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पंच-नामा : कौमी आवाज़, मंत्रियों के असबाब, वाड्रा, मनमोहन सिंह और दिल्ली में लाठीचार्ज

By TwoCircles.Net staff reporter,

क्यों बदले-बदले से दिल्ली के सरकार नज़र आते हैं, वाड्रा कहां और मनमोहन कहां और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्रियों द्वारा संपत्ति छिपाने से क्या सन्देश मिलता है…पांच खबरों की पड़ताल.

1. कश्मीर में पाकिस्तान का झण्डा
अलगाववादी नेता आसिया अंद्राबी ने एक ज़्यादा बड़ी बहस को जन्म दे दिया है. पाकिस्तान दिवस के मौके पर दुख्तरान-ए-मिल्लत की प्रमुख आसिया अंद्राबी ने श्रीनगर में पाकिस्तान का झण्डा फहरा दिया. रोचक बात तो यह है कि उन्होंने सिर्फ़ झण्डा फहराया ही नहीं, बल्कि अपने कुछ समर्थकों के साथ मिलकर पाकिस्तान का कौमी-तराना भी गा दिया. अब आसिया के खिलाफ़ नौहट्टा पुलिस थाने में गैरकानूनी गतिविधि निरोधक कानून के अनुच्छेद 13 के तहत मामला दर्ज़ कर दिया गया है. यह भी बात ध्यान देने की है कि पुलिस ने अभी तक आसिया को गिरफ़्तार नहीं किया है. जम्मू-कश्मीर की मुफ्ती सरकार अपने कुछेक फैसलों और बयानों के चलते अलगाववादियों के करीब नज़र आ रही है. चाहे वह सफल चुनाव के लिए पाकिस्तान को धन्यवाद देना हो या अलगाववादी नेता मसरत आलम को रिहा करना. ज़ाहिर है कि ऐसे में कश्मीरी सरकार किसी भी अलगाववादी नेता को गिरफ़्तार कर अशांति पैदा करने से बचना चाहेगी.



आसिया अंद्राबी (Courtesy: newsroompost.com)

2. मंत्रियों के संपत्ति के ब्यौरों पर महाराष्ट्र सरकार की कुंडली
एक आरटीआई के जवाब में यह खुलासा हुआ है कि महाराष्ट्र की फडनवीस सरकार के किसी भी मंत्री ने राज्यपाल के समक्ष अपनी संपत्ति का खुलासा नहीं किया है. आरटीआई एक्टिविस्ट अनिल गलगाली की आरटीआई में इस खबर का खुलासा हुआ. दरअसल चुनाव के नामांकन के समय सभी प्रत्याशी अपनी संपत्ति का ब्यौरा देते हैं लेकिन सरकार के गठन के बाद चुने हुए प्रतिनिधियों को फ़िर से राजपाल के सामने ब्यौरा देना होता है. अनिल गलगाली प्रश्न उठाते हैं, यहां तक कि प्रधानमंत्री के संपत्ति का ब्यौरा भी सार्वजनिक किया गया है. महाराष्ट्र सरकार में मुख्यमंत्री समेत सभी मंत्रियों को जल्द से जल्द राज्यपाल के समक्ष अपनी संपत्ति का ब्यौरा दे देना चाहिए’. ‘गुड गवर्नेंस’ के साथ-साथ पारदर्शिता की कसमें खा रही भाजपा सरकार की कलाई केन्द्र के साथ-साथ राज्यों में भी खुलने लगी है. महाराष्ट्र में सरकार चुने 100 दिनों से भी ऊपर हो गए लेकिन अभी तक मंत्रियों ने अपनी संपत्ति का ब्यौरा सार्वजनिक नहीं किया है, और केन्द्र में भी सरकार कई तरीके की मुसीबतें झेल रही है. देवेन्द्र फडनवीस अपने कुछ फैसलों को लेकर वैसे ही विवादों में हैं, ऐसे में तो उनकी नीयत पर प्रश्न उठने शुरू हो सकते हैं.

