अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net
औरंगाबाद: लोगों को जाते देख साथ गाड़ी में बैठे एक पत्रकार मित्र उत्साहित हो गए और बताने लगे कि औरंगाबाद में किसी पीएम की पहली रैली है. लेकिन पत्रकार यह भूल रहे थे कि इससे पहले भी औरंगाबाद देश के कई प्रधानमंत्री आ चुके हैं. 1971 में प्रधानमंत्री पद पर रहते हुए पहली बार इंदिरा गांधी यहां एक चुनावी सभा संबोधित कर चुकी है. 1980 में भी दुबारा इंदिरा गांधी एक चुनावी सभा में आई थीं, हालांकि उस समय वो पीएम पद पर नहीं थी. 1991 में भी बतौर पीएम एक चुनावी सभा में चंद्रशेखर आए थे, हालांकि चंद्रशेखर उस समय टेकर पीएम थे. राजीव गांधी भी प्रधानमंत्री पद से हटने के बाद यहां एक चुनावी सभा कर चुके हैं. अटल बिहारी वाजपेयी व वी.पी. सिंह भी पीएम बनने से पहले यहां चुनावी सभा कर चुके हैं.
आगे बढ़ने पर कई पार्टियों के झंडे व बैनर दिखने लगे. लगभग तमाम पार्टियों ने अपना प्रचार अभियान उसी सड़क पर झोंक दिया था, जिस सड़क से लोग पीएम मोदी का भाषण सुनने जा रहे थे. रास्ते में एक जगह मुस्लिम सुमदाय के लोगों का एक ग्रुप दिखा, जो रैली में जा रहे लोगों का हाथ हिलाकर अभिवादन कर रहे थे. इन मुस्लिमों द्वारा मोदी का समर्थक होने का भ्रम बसपा का नीला झंडा देखकर टूट गया. मालूम हुआ कि औरंगाबाद के गांधी मैदान बहन मायावती की भी रैली है और उसमें भी अच्छे-खासे लोग जा रहे हैं.
स्थानीय पत्रकार भाजपा कार्यकर्ताओं से भी ज्यादा उत्साहित थे, बल्कि यूं कहें इस दीर्घा में पत्रकार कम भाजपा कार्यकर्ता अधिक थे. सुरक्षा के कड़े इंतज़ाम किए गए थे. लोग बैरीकेड तोड़कर आगे न आ जाएं, इसके लिए जाली भी लगाई गयी थी. दरअस्ल समस्तीपुर की रैली में भीड़ के दबाव से बैरिकेडिंग टूटने के बाद एक-दो पत्रकार गंभीर रूप से जख्मी हो गए थे, जिसको खबर के रूप में चलाने की जिम्मेदारी किसी मीडिया समुदाय ने नहीं ली.
मोदी का हैलीकॉप्टर देखते ही लोगों का उत्साह दोगुना हो गया. मंच से ‘ख़तरे में पड़ी आज़ादी, मोदी को अब लाना होगा…’ की धुन बजनी शरू हो गई. दो हैलीकॉप्टर उतरने के बाद माहौल में इतना धूल भर गया गया कि तीसरा हैलीकॉप्टर नज़र ही नहीं आया.
मोदी हैलीकॉप्टर से उतरकर मंच पर पहुंचे. लोगों का अभिवादन किया. फिर सी.पी. ठाकुर के साथ गंभीरता से बातचीत की. इसी बीच एनडीए गठबंधन के नेता पब्लिक को अपना चेहरा दिखाने की नीयत से मंच पर फूलों के बुके के साथ पहुंचे. एक उम्मीदवार जैसे मोदी से हाथ मिलाकर जैसे ही जनता के सामने हाथ जोड़ा, मोदी ने धीरे से हाथ पकड़कर किनारे कर दिया. जैसे उन्होंने फेसबुक मालिक को किनारे लगाया था. फिर उन्होंने उम्मीदवारों से मिलने का सिलसिला रोक दिया. मोदी को मंच पर स्मृति चिन्ह व शॉल देकर सम्मानित किया गया. मोदी ने माईक संभाला और एनडीए के तमाम उम्मीदवारों से लोगों को परिचित करवाया.
