सिद्धांत मोहन, TwoCircles.net,
वाराणसी: कम्यूनल हार्मोनी यानी साम्प्रदायिक सौहार्द्र पर बात करना या उसे किसी चर्चा का विषय बनाना उतना आसान नहीं, जितना सोचने में लगता है. यह काम और भी ज्यादा मुश्किलों से भरा हो जाता है, जब आपको यह ख़याल ज़ाहिर होता है कि हिन्दू दक्षिणपंथ के तमगे से टिमटिमाता काशी हिन्दू विश्वविद्यालय यानी BHU में ऐसे किसी सेमीनार का आयोजन हो रहा है.
और भी ज्यादा मुश्किल तब, जब इस आयोजन में भाग लेने वाले मुख्य अतिथि की पहचान को लेकर तरह-तरह के भ्रम जान-बूझकर फैलाए जा रहे हों. और तब तो और भी ज्यादा जब यह मालूम हो कि मुख्य अतिथि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का हो और कार्यक्रम के साथ-साथ मुख्य अतिथि की पहचान छिपाने की जिम्मेदारी Student Islamic Organisation (स्टूडेंट इस्लामिक आर्गेनाईजेशन) यानी SIO के कन्धों पर हो. SIO जमात ए इस्लामी का छात्र संघ है.
कुछ-कुछ ऐसा ही रहा BHU में आयोजित साम्प्रदायिक सौहार्द्र और राष्ट्र निर्माण पर आयोजित सेमीनार का हाल. इस सेमीनार को आयोजित कराने का जिम्मा SIO और BHU के राजनीतिविज्ञान विभाग ने सामूहिक रूप से लिया था. दो दिनों तक देश के पास-दूर के हिस्सों से शोधछात्र आते रहे और अपने-अपने रीसर्च पेश करते रहे.
कार्यक्रम का उद्घाटन रामशंकर कथेरिया ने किया. ज्ञात हो कथेरिया आगरा से सांसद हैं और पिछले बीस सालों से भी अधिक सालों से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के समर्पित सदस्य हैं. केरल के उडूपी स्थित पेजावर मठ के महंत विश्वेश्वर तीर्थ स्वामी ने भी कार्यक्रम में शिरकत की. विश्वेश्वर तीर्थ के बारे में भी यह जानकारी मजेदार है कि इन स्वामी ने 2जी मामलों में आरोपी नीरा राडिया का खुलकर पक्ष लिया था और उन्हें निर्दोष करार दे दिया था. पेजावर उमा भारती को भी दीक्षित कर चुके हैं. अटल बिहारी वाजपेयी सरीखे भाजपा के शीर्ष नेता के साथ वे विश्व हिन्दू परिषद् और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विवादित-चर्चित नेताओं के साथ पेजावर मठ के स्वामी विश्वेश्वर तीर्थ की करीबी जगज़ाहिर है. राडिया लम्बे वक़्त से पेजावर स्वामी की भक्त हैं और स्वामी विश्वेश्वर तीर्थ स्वामी…ज़ाहिर हैं कि मोदी के भक्त.
एक और स्वामी सरस्वानंद सरस्वती ने कार्यक्रम में शिरकत की. शुरू-शुरू में बातों में एक चिर-परिचित तरीके से वे हिन्दू धर्म और विश्व शान्ति की बातें करते रहे, लेकिन बाद में जब वे मोदी-महिमा पर उतरे तो बात साफ़ हो गयी. स्वामी सरस्वानंद सरस्वती ने कहा, ‘हर्ष का विषय है कि इस सेमीनार का आयोजन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र में हो रहा है, मेरी इच्छा थी कि काश प्रधानमंत्री भी इसमें हिस्सा ले पाते.’
इस सेमीनार के बाबत नाम आता है इन्द्रेश कुमार का. भारत का राजनीतिक रूप से सजग हरेक व्यक्ति इन्द्रेश कुमार का नाम आने पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का नाम खुद-ब-खुद जोड़ लेता है. जो नहीं जानते, वे जान लें कि धर्म-सम्प्रदाय की बात आने पर एक ही इन्द्रेश कुमार का नाम ज़ेहन में आता है, जो है राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक इन्द्रेश कुमार का. इससे इतर कोई भी बात बहस बेमानी मालूम होती है.
