया. डॉक्यूमेंट्री फिल्मकार शाहनवाज़ आलम, राजीव यादव और लक्ष्मण प्रसाद ने कहा कि योगी आदित्यनाथ वीडियो को कभी अपना तो कभी कट- पेस्ट बता रहे हैं, लेकिन हमने पहले भी मीडिया द्वारा इस बात को संज्ञान में लाया है कि इस वीडियो के मूल स्रोत को न्यायालय से लेकर चुनाव आयोग सभी को सौंपा जा चुका है. लेकिन सरकार योगी पर किसी भी कार्यवाही के बजाय मुद्दे को सिर्फ चुनावी रणनीति की तरह देख रही है. योगी आदित्यनाथ भी इस अनदेखी का पूरा लाभ उठा रहे है. इस मामले में कोई भी कार्यवाही न करके चुनाव आयोग अपनी जवाबदेही से तो बच ही रहा है, साथ ही योगी को बचाने वाले अपने अधिकारियों को भी बचाने की कोशिश में लगा हुआ है.
File photo of Yogi Adityanath
जर्नलिस्ट यूनियन फॉर सिविल सोसायटी (जेयूसीएस) के सदस्य राघवेंद्र प्रताप सिंह ने कहा कि ‘राज्य मुख्य निर्वाचन अधिकारी उमेश सिन्हा द्वारा भड़काऊ और राष्ट्रीय एकता के लिए खतरा उत्पन्न करने वाले भाषण देने वाले योगी आदित्यनाथ के सन्दर्भ में कहा गया कि आयोग किसी से भी भेदभाव नहीं करता. चुनाव आयोग का काम ही सामाजिक भेदभाव और वैमनस्य का प्रसार कर रहे नेताओं पर लगाम कसकर लोकतंत्र की गरिमा को बचाना है.’ सिंह ने आगे कहा कि, ‘अगर चुनाव अधिकारी यह कहते हैं कि आयोग किसी से भेदभाव नहीं करता तो इसका स्पष्ट मतलब यही है कि चुनाव आयोग सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की राजनीति कराने के लिए भड़काऊ भाषण देने वालों के समर्थन में है और उनके इनके इस साम्प्रदायिक एजेंण्डे में वह हर मुमकिन मदद भी कर रहा है.’
इस मामले में कोई भी कार्यवाही न करने वालेचुनाव आयोग के रवैये पर डॉक्यूमेंट्री फिल्म ‘सैफ्रन वार’ के फिल्मकारों ने कहा कि ‘2008 में आजमगढ़ उपचुनाव में भाजपा सांसद योगी आदित्यनाथ ने एक हिन्दू के बदले दस मुसलमानों को मारने, एक हिंदू लड़की के बदले 100 मुस्लिम लड़कियों को हिन्दू बनाने और मुसलमानों को अरब के बकरों की तरह काटने, बाबरी मस्जिद की तरह ही आजमगढ़ की मस्जिदों को ढ़हाने जैसेसांप्रदायिक आतंकी भाषण दिए. शिकायत करने के बावजूद 2008 में चुनाव आयोग और आजमगढ़ प्रशासन द्वारा इस पर कोई कार्यवाई न करने पर हमने 2009 लोकसभा चुनावों के दौरान न्यायालय, चुनाव आयोग के संज्ञान में भी इस बात को लाया. अब जब फिर से 2014 में भी मीडिया में जब यह वीडियो आया तो इसकेसांप्रदायिक और विवादास्पद भाषा होने को लेकर लगातार बहस हो रही है पर चुनाव आयोग – जो छोटी-छोटी बातों को संज्ञान में ले लेता है और इस मामले के संज्ञान में लाए जाने के बाद भी – द्वारा जिस तरह इसको 2008 से लगातार टाला जा रहा है, उससे साफ हैकि देश में चुनाव आयोग जैसी संस्थाएं आचार संहिता के नाम पर सांप्रदायिकता का संरक्षण कर रही हैं.