अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net
पटना: बिहार के चुनावी मौसम में भाजपा के प्रमुख चेहरे सुशील कुमार मोदी पर एक बड़ा धब्बा है. यह धब्बा मामूली नहीं, बल्कि सरकारी खज़ाने को 500 करोड़ के भारी-भरकम चूना लगाने का है. इस चुनावी दौर में ईमानदारी व पारदर्शिता का झंडा उठाकर घूम रहे सुशील मोदी ने अपने ही उप-मुख्यमंत्री कार्यकाल के दौरान स्टोन चिप्स और उससे जुड़े उत्पाद पर बिना कैबिनेट की मंजूरी के वैट की दर कम करने का ऐसा खेल किया, जिससे चंद कारोबारियों की पौ-बारह हुई और सरकार के हिस्से में करोड़ों का नुक़सान आया.
सुशील मोदी के कार्यकाल में उनके ही वित्त विभाग में चल रहे इस खेल को बिहार के आरटीआई कार्यकर्ता शिव प्रकाश राय ने न सिर्फ़ उजागर किया, बल्कि इस मामले को लेकर सितम्बर 2014 में अपनी संस्था नागरिक अधिकार मंच की ओर से पटना हाईकोर्ट भी गए. जनहित याचिका के माध्यम से वित्त विभाग के इस घपले को अदालत के सामने रखा.
याचिका में कहा गया है कि स्टोन चिप्स और कई उत्पादों का प्रवेश शुल्क पहले 12.5% से घटाकर 8% किया गया. फिर इस 8% को घटाकर 4% कर दिया गया, जो ग़लत था. यही नहीं, वनस्पति के आयात में 12% से 4% वैट कर दिया गया, यानी ब्रांडेड चनाचूर, भुजिया, दालमोठ, भूंजा, आलू चिप्स का रेट 12% से 4% हो गया. वित्त विभाग के इस क़दम से व्यापारियों को काफी फायदा पहुंचा और राज्य-कोष को हानि हुई. यहां तक इस मामले में कैबिनेट को भी अंधकार में रखा गया.
याचिकाकर्ता का कहना है कि इस मामले से संबंधित संचिका मुख्यमंत्री नीतिश कुमार के पास भी गया था, जिस पर उन्होंने टिका-टिप्पणी की थी, बावजूद इसके व्यापारियों को लाभ पहुंचाया गया और बिहार को अक्टूबर 2007 से जुलाई 2012 के छह सालों में करीब 500 करोड़ से अधिक वित्तीय राशि की हानि हुई. हालांकि इसके बदले में व्यापारियों से आर्थिक लाभ लिया गया. मंत्री परिषद के मुखिया होने के नाते इस तथ्य की जानकारी मुख्यमंत्री नीतिश कुमार को भी थी, लेकिन उन्होंने कुछ नहीं किया.
हैरान कर देने वाली बात यह है कि कैबिनेट की बगैर मंजूरी के ग़लत नोटिफिकेशन निकल गया और इससे नुक़सान खज़ाने को हुआ. लेकिन फायदे में स्टोन चिप्स, स्टोन बोल्डर्स और स्टोन बैलेट्स का कारोबार करने वाले रहे. आखिर इसके लिए ज़िम्मेदार कौन है? राज्य को हुए इस नुक़सान की भरपाई कौन करेगा? और इसकी जिम्मेदारी किस पर तय होगी?
यह खेल भाजपा के सुशील कुमार मोदी के दौर में 2007 से लेकर नवम्बर 2012 तक यानी करीब छह साल दो महीने तक चलता रहा. चौंकाने वाली बात यह है कि इन वस्तुओं पर टैक्स कम करने के बारे में कोई प्रस्ताव वाणिज्यकर विभाग ने कैबिनेट को भेजा ही नहीं था. इसके बारे में वित्त विभाग से भी किसी तरह की सहमति नहीं ली गयी थी. ऐसे में नोटिफिकेशन कैसे जारी हो गया, यह भी रहस्य का विषय है. यह अलग बात है कि भाजपा से अलग होते ही नीतिश कुमार ने एक नया नोटिफिकेशन जारी कर इस त्रुटि को दूर कर लिया गया. लेकिन इस त्रुटि से हुए नुक़सान की जवाबदेही तय नहीं की गयी.
इधर पटना हाईकोर्ट ने इस मामले को काफी गंभीरता से लिया. स्टोन चिप व उससे संबंधित अन्य सामान से इंट्री टैक्स व वैट कम किये जाने के मामले में सरकार से कैबिनेट मीटिंग की प्रति व मीटिंग का मेमोरेंडम भी मांगा. सरकार ने कोर्ट के सवालों का जवाब भी दिया. लेकिन याचिकाकर्ता इससे संतुष्ट नहीं हैं. इस मामले की सुनवाई कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश इक़बाल अहमद अंसारी व न्यायमूर्ति चक्रधारी शरण सिंह की पीठ कर रही है. नागरिक अधिकार मंच के अधिवक्ता दीनू कुमार हैं.
हालांकि इस पूरे मामले पर सुशील कुमार मोदी का कहना है कि इसके लिए अधिकारी जिम्मेदार हैं. इससे उनका कोई लेना-देना नहीं है. विभाग के प्रधान सचिव के स्तर से नोटिफिकेशन निकलता है. कैग ने इससे जिस घाटे की बात कही है, उसमें दम नहीं है. लेकिन दूसरी तरफ़ सुशील कुमार मोदी यह भी मानते हैं कि इस नोटिफिकेशन की वजह राज्य को हानि ज़रूर हुई.
जदयू से जुड़े नेता सुशील मोदी को ही ज़िम्मेदार मानते हैं, क्योंकि सुशील कुमार मोदी ही उस समय उप-मुख्यमंत्री के साथ-साथ वित्त मंत्री भी थे. ऐसे में वो खुद को बेदाग़ नहीं बता सकते. सवाल यह है कि अगर वो बेदाग़ हैं तो इस मसले पर खामोश क्यों हैं? खुद राजनीतिक मंच से क्यों नहीं बोलते जिस तरह से वो शराब व अन्य मसले पर बोल रहे हैं.
खैर, भाजपा खुले तौर पर बिहार के विकास व गवर्नेंस का मुद्दा उठा रही है. ऐसे में पार्टी के एक बड़े चेहरे पर लगा यह दाग़ लीडरशिप की अंदरूनी हक़ीक़त को बयां करने के लिए काफी है. ये हक़ीक़त इसलिए भी चौंकाने वाली है, क्योंकि नरेंद्र मोदी इन दिनों खुद ही बिहार चुनाव की कमान संभाले हुए हैं और उनके पास भ्रष्टाचार और गवर्नेंस को लेकर कई सारे दावे हैं.