By TCN News,
लखनऊ: हाशिमपुरा जनसंहार पर आए अदालती फैसले के बाबत बुधवार को हुई बैठक में विभिन्न राजनैतिक व सामाजिक संगठनों ने राजधानी लखनऊ में जनसम्मेलन करने व प्रदेश में जन अभियान चलाने का निर्णय लिया है. इस अभियान को आगामी अप्रैल माह से रंग देने की तैयारी में रिहाई मंच समेत सभी संगठन दिखाई पड़ रहे हैं. बैठक में उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद, मेरठ, हाशिमपुरा, मलियाना, कानपुर, बिजनौर की साम्प्रदायिक हिंसाओं की घटनाओं की जांच आयोगों द्वारा रिपोर्ट को सार्वजनिक करने की मांग की गयी है.
रिहाई मंच के अध्यक्ष मुहम्मद शुऐब ने कहा कि हाशिमपुरा जनसंहार के बाद पीएसी की 41वीं बटालियन के कमांडेंट को मुकदमे से बाहर रखा गया. हत्यारों की राइफलों को जांच के लिहाज़ से जब्त नहीं किया गया.धेरे सारे सबूतों को न सिर्फ़ छिपाया गया बल्कि उन्हें मिटाया भी गया. ये बातें साफ़ करती हैं कि जनसंहार के मुख्य राजनीतिक व प्रशासनिक षडयंत्रकर्ताओं को बचाने के लिए 28 साल तक यह नाटक खेला गया.
शुऐब ने आगे कहा, ‘मुक़दमे के दौरान सोलह अभियुक्तों की नौकरी बरकरार रखते हुए उन्हें असलहों से फ़िर से असलहों से लैस कर दिया गया. मामले को ढेर सारी मशक्क़त के बाद दिल्ली स्थानांतरित कराया गया. ये सब बातें ऐसी हैं जिनसे साफ़ होता है कि उत्तर प्रदेश की तत्कालीन और आने वाली सरकारें नहीं चाहती थी कि हाशिमपुरा के बाशिंदों को कोई इंसाफ मिले.’
बैठक में वक्ताओं ने कहा कि हाशिमपुरा के साथ-साथ मेरठ, मलियाना, कानपुर, बिजनौर, मुजफ्फरनगर, मुरादाबाद समेत तमाम जगहों पर हुई सांप्रदायिक हिंसा पर गठित रिपोर्टों को प्रदेश की सरकार ने दबाकर सिर्फ नाइंसाफी ही नहीं की बल्कि सांप्रदायिक रूप से उग्र तत्वों के हौसले भी बुलंद किए. हाशिमपुरा पर आए फैसले के बाद सपा सरकार इसे न्यायालय का मामला बताकर अपनी जवाबदेही और जिम्मेदारी से भाग रही है, ऐसे में मुलायम सिंह यादव यह बताएं कि हाशिमपुरा-मलियाना सांप्रदायिक हिंसा पर गठित 6 आयोगों की रिपार्टों को किसको बचाने के लिए दबाकर रखा गया है.
यह भी कहा गया कि 13 अगस्त 1980 में मुरादाबाद में पुलिस फायरिंग में 284 मुसलमानों की हत्या कर दी गई, जिसमें लाशों की बरामदगी तक नहीं की गई और न ही कोई एफआईआर तक दर्ज किया गया. हाईकोर्ट के जज एमपी सक्सेना की रिपोर्ट को यूपी सरकार ने आज तक सार्वजनिक नहीं किया. वक्ताओं ने कहा कि निष्पक्ष विवेचना ही न्याय का आधार होती है पर जिस तरीके से विवेचना अधिकारी ने हाशिमपुरा जनसंहार में सबूतों को मिटाया है, खुद को सेकुलर कहने वाले मुख्यमंत्री अखिलेश यादव विवेचनाधिकारी के खिलाफ मुकदमा दर्ज करके दिखाएं. क्योंकि अगर यह मुकदमा हाईकोर्ट में जाता है तो कमज़ोर विवेचना के चलते पीडि़तों के इंसाफ के खिलाफ़ जाएगा, ऐसे में हमारी मांग है कि सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश की निगरानी में सीबीआई से इस घटना की जांच कराई जाए.
बैठक में रामकृष्ण, ओपी सिन्हा, इनायततुल्ला खान, अखिलेश सक्सेना, आदियोग, डा. अली अहमद, सैयद मोइद, सत्येन्द्र, अजीजुल हसन, मोहम्मद इमरान खान, हरेराम मिश्र, फरीद खान, मोहम्मद मदनी अंसारी, मोहम्मद मकसूद, अनिल यादव समेत विभिन्न संगठनों के लोग मौजूद थे.