3. कैग की रिपोर्ट: वाड्रा ने जमकर उठाया हरियाणा सरकार का फ़ायदा
कैग की हालिया रिपोर्ट ने खुलासा कर दिया है कि हरियाणा की पिछली सरकार ने कई बिल्डरों के साथ-साथ सोनिया गांधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा को जमकर फायदा पहुंचाया है. रीयल एस्टेट की कम्पनी डीएलएफ के साथ हुए ज़मीन के समझौतों में यह लाभ पहुंचाए गए हैं. इस रिपोर्ट में बताया गया है कि गुड़गांव के मानेसर की लगभग 3.5 एकड़ की ज़मीन वाड्रा की कम्पनी ‘स्काइलाईट हॉस्पिटैलिटी’ ने 58 करोड़ रुपयों में डीएलएफ को 2008 में बेच दी. इस ज़मीन की मूल कीमत 15 करोड़ रूपए थी, जिस पर तत्कालीन हुड्डा सरकार द्वारा सीलयू और दूसरी आज्ञाएं लगाकर बेच दिया गया. इस रिपोर्ट के बाद कांग्रेस अपनी पार्टी के दामाद को बचाने के लिए कैग के विश्लेषण को झूठा और राजनीति से प्रेरित बता रही है. यह बात तो है कि भाजपा ने कैग को बिठाकर इस मसले को राजनीति से प्रेरित होने का बहाना दे दिया है, लेकिन लोगों के मन में वाड्रा की नीयत और उनके काम करने के तरीके को लेकर बहुत पहले से सवाल थे.

4. पूर्व प्रधानमंत्री सुप्रीम कोर्ट के दर पर
‘सब दिन होत न एक समाना’…इस कहावत को आजकल चरितार्थ करते भारत के पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह दिख रहे हैं. चुपचाप बैठकर दस सालों तक देश को सम्हालने वाले मनमोहन सिंह अब मौजूदा सरकार के निशाने पर आ गए हैं. प्रधानमंत्री पद के साथ-साथ कोयला मंत्रालय सम्हालने वाले मनमोहन सिंह ने ‘कोलगेट’ मामले में समन भेजे जाने पर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है. विशेष अदालत ने 11 मार्च को मनमोहन सिंह को समन जारी किया था कि वे 8 अप्रैल को अदालत में उपस्थित हों. मनमोहन सिंह ने सर्वोच्च अदालत से गुज़ारिश की है कि वे ट्रायल कोर्ट के इस फैसले पर स्टे ऑर्डर जारी कर दें. एक दृष्टि से देखें तो मनमोहन सिंह की यह मांग सही भी लगती है लेकिन यूनिफॉर्म सिविल कोड और वीवीआईपी कल्चर को खत्म करने को लेकर जो बहस चली आ रही है, मनमोहन सिंह की यह मांग उसके खिलाफ़ खड़ी होती है.


दिल्ली में पुलिस की बर्बरता का शिकार होते  छात्र-छात्राएं और एक्टिविस्ट
दिल्ली में पुलिस की बर्बरता का शिकार होते छात्र-छात्राएं और एक्टिविस्ट

5. क्यों और कहां हुआ दिल्ली में लाठीचार्ज
दिल्ली में पहली बार सरकार के गठन के बाद अरविन्द केजरीवाल 49 दिनों में इस्तीफा देकर चले गए थे. दूसरी बार आने के बाद अब उनका रूप चुनावी नहीं रह गया है. वे भाजपा या कांग्रेस सरीखा बर्ताव कर रहे हैं. सांसद खरीदने के आरोप भी लग रहे हैं और पार्टी में फूट के, लेकिन पार्टी कुछ भी सकारात्मक करने के लिए वचनबद्ध होती नहीं दिख रही है. केजरीवाल सरकार को मजदूरों से किये गए उनके वादे याद दिलाने दिल्ली सचिवालय पर जुटे हज़ारों की भीड़ पर पुलिस ने लाठीचार्ज कर दिया और आंसूगैस के गोले दाग दिए. कई मजदूर यूनियन के नेताओं और मजदूर मांगों को लेकर निकलने वाली कई पत्रिकाओं के संवाददाता और सम्पादक भी इस घटना का शिकार हो गए. चश्मदीद बता रहे हैं कि लड़कियों को भी बेरहमी से पीटा गया है और कुछ के साथ अश्लील हरक़तें भी की गयी हैं. इस घटना में कई एक्टिविस्ट घायल हुए हैं. पूंजीपतियों और समाज की बड़ी ताकतों का विरोध कर सत्ता में आई केजरीवाल की सरकार का यह रवैया उनके कई समर्थकों के गले से नीच नहीं उतर रहा है, क्योंकि ज़ाहिर तौर पर ऐसे क़दम पूंजीवाद की वैकल्पिक सचाइयों की ओर ही बढ़ते हैं. हालांकि याह भी बात ध्यान देने की है कि दिल्ली का प्रशासन मुख्यमंत्री के साथ-साथ केन्द्र सरकार के हाथ में भी रहता है. इसलिए केजरीवाल के साथ-साथ केन्द्र की भाजपा सरकार की भी संलिप्तता भी उजागर होती है.

इनके साथ बोनस: भारत विश्वकप में ऑस्ट्रेलिया के हाथों सेमीफाइनल में हार गया है, और इसी के साथ भारत के दिग्भ्रमित युवा समाज ने अभिनेत्री अनुष्का शर्मा को निशाने पर ले लिया है.