कार्यक्रम का न्यौता और कार्ड मिलने पर हमने देखा कि इन्द्रेश कुमार के परिचय में ‘सोशल एक्टिविस्ट’ लिखा हुआ है, जबकि बाकी सारे आगंतुकों के नाम पर उनके संगठन व पदनाम लिखे हुए थे. हमने खोजना-पूछना शुरू किया कि इन्द्रेश कुमार की असलियत क्या है? पहले-पहल कार्यक्रम के मुख्य आयोजक SIO से बात करने की कोशिश की गयी तो TCN को बहुत कोशिशों के बाद बताया गया कि ‘शिरकत कर रहे इन्द्रेश कुमार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक नहीं, नीदरलैंड के विवेकानंद फाउन्डेशन से जुड़े इन्द्रेश कुमार हैं जो कई वर्षों से इस्लाम धर्म के साथ साम्प्रदायिक सौहार्द पर काम कर रहे हैं.’
इसके बाद कार्यक्रम के सह-आयोजक BHU के राजनीतिविज्ञान विभाग के प्रमुख प्रो. केके मिश्रा से इसके बाबत बात की गयी. TCN के दो संवाददाताओं को प्रो. मिश्रा ने दो संस्करण सुनाए. एक दफा उन्होंने TCN को बताया कि ‘ये इन्द्रेश कुमार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नहीं नीदरलैंड के प्रोफ़ेसर हैं और मेरे बहुत अच्छे मित्र हैं.’ [पढ़िए खबर : Furore on social media over SIO ‘invitation’ to Indresh Kumar ]
मंच पर बैठे प्रो. केके मिश्रा, स्वामी सरस्वानंद सरस्वती और उत्तर प्रदेश भाजपा अध्यक्ष लक्ष्मीकांत वाजपेयी (बाएं से दूसरे, तीसरे व चौथे)
लेकिन एक और दफा बात करने पर प्रो. मिश्रा ने बताया कि ‘इन्द्रेश कुमार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक हैं और वे इसलिए आ रहे हैं ताकि मुस्लिम समाज के बारे में संघ की भूमिका के बारे में बात कर सकें.’ हमारे पास इस बातचीत के पुख्ता साक्ष्य मौजूद हैं.
मामला यहीं ख़त्म नहीं होता है, आयोजन के पहले दिन SIO के सचिव तौसीफ़ और BHU के प्रो. केके मिश्रा से इन्द्रेश कुमार की पहचान पर प्रश्न करने पर दोनों नीदरलैंड वाले इन्द्रेश कुमार से पहचान कराते हैं. मजेदार बात यह कि असल पहचान के बारे में पूछने पर SIO व BHU हमें एक-दूसरे की ओर मोड़ देते हैं. प्रो. केके मिश्रा कहते हैं कि इन्द्रेश कुमार को SIO ने बुलाया व SIO के तौसीफ़ कहते हैं कि इन्द्रेश कुमार को प्रो. केके मिश्रा ने बुलाया है. यह भ्रम आयोजन के दूसरे दिन तक फैला रहता है.
हम आयोजन के दूसरे दिन के उस सत्र में समय से पहुंच जाते हैं, जब इन्द्रेश कुमार का वक्तव्य होना है. मंशा यह रहती है कि नए इन्द्रेश कुमार से परिचय किया जाए कि वे मुस्लिम समुदाय के साथ सौहार्द्र के स्तर पर क्या काम कर रहे हैं? लेकिन मौके पर न राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कोई इन्द्रेश कुमार आते हैं और न ही कोई नीदरलैंड वाले.
लेकिन इससे रोचक घटना साम्प्रदायिक सौहार्द्र के इस आयोजन में होती है कि भाजपा के उत्तर प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मीकांत वाजपेयी बिना किसी पूर्व-सूचना या विज्ञापन के आ जाते हैं. संचालक बताते हैं कि लक्ष्मीकांत वाजपेयी इस सत्र के मुख्य अतिथि हैं. रोचक बात यह कि संचालक द्वारा परिचय से लेकर सत्र के आखिर तक कहीं भी कोई भी इस बात का भूले से भी ज़िक्र नहीं करता कि लक्ष्मीकांत वाजपेयी भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष हैं. सभी यह कहते हैं कि वे विधानसभा सदस्य हैं.
लक्ष्मीकांत वाजपेयी मंच पर आते ही राम-रहीम-कबीर और स्वतंत्रता संग्राम के हिन्दू-मुस्लिम योद्धाओं का ज़िक्र करते हुए बताते हैं कि भारत के लिए साम्प्रदायिक सौहार्द्र की ज़रुरत क्या है? अंततः वे इस मुद्दे पर आ जाते हैं कि ‘नरेंद्र मोदी ने सबका साथ, सबका विकास का नारा दिया है. देश को उसी राह पर आगे बढ़ाना है और हम सभी समुदायों को इसमें शामिल होना होगा.’ वे साम्प्रदायिक सौहार्द्र को बिगाड़ने में गिरते सामाजिक मूल्यों को दोष दे देते हैं, लेकिन बात को राजनीति के फलक पर और टीवी चैनलों को योग के महत्त्व पर दिए जा रहे इंटरव्यू पर ख़त्म कर देते हैं.
