अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net
चंपारण: बिहार विधानसभा के चौथे चरण के लिए चुनाव प्रचार शुक्रवार शाम समाप्त हो गया. 01 नवम्बर को सात ज़िलों में 55 विधानसभा सीट के लिए मतदाता मतदान करेंगे. इन सात ज़िलों में सबसे महत्वपूर्ण इस समय चम्पारण बन गया है, क्योंकि चम्पारण के दो ज़िलों यानी पूर्वी व पश्चिमी चम्पारण में कुल 21 सीटें हैं और दोनों ही गठबंधनों का मानना है कि ये 21 सीटें सत्ता की फ़सल काटने के लिए हर लिहाज़ से ज़रूरी है. इसलिए इन सीटों को किसी भी तरह से हथियाने के तमाम हथकंडे जमकर अपनाए जा रहे हैं.
कभी गांधी का कर्मभूमि रहा यह चम्पारण हमेशा से राजनीतिक रूप से समृद्ध रहा है. हमेशा से यहां के लोग वैचारिक स्वतंत्रता से अपनी महत्वाकांक्षा के आधार पर फैसले लेते रहे हैं. चम्पारण का चप्पा-चप्पा ऐतिहासिक, पौराणिक और आज़ादी के आंदोलन के स्वर्णिम अध्यायों से अटा पड़ा है. कभी इस धरती से मुस्लिम इंडीपेंडेन्ट पार्टी के टिकट से हाफ़िज़ मुहम्मद सानी पहले विधायक बने थे और 1937 की मो. युनूस की सरकार में काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. पीर मुहम्मद मुनिस जैसे लोग यहां आज़ादी के पूर्व भी साम्प्रदायिकता का विरोध करते रहे हैं.
लेकिन अब चम्पारण की ज़मीन इन दिनों अजीब साज़िश की शिकार हो चुकी है. यह साज़िश यूं तो बेहद ही चुनावी है, लेकिन है बेहद ही घातक. चुनावी मौसम में यहां हिन्दू-मुसलमान के नाम पर इस ज़मीन को सुलगाने की जमकर कोशिश की जाती रही. हाल में हुई कई घटनाएं इस बात का ज़िन्दा सबूत हैं. पिछले एक महीने में यहां छोटी-छोटी बातों को साम्प्रदायिक रंग देने की कोशिश की गई. यह तमाम सबूत इस तथ्य की ओर इशारा भी करते हैं कि ये छिटपुट या अनायास घटनाएं नहीं हैं, बल्कि एक संघटित तरीक़े से हिन्दू-मुसलमानों को आमने-सामने कर वोटों की मोटी फसल काटने की तैयारी थी. लेकिन चम्पारण की जनता पर शायद ही इन घटनाओं का कोई असर हो.
यदि आंकड़ों की बात करें तो 9 सीटें पश्चिम चम्पारण में हैं और 12 सीटें पूर्वी चम्पारण में. इस प्रकार दोनों चम्पारण को मिलाकर कुल 21 सीटें हैं. इन 21 सीटों पर यदि चुनावी समीकरण की बात करें तो 2010 के विधानसभा चुनाव में यहां भाजपा को 10 सीटें हासिल हुई थीं. वहीं जदयू की 8 सीटों पर जीत हुई थी. इसके अलावा 3 सीटों पर निर्दलीय उम्मीदवारों ने बाज़ी मारी थी.
राजद या कांग्रेस को एक भी सीट हासिल नहीं हुई थी. लेकिन राजद यहां 9 सीटों पर दूसरे नंबर ज़रूर रही थी. 4 सीटों पर लोजपा तो 2 सीटों पर कांग्रेस नंबर दो पर रही थी. जदयू भी 3 सीटों पर दूसरे स्थान पर थी.
लेकिन यह भी जानना ज़रूरी है कि तब चुनावी समीकरण अलग था. उस समय भाजपा व जदयू एक साथ थे. राजद व लोजपा ने साथ मिलकर चुनाव लड़ा था. कांग्रेस अकेले दम पर अपनी किस्मत आज़मा रही थी. पर अब समीकरण बिल्कुल अलग है. जदयू अब जहां राजद व कांग्रेस के साथ है, तो वहीं लोजपा अब भाजपा के साथ है. ऐसे इस नए समीकरण में लड़ाई काफी दिलचस्प बन गई है.
जहां महागठबंधन को खासतौर पर कांग्रेस को गांधी की कर्मस्थली चम्पारण से आस है, वहीं यहां भगवा पक्ष की सक्रियता को भी नहीं नकारा जा सकता है. इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता है कि कभी जनसंघ भी यहां मज़बूत दावेदारी पेश करती रही है. पर सच यह भी है कि पिछले चुनाव में जिन सीटों पर भाजपा जीती थी, आज उन्हीं सीटों पर उसकी पकड़ काफी धीली पड़ चुकी है. खासतौर पर पश्चिम चम्पारण में जिन चार सीटों पर भाजपा की जीत हुई थी, उन सीटों पर इस बार महागठबंधन भाजपा को काफ़ी कड़ा टक्कर दे रहा है.
हालांकि पिछले चुनाव में कांग्रेस व राजद इस जिले में एक सीट के लिए तरस कर रह गई थीं. पर इस बार लड़ाई महागठबंधन बनाम एनडीए के हो जाने से स्थिति काफी बेहतर है. महागठबंधन के नेताओं का मानना है कि इस बार क़िला फ़तह होना लगभग तय है. भविष्य में क्या होगा, यह 8 नवम्बर को आने वाले नतीजे ही बेहतर बताएंगे.