Home India Politics ’84 दंगे की जांच भाजपा का राजनीतिक पैंतरा?

’84 दंगे की जांच भाजपा का राजनीतिक पैंतरा?

By TwoCircles.Net staff reporter,

नई दिल्ली: लगता है कि केन्द्र में हाल में ही आई भाजपा सरकार कांग्रेस को पूरी तरह से निगलने की तैयारी में है. लोकसभा चुनावों में बुरी गत करने के बाद राज्यों के विधानसभा चुनावों में भी कांग्रेस को हाशिए पर धकेलने के बाद भाजपा ने कांग्रेस पर अब कानूनी शिकंजा कसने की तैयारी पूरी कर ली है.

हाल में ही केन्द्र सरकार द्वारा नियुक्त की गयी समिति ने सरकार से सन् 1984 के सिख विरोधी दंगों की पुनः जांच के लिए एसआईटी के गठन की संस्तुति कर दी है. केन्द्र सरकार ने 23 दिसम्बर 2014 को माथुर समिति का नियुक्तिकरण 1984 के दंगों की पुनर्जांच की संभावनाओं का पता लगाने के लिए किया था.



1984 Sikh riot (file photo) (Courtesy: OutlookIndia.com)

उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश(सेवानिवृत्त) जस्टिस जी.पी. माथुर की अध्यक्षता में गठित इस समिति ने पिछले हफ़्ते गृहमंत्री राजनाथ सिंह को अपनी रिपोर्ट सौंपी है, जिसमें समिति ने दंगों की पुनः जांच के लिए एसआईटी के गठन की संस्तुति की है.

इधर पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने भी माथुर कमेटी की रिपोर्ट का हवाला देते हुए एसआईटी के गठन की मांग कर दी है. ज्ञात हो कि 10 दिसम्बर 2014 को केन्द्र सरकार ने सिख विरोधी दंगों में पीड़ितों को पांच लाख अतिरिक्त मुआवज़ा देने का ऐलान किया था. इसके बाद नियुक्त की गयी समिति ने अपनी 45 पृष्ठों की रपट में जो संस्तुति की है, उसे कांग्रेस पार्टी के नाता रखने वाले लोग राजनीति से प्रेरित बता रहे हैं.

कांग्रेस के प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने कहा है कि यह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की विधानसभा चुनाव से पहले मतदाताओं को लुभाने की बस एक तरकीब है. बेंगलुरू में पार्टी के कार्यक्रम में शिरकत करने आए कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव दिग्विजय सिंह ने इस विषय में प्रश्न पूछे जाने पर कहा कि भाजपा 1984 के दंगों में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की भूमिका पर चुप क्यों है?

वहीं दूसरी ओर अकाली दल ने इस मुद्दे पर संतोष प्रकट किया है. अकाली दल के नेता मंजीत सिंह ने कहा, ‘मैं समझता हूं कि अब सरकार को देर नहीं करनी चाहिए क्योंकि 30 साल का समय तो बर्बाद हो ही चुका है.’

यह विदित है कि पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद 1984 के सिख विरोधी दंगों में ढाई हज़ार से ज़्यादा सिखों की मौत हुई थी. इनमें मरने वालों की सबसे अधिक संख्या दिल्ली में थी. जानकारों का मानना है कि भाजपाशासित केन्द्र सरकार ने यह कदम आगामी विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को बैकफुट पर धकेलने के लिए उठाया है. दिल्ली में ‘आम आदमी पार्टी’ की सशक्त उपस्थिति ने कांग्रेस और भाजपा दोनों की स्थिति ख़राब कर रखी है. कांग्रेस, जो लगभग हरेक चुनाव में बद से बदतर प्रदर्शन करने को आमादा है, के लिए भाजपा का यह कदम ख़ासा कठिन साबित हो सकता है. सम्भावना ऐसी भी है कि दिल्ली में मौजूद सिख वोटबैंक भाजपा के इस पैंतरे का शिकार हो जाए.

एंटी-फाशिस्ट विचारकों का मानना है कि भाजपा का यह कदम विचारणीय है, लेकिन इसके साथ सन् 2002 के दंगों की पुनः जांच के लिए भी ज़रूरी कदम उठाने होंगे. ज्ञात हो कि नानावटी आयोग ने पुलिस द्वारा बंद किये गए 241 मामलों में से सिर्फ़ चार को ही फ़िर से खोलने की सिफारिश की थी, लेकिन भाजपा सभी को फ़िर से जांच के घेरे में लाने की तैयारी में थी. यदि योजनानुसार और घोषणानुसार एसआईटी का गठन हो गया, तो कांग्रेस की मुश्किलें बेहद बढ़ सकती हैं.