और कई वक्ता आते हैं लेकिन वे साम्प्रदायिक सौहार्द्र पर कोई भी बड़ा मुद्दा रखने के बजाय ‘सभी धर्म समान हैं’ और ‘भिन्न-भिन्न धर्मों में एकता पर क्या कहा गया है’ पर आकर बात ख़त्म होती है और सेमीनार भी.
सेमीनार के बाद हम SIO के लोगों से मिलते हैं और पूछते हैं कि इन्द्रेश कुमार क्यों नहीं आए? तौसीफ़ कहते हैं, ‘यह तो दो दिनों पहले से ही हमें पता था कि वे नहीं आएँगे, उन्होंने मना कर दिया था.’ हमें पूछा कि इसके बारे में मंच से कोई आधिकारिक जानकारी क्यों नहीं दी गयी? इस पर तौसीफ़ ने कहा, ‘अब कार्यक्रम के दौरान ध्यान नहीं पड़ा.’ हमने फिर से पूछा कि इन्द्रेश कुमार कौन हैं, अब तो नहीं आए तो बता दीजिए. तौसीफ़ ने गेंद फिर से BHU के पाले में डालते हुए कहा कि ‘उनके बारे में सब प्रो. केके मिश्रा जानते हैं, उन्हीं से पूछिए.’
हमें कार्यक्रम के बाद प्रो. केके मिश्रा से भी बातचीत की. उन्होंने कहा, ‘अब नहीं आए, आते तो खबर बनती.’ उन्होंने आगे फिर से सच कुबूला, ‘दरअसल SIO वालों ने संघ वाले इन्द्रेश कुमार को आमंत्रित किया था. किसी कारण से वे आने में असफल रहे, इसलिए ये लोग अब मुझपर दबाव डाल रहे हैं.’ न आने के कारण के बारे में पूछने पर केके मिश्रा कोई जवाब नहीं दे सके. चूंकि कही गयी बातों से मुकर जाने का दौर है, इसलिए हमारे पास सभी बातचीत के साक्ष्य मौजूद हैं.
प्रो. केके मिश्रा भी दिलचस्प किरदार हैं. मोदी की सरकार बनने के बाद प्रो. मिश्रा ने सबसे पहले सुर बदलने का काम किया. वे सोशल मीडिया पर योग प्रोमोट करते देखे जा सकते हैं और अपनी एक छात्रा को नरेंद्र मोदी पर और एक को प्रधानमंत्री के आदर्श ग्राम जयापुर पर शोध के लिए रजिस्टर किया हुआ है.
बहरहाल, यह आयोजन कुछ सवाल छोड़े जा रहा है जिनका जवाब लोग SIO और BHU से मांग रहे हैं. साम्प्रदायिक सौहार्द्र के कार्यक्रम में ऐसे व्यक्ति (इन्द्रेश कुमार) को बुलाने की ज़रुरत क्यों पड़ी, जिसका नाम समझौता एक्सप्रेस ब्लास्ट, अजमेर ब्लास्ट और मक्का मस्जिद ब्लास्ट की चार्जशीट में शामिल है? बुलाने के बाद क्या ज़रुरत थी कि इन्द्रेश कुमार की असल पहचान छिपायी गयी? बिना किसी पूर्व-सूचना के भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष को बुलाने का क्या आशय था, वह भी ऐसे में जब इस सेमीनार में यह बात खुलकर आ रही थी कि राजनीति की वजह से साम्प्रदायिक सौहार्द्र नष्ट हो रहा है? लक्ष्मीकांत वाजपेयी को ही क्यों बुलाया गया, यह मालूम होते हुए भी लक्ष्मीकांत वाजपेयी खुले-आम ताजमहल के नीचे शिवमंदिर होने के दावे करते रहे हैं और उत्तर प्रदेश में महिलाओं के खिलाफ हो रहे अपराधों के पीछे मुस्लिमों का हाथ होने का दावा करते रहते हैं?
इन सभी के साथ एक और सवाल जो मुस्लिम समुदाय की ओर से SIO के लिए रखा जाना चाहिए, वह ये कि क्या SIO को ज़रुरत थी कि वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के साथ हाथ मिलाकर साम्प्रदायिक सौहार्द्र को अंजाम दे, क्या इस पूरे प्रोपगेंडा में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जैसे संगठनों को बाहर रखकर बात नहीं की जा सकती थी?