By TwoCircles.net staff reporter,
आज के पांच में आपके लिए….क्यों जयराम रमेश की राय राजनीतिक होते हुए भी सही है, क्या मोदी देश के कानून को हाथ में लेने की तैयारी में हैं, ‘आप’ के रास्ते ‘खाप’ बनने की ओर, दुबका हुआ राष्ट्रवाद और वापसी करने के लिए क्या कदम उठा रही हैं मायावती?
1. जयराम रमेश के लिए नरेन्द्र मोदी क्या?
नरेन्द्र मोदी ने सत्ता हासिल करते वक्त नहीं सोचा था कि उन्हें चारों तरफ़ से आलोचनाओं और बयानों का वार झेलना होगा. कि उनके हरेक कदम की पड़ताल की जाएगी. लोकसभा चुनाव को बीते वक लंबा वक्त बीत चुका है. चुनाव प्रचार के वक्त मोदी न कई ‘जुमलों’ के माध्यम से कहा था कि सरकार का स्वरूप छोटा होगा लेकिन सरकारी तन्त्र उतना ही बड़ा होगा. अब बकौल पूर्व केन्द्रीय मंत्री जयराम रमेश ‘भारत के इतिहास में इससे पहले केंद्रीकृत सरकार नहीं आई.’ इसके पहले आप जयराम रमेश के बयान का कोई और मतलब निकालें, यह बात बता दें कि जयराम के बयान का मतलब है कि यह सरकार डिक्टेटर बनने के क़रीब है. जयराम ने कहा कि यह सरकार एक आदमी की होकर रह गयी है, सभी नेताओं, मंत्रियों और अधिकारियों के अधिकारों का हनन हो रहा है. जयराम ने कहा कि, ‘मुझे सबसे बड़ा खतरा लगता है कि पिछले एक साल में भारत ‘संकुचित लोकतंत्र’ बनने की ओर बढ़ रहा है. प्रधानमंत्री के रूप में हमारे पास एक बहुत अधिनायकवादी शख्सियत है जो आम-सहमति में विश्वास नहीं करता और जो लोगों को साथ लेकर चलने में भरोसा नहीं करता.’ उन्होंने दावा किया कि मोदी की कार्यशैली के चलते जनता का मोहभंग हो गया है. जयराम अपने बयानों और राजनीतिक मूल्यांकन के लिए चर्चित चेहरे रहे हैं. उनके बयान से हटकर भी सोचें तो भूमिअधिग्रहण बिल और बाकी वादों के मद्देनज़र मौजूदा सरकार का रवैया लगभग-लगभग जयराम रमेश के बताए हुलिये से मिलता-जुलता है.
2. न्याय प्रक्रिया के लिए मोदी की नसीहतें
इस देश का इतिहास जब लिखा जाएगा तो यह भी लिखा जाएगा कि इस देश का शासक देश की न्यायव्यवस्था को अपने ढंग से चलाने के प्रयास (सम्भव) कर रहा था. सर्वोच्च न्यायालय के जजों और देश भर के उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों के साथ हुई बैठक में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कुछ ऐसी बातें कहीं, जिनके मतलब ऊपर लिखी बात से राब्ता रखते हैं. नरेन्द्र मोदी ने इस बैठक में जजों से कहा कि वे ध्यान दें कि कहीं देश का कानून पांच-सितारा एक्टिविस्टों के दम पर तो नहीं चल रहा है? चूंकि राजनीतिक तंत्र की तरह देश की ज्यूडिशियरी के पास ‘खुद का मूल्यांकन’ करने का कोई पैमाना नहीं है, इसलिए खुद के मूल्यांकन के लिए एक तंत्र का निर्माण करें. इसके बाद नरेन्द्र मोदी ने कहा कि देश में पुराने और निरर्थक पड़े कानूनों को एक-एक करके खत्म करने की ज़रूरत है. इन कानूनों में 700 समीक्षाधीन व 1700 पुराने कानून शामिल हैं. प्रधानमंत्री का लक्ष्य है कि वे हरेक दिन एक ऐसे कानून को खत्म करें. ऐसी पहल और भी ज़्यादा फ़िक्र पैदा करती है जब फर्जी मुठभेड़ में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की संलिप्तता की जांच करने वाले न्यायाधीश का तबादला कर दिया जाता है. और तब और भी, जब जजों की नियुक्ति के पुराने कोलेजियम सिस्टम को हटाकर नए सिस्टम को लाने की तैयारी की जा रही है.
3. ‘खाप’ में तब्दील होती ‘आप’!