मोदी सासाराम की सभा के बाद यहां थोड़े थके हुए नज़र आए. जिसकी चर्चा प्रेस दीर्घा में मौजूद कुछ पत्रकारों ने भी की. मोदी के यहां वाले भाषण में कुछ खास नहीं था. ज़्यादातर पुरानी बातें ही उन्होंने यहां दोहराई. हां! कुछ आंकड़े ज़रूर पेश किए. जैसे देश में 18 हज़ार गांवों में आज तक बिजली नहीं पहुंच पाई है, जिसमें 4 हज़ार गांव सिर्फ बिहार के हैं. बिहार में बढ़ते अपहरण के आंकड़े भी पेश किए. लेकिन मोदी के इस आंकड़े पर प्रेस दीर्घा में मौजूद एक पत्रकार को हंसी भी आई.
मोदी ने कई कहानियां सुनाईं. जैसे जब वो मेट्रो में सफर कर रहे थे तो उन्हें मेट्रो में बिहार के कई नौजवान मिले. इस बात पर किसी को भी हंसी आ सकती है क्योंकि सोशल मीडिया पर उसी समय कई फोटो वायरल हुए थे, जिनमें साफ़ था कि मोदी के बोगी में आम जनता नहीं, बल्कि पार्टी के नेता थे.
मोदी ने मुस्लिम वोटरों को लुभाने की नीयत से एक मुस्लिम परिवार की भी कहानी सुनाई और बताया कि कैसे 12 रूपये में उनकी योजना के चलते एक मुस्लिम परिवार को 2 लाख का चेक मिला. खैर, मोदी इस सभा में कई सवाल छोड़ गए. क्या आप बिहार को बर्बाद करने वाली सरकार को फिर से आने देंगे? क्या बिहार का डंका पूरे विश्व में नहीं बजना चाहिए? क्या बिहार के युवकों को बिहार में ही रोज़गार नहीं मिलना चाहिए? ऐसे कई सवालों पर भीड़ सिर्फ मोदी-मोदी चिल्लाती रही. भीड़ के इस रवैये पर एक बार तो खुद मोदी भी हंस पड़े. जब उन्होंने पूछा कि आज अमेरिका, रूस, चीन जैसे देशों में भारत की जय-जयकार क्यों हो रही है? उन्मादित भीड़ चिल्ला उठी – मोदी… मोदी… इस पर पीएम मोदी हंसते हुए बोले – अरे मोदी-मोदी नहीं, देश की सवा सौ करोड़ जनता है, जिसके कारण भारत की जयकार हो रही है.
मोदी की सभा खत्म हुई. ज़्यादातर पत्रकार मोदी को और क़रीब से देखने की इच्छा के साथ उनकी हैलीकॉप्टर की ओर भागे. इसी बीच प्रेस दीर्घा में एक 12 वर्षीय लड़का ज़मीन पर पड़े झंडा को उठाने के खातिर आया. उसने अपना नाम शुभम कुमार सिंह बताया. शुभम छठी क्लास में पढ़ते हैं. शुभम को मोदी जी अच्छे लगते हैं, लेकिन उनके पास ‘क्यों अच्छे लगते हैं’ का कोई जवाब नहीं है. शुभम की उम्र वोट देने की नहीं है, लेकिन उसके घर वाले मोदी को इसलिए वोट देंगे क्योंकि वे ऊंची जाति के हैं.
अगली मुलाक़ात एक 40 वर्षीय महिला से हुई. उनका नाम खदीजा खातुन था. उन्होंने बताया कि वो मोदी को देखने आई थी. पर जब मैंने पूछा कि वोट किसे देंगी? तो इस पर वो खामोश रहीं. जब मैंने दुबारा पूछा तो उन्होंने बताया कि – जहां मेरा समाज जाएगा, मैं भी वहीं जाउंगी.
