By सिद्धान्त मोहन, TwoCircles.net,
वाराणसी : समय चुनौतीपूर्ण है, हमें समय के खतरों को बस भांपना नहीं है. उसकी निशानदेही कर संभावित बुराइयों का तोड़ निकालना है. इस तोड़ का सबसे बड़ा साधन साहित्य और उसका सबसे बड़ा हथियार कविता है. कुछ ऐसा निकलकर आता है जब आप ‘कविता : 16 मई के बाद’ आयोजन श्रृंखला के किसी अध्याय का हिस्सा बनते हैं. कुछ भी बात करने के पहले इस आयोजन के स्वरूप और इसके एजेंडे से रू-ब-रू होना होगा. कुछ अरसा पहले हिन्दी पट्टी के कविता समाज के कुछ सजग लोगों और साहित्यिक संगठनों – प्रगतिशील लेखक संघ व इप्टा, जनवादी लेखक संघ और जन संस्कृति मंच – ने लोकसभा चुनाव-2014 के बाद फाशीवाद से लड़ने के लिए हिन्दी कविता को सबसे सुलभ और मौजूं हथियार माना. और इसके तहत एक आयोजन की नींव रखी गयी, जिसे कहा गया ‘कविता : 16 मई के बाद’.
दिल्ली, इलाहाबाद, लखनऊ के बाद शनिवार को इस आयोजन का काफ़िला प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में पहुंचा. संत कबीरदास की मूलगादी कबीर मठ में यह आयोजन किया गया. प्रलेस के संजय श्रीवास्तव ने कार्यक्रम के संचालन का जिम्मा उठाते हुए कहा, ‘हम एक क्राइसिस से जूझ रहे हैं, उस क्राइसिस के बीच हमें ही रास्ता निकालना होगा. अब जब अभिव्यक्ति पर पहरेदार बैठे हैं और विचारों की गुंज़ाइश कम होती जा रही है, हम लेखकों और कवियों को ही विचारों के लिए ज़मीन खाली करानी होगी. हमारा यह आयोजन पूरे देश भर में चलेगा.’
कार्यक्रम समिति के संयोजन रंजीत वर्मा ने कहा, ‘कार्यक्रम समिति के बहुत सारे लोग यहां नहीं आ सके. वे दिल्ली में भाजपा की गत होती देखने रुके हैं.’ दिल्ली विधानसभा चुनाव पर अपनी बात को केंद्रित करते हुए वर्मा ने कहा, ‘आम आदमी पार्टी ने मार्क्सवादी एजेंडे को बड़ी सफ़ाई से चुना है, वे विकल्प के तौर पर जनता को उपलब्ध हैं. लेकिन आम आदमी पार्टी के पास राजनीति का कोई कारण नहीं है, वे मौकापरस्त हैं.’
रंजीत वर्मा ने आगे कहा, ‘हमारा मौजूदा लोकतंत्र पूंजीवादी किस्म का है. जैसा इतिहास में होता आया है, वह इस बार भी होगा. पूंजीवादी लोकतंत्र धीरे-धीरे साम्राज्यवाद की तरफ़ मुड़ जाएगा. ऐसे समाज में कविता हमारी लड़ाई का साधन हैं और कविताएं हमारी सबसे पहली आवाज़ हैं.’
बनारस के युवा कवि व्योमेश शुक्ल ने सम्वाद के क्रम को आगे बढाते हुए कहा, ‘काशी हिन्दू विश्वविद्यालय का माहौल सबको पता है. हिंदुत्व को शैक्षिक और अकादमिक जामा पहनाने की शुरुआत यहीं से होती है लेकिन यहीं के हिन्दी विभाग से ही दक्षिणपन्थ और फाशिज्म के खिलाफ़ आवाज़ें भी उठ रही हैं. हमें समझदारी, सजगता और पूरे विवेकयुक्त जोश के साथ आगे बढ़ना होगा. यदि आंदोलन की शुरुआत का हथियार कविता है, तो उसे खत्म करने का आखिरी हथियार भी कविता ही है.’
बीएचयू के हिन्दी विभाग के शिक्षक रामाज्ञा राय ने कहा, ‘हम कवि अपनी रचनाओं में संबोधित समाज को ही अपनी बात समझाने में असफल रहे हैं. हमारे अंदर जितना प्रतिरोध है, उतना ही डर भी है. हम सबकी बौद्धिकता मरती जा रही है. अपने समाज के इतिहास और वर्तमान के बोध को दुरस्त करने का दायित्व हम लेखकों, कवियों, कलाकारों और नाट्यकर्मियों का है. हम सभी इस मुहिम का हिस्सा हैं.’
कबीर परम्परा के वाहक और कबीर मठ के महंत स्वामी विवेकदास ने दावा किया कि वे बनारस में हिंदुत्व के झंडे को फ़हराने नहीं देंगे और बनारस को जिस धार्मिक सांचे में ढालने की साज़िश हो रही है, वे हमेशा उसके खिलाफ़ खड़े रहेंगे. उन्होंने कहा, ‘मैं दावा करता हूं कि मैं संघ और भाजपा के चंगुल के इस मठ और कबीरपंथ को हमेशा मुक्त रखूँगा. विरोध में सबसे पहली गर्दन मेरी कटेगी. यहां चुनाव के समय न्यूज़ चैनल कार्यक्रम कर रहे थे तो मुझे तीन बार अमित शाह का फ़ोन आया और उन्होंने मुझे कहा कि थोड़ा कम बोलिए. मेरा विरोध किसी व्यक्ति के खिलाफ़ नहीं है, बल्कि उस विचारधारा के खिलाफ़ है जो दिनोंदिन नासूर बनती जा रही है.’
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे प्रो. चौथीराम यादव ने कहा, ‘हम सभी आरामपसंद आंदोलनकारी हैं. हम कम्बल ओढ़कर घी पीते हैं. लोकतंत्र में मजबूत विपक्ष की अनुपस्थिति में मजबूत शासन नहीं मिल सकता है. हमें वह मजबूत विपक्ष बनना होगा, सभी रचनाकारों और कवियों को समझना होगा. हम सारी परम्परा और उसके सभी आयामों को जज़्ब करना होगा.’
इसके बाद हुए कवितापाठ में महेंद्र प्रताप सिंह, व्योमेश शुक्ल, आशुतोष मिश्र, कुमार मंगलम, प्रकाश उदय, अनुज लुगुन, अरमान आनंद, रामाज्ञा राय, सलाम बनारसी, विनोद शंकर, रंजीत वर्मा, मूलचंद सोनकर, राजेश्वर त्रिपाठी, बलभद्र, संजय श्रीवास्तव व मिथिलेश श्रीवास्तव ने खुले तौर पर अपनी कविताओं से भाजपा, हिंदूवादी एजेंडे, गुजरात दंगों, मस्जिद विध्वंस, घर-वापसी और तमाम दक्षिणपंथी कुटिलताओं का विरोध किया.