अपने आंतरिक लोकतंत्र की समस्याओं के जूझ रही आम आदमी पार्टी के लिए क्या इतनी भद्द कम थी कि अब उन्हें वीवीआईपी और वीआईपी लोगों की पार्टी होने का तमगा पहना दिया गया. ऐसा हो भी क्यों न? अन्य राजनीतिक पार्टियों की तरह ही ‘आम आदमी पार्टी’ ने तालकटोरा स्टेडियम में आयोजित अपने हालिया कार्यक्रम में ‘वीवीआईपी’ और वीआईपी’ लोगों के प्रवेश और बैठने के लिए अलग व्यवस्था की थी. इसके बाद कांग्रेस प्रवक्ता अजय माकन और पिछली सरकार में केन्द्रीय मंत्री रहे पी.एल. पुनिया को मौक़ा मिला ‘आप’ की टांग खींचने का. अजय माकन ने साफ़-साफ़ कहा कि आम आदमी पार्टी सिर्फ़ 50 दिनों में आम आदमी से ख़ास आदमी की पार्टी हो गयी है. पुनिया ने भी कहा कि पार्टी अब उसी एजेंडे पर उतर आई, जिसके वह खिलाफ़ थी. एकबानगी कांग्रेसी धड़े के इन आरोपों को हटा भी दें तो यह चित्र साफ़ होता दिखता भी है. राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में जिस तरह से बाउंसर बुलाकर योगेन्द्र यादव और प्रशान्त भूषण के खिलाफ़ वोटिंग कराई गयी, वह इस ओर इशारा करता है कि आम आदमी पार्टी (आप) धीरे-धीरे ख़ास आदमी पार्टी (खाप) में तब्दील हो रही है.
4. कहां गया राष्ट्रवाद जब चीन फ़िर से भीतर घुस आया है?
केन्द्र में सरकार चुने जाने के पहले से लेकर बाद तक यह बातें सभी ने सुनी होंगी कि अब देश के दुश्मन होश में रहेंगे, पाकिस्तान और चीन अपनी हरकतों से बाज़ आ जायेंगे. लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ और पाकिस्तान और चीन दोनों ही अपनी हरकतों से बाज़ नहीं आ रहे हैं. हालिया खबर लद्दाख से है, यहां मार्च के आखिरी दिनों में चीन के सेना दो बार भारतीय सीमा के अंदर घुस आई. भारत और चीन की सेनाएं एक दूसरे के सामने थीं. और भारतीय सेना ने वही किया जो वह हमेशा से करती आई है. भारतीय सैनिक चीन के घुसपैठियों के सामने बैनर लेकर खड़े हो गए, जिन पर लिख थे कि वे वापिस अपनी सीमा में लौट जाएं. हम इसे किसी किस्म की कायरता से नहीं जोड़ रहे हैं न ही किसी हिंसा की पैरवी कर रहे हैं. लेकिन यहां जानने लायक बात यह है कि जब पाकिस्तान के घुसपैठ की बात होती है तो सरकार का रवैया अलग और चीन के घुसपैठ की बात पर अलग होता है. संभवतः अपने अंतर्राष्ट्रीय और व्यापार-संबंधी सम्बन्धों का नुकसान न करने की नीयत से ही भारत की राष्ट्रवादी सरकार चीन के खिलाफ़ कोई कदम नहीं उठाना चाह रही है.
5. मायावती की वापसी?
लोकसभा चुनावों में हाशिए पर भी अपनी जगह न बना पाने वाली बसपा सुप्रीमो मायावती अब बयानबाज़ी के बल पर फ़िर से सुर्ख़ियों और चुनाव में लगाह बनाना चाह रही हैं. पहले तो उत्तर प्रदेश की अखिलेश सरकार के खिलाफ़ बयानबाज़ी शुरू करके उन्होंने आठ-नौ साल पुराने माहौल को फ़िर से जीवित कर दिया है. उन्होंने वही जुमला दुहराया कि उत्तर प्रदेश अब अपराध प्रदेश में बदल गया है. सपा सरकार में अपराध बढ़ता जा रहा है. मायावती ने सपा सरकार के तीन सालों में ही सभी चुनावी वादे पूरा करने के दावे पर तंज कसते हुए कहा कि अब तो सपा को बिना देरी विधानसभा भंग कर मध्यावधि चुनाव करा नया जनादेश हासिल करना चाहिए. इतना ही नहीं…इसके बाद मायावती कल्पनातीत ढंग से मोदी सरकार के भूमि अधिग्रहण बिल की मुखालफत में उतर आईं और उन्होंने कह दिया कि यह किसानों के हित में नहीं है और इसे तत्काल वापस लिया जाना चाहिए. ‘केन्द्र को भूमि अधिग्रहण बिल का संशोधित विधेयक वापस लेना चाहिए. उसे 2013 में पारित कानून ही लागू करना चाहिए.’ विधेयक के विरोध में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की अगुवाई में विरोधी दलों के नेताओं और सांसदों के मार्च में शामिल न होने के बारे में मायावती ने कहा कि इससे यह दुष्प्रचार होता कि हमारा कांग्रेस के साथ कोई तालमेल हो रहा है. मायावती के लिए कोई कमबैक जैक होना ही चाहिए, कोई गठबंधन न सही जुबानी तीर ही सही. कोई मामला तो बनता दिखेगा ही..