उसी दौरान एक लड़की कनक कुमारी ने मुलाक़ात के दौरान बताया कि मैं अभी वोटर नहीं हूं, लेकिन उसकी पसंद नीतीश कुमार हैं. कारण पूछने पर उसका जवाब था कि नीतिश जी ने हम बिहारी लड़कियों के लिए खूब काम किया है. स्कूल में छात्रवृत्ति मिलती है. साईकिल मिलती है. पहले हम घर से बाहर नहीं निकल पाते थे, पर अब हम घर से बाहर निकल सकते हैं.
कैलाश राम किसान हैं और वो इस बार भाजपा को वोट देने के पक्ष में हैं. हालांकि वो साथ में यह भी कहते हैं कि देखिए अभी हमारे गांव में हालात क्या बनते हैं. जब मैंने पूछा कि क्या हालात बदल भी सकते हैं . तो हंसते हुए बोलते हैं –ई बिहार है बबुआ… इहां राता-राती पूरा समीकरण बदल जाला.
ब्रहमदेव महतो व आलोक पाठक दोनों कुटूंबा विधानसभा क्षेत्र से मोदी जी का भाषण सुनने आए थे. उनका वोट इस बार मांझी के बेटे को ही जाएगा. जब मैंने पूछा कि मांझी और मोदी कौन ज़्यादा बेहतर है तो ब्रहमदेव महतो कहते हैं कि मोदी तो दिल्ली के नेता हैं ना सर. हम लोग तो मांझी को ही जानते हैं.
मैदान के बाहर पार्किंग में तीन-चार बाईक के साथ 4-5 युवा खड़े थे. जब मैंने पूछा कि आप लोग क्या कर रहे हैं तो उन्होंने हंसते हुए बताया कि बेरोज़गारी काट रहे हैं. अब तो कोई बाईक में तेल के लिए पैसा भी नहीं देता. राजेन्द्र कुमार सिंह ने बताया कि वो बेरोज़गार है. उसका स्पष्ट कहना था कि हम युवाओं के मामले राज्य व केन्द्र दोनों एक समान हैं. लेकिन इस बार परिवर्तन करके देखते हैं. जब मैंने कहा कि मोदी जी ने तो रोज़गार देने का वादा किया था. तब अशोक कहता है कि अरे सर सुना है कि वैकेंसी आने वाला है. अजय का कहना है कि वैसे नीतिश भी बुरे नहीं हैं. बस लालू के साथ मिल गए. तभी नरेन्द्र कहता है कि नीतिश जी ने ही चमकाया अब मोदी जी चमका रहे हैं. पॉलिटिक्स में आने के सवाल पर अशोक कहता है कि सर! पढ़-लिखकर फिट हैं, फिर भी अनफिट हैं.
हैरानी की बात यह है कि जिस समय मोदी की सभा हो रही है, उसी मैदान से कुछ किलोमीटर की ही दूरी पर मायावती की भी सभा हुई. जिसमें उन्होंने केन्द्र सरकार व पीएम मोदी को खूब कोसा. लेकिन अफसोस इस रैली को शायद ही मीडिया ने दिखाया हो या इसकी खबर पटना के किसी अखबार में छपी हो.
सिर्फ मायावती ही नहीं, शिवसेना के संजय राउत ने भी अपने उम्मीदवार जयशंकर सिंह के पक्ष में यहां एक बड़ी सभा की. इस सभा में केन्द्र सरकार को निशाने पर लिया गया. बाबरी मस्जिद तोड़ने पर शिवसेना ने गर्व महसूस किया. लेकिन इसकी भी चर्चा मीडिया ने नहीं की, लेकिन यह विरोधाभासी सचाई ही है कि यदि संजय राउत की जगह ओवैसी ब्रदर्स आग उगलते तो क्या होता?
11 अक्टूबर को राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव भी रफीगंज में जदयू प्रत्याशी के लिए सभा करेंगे. अब देखना दिलचस्प होगा कि मोदी के असर को कैसे औरंगाबाद में खत्म कर पाते हैं.