Home India News नमाज़ विवाद : ‘आहत भावनाओं’ को चाहिए दो मंदिर और एक गौशाला

नमाज़ विवाद : ‘आहत भावनाओं’ को चाहिए दो मंदिर और एक गौशाला

अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net

मेवात(हरियाणा): मेवात में मज़हब के नाम पर माहौल बिगाड़ने के खेल के पीछे की कहानी काफी दिलचस्प है. हरियाणा के मेवात ज़िले के तावड़ू क़स्बे के ग्रीन डेल्स पब्लिक स्कूल में कथित तौर पर नमाज़ पढ़ाए जाने के नाम पर जो फ़रमान जारी किया गया, उसकी कड़िया अब आगे बढ़ रही हैं.

घटना के बाद अनौपचारिक रूप से स्कूल को 5.51 लाख रूपए का जुर्माना भरने को कहा गया था. अब नए घटनाक्रम में जुर्माने की रक़म से दो मंदिर और एक गौशाला बनाने का ऐलान कर दिया गया है. यह ऐलान धार्मिक भावनाओं को संतृप्ति के लिए किया गया है, जिससे कोई सवाल खड़े न कर सके.

मेवात जीएल में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के जिला प्रचारक डॉ. आरपी शर्मा बताते हैं कि स्कूल में साज़िश के तहत नमाज़ पढ़ाई गई थी. वे कहते हैं, ‘यह स्कूल जिस तरह से हमारे छोटे-छोटे के बच्चों के कोमल मस्तिष्क में हमारी अनुमति के बिना इस तरह से संस्कार भर रहा है, वो हमें मंज़ूर नहीं है. इससे हमारी भावनाएं आहत हुई हैं.’

बकौल आरपी शर्मा, वे इस इलाक़े के चर्चित चेहरों में शुमार हैं. कहते हैं, ‘इसलिए 7 जुलाई की सुबह कुछ परिवार के लोग मुझसे मिले और उन्होंने मुझे बताया कि स्कूल में हमारे बच्चों से नमाज़ पढ़वाई गई है. मैं उनमें से दो अभिभावकों के साथ उनके घर गया. बच्चों से पूछा और उनसे उस तरीके से क्रिया करवायीं जैसे उनसे स्कूल में कराया जा रहा था. बच्चे अपने दोनों हाथ वैसे ही फैला रहे थे, जैसा नमाज़ में ही करते हैं. और फिर उनके मुंह से ‘या मौला’ और ‘परवरदिगार’ जैसे शब्द सुनकर मैं दंग रह गया. एक लड़के ने यह भी बताया कि वह स्कूल रूमाल लेकर नहीं गया था, इसलिए टीचर ने उसकी शर्ट को उतरवा कर सिर पर बंधवाया.’

आरपी शर्मा इन कहानियों के बाद यह भी बताते हैं कि पंच ने जुर्माना लगाया है तो स्कूल प्रशासन को देना तो पड़ेगा. जब हमने यह पूछा कि उस जुर्माने की रक़म से पंच क्या करेगी तो इस पर आरपी शर्मास्पष्ट तौर पर बताते हैं कि इस रक़म से इलाक़े में दो मंदिर और एक गौशाला का निर्माण किया जाएगा.

बताते चलें कि मेवात के तावड़ू क़स्बे की घटना में स्कूल के मालिक सार्वजनिक तौर पर माफ़ी मांग चुके हैं. इसके बावजूद स्कूल पर 5 लाख 51 हज़ार रूपये का जुर्माना लगाया गया और स्कूल इंतज़ामिया से कहा गया कि अब वे अगले दो साल तक किसी तरह की फ़ीस में कोई इज़ाफ़ा नहीं कर सकते. स्कूल प्रशासन को यह भी फरमान सुनाया गया कि स्कूल से मुसलमान स्टाफ और बच्चों को निकाला जाए. साथ ही लड़कियों के ड्रेस को बदलने की भी बात कही गई.

सबसे बड़ी बात यह है कि यह पंचायत यहां के पुलिस थाने में पुलिस अधिकारियों की मौजूदगी में संचालित हुई. इसकी तस्वीरें मीडिया में प्रकाशित हो चुकी हैं. यह अलग बात है कि अब प्रशासन थाने में इस तरह के पंचायत होने से इंकार कर रहा है.

अब इलाक़े के विधायक और पुलिस की तरफ़ से बार-बार कहा जा रहा है कि पंचायत के फ़ैसले का कोई मतलब नहीं है. एक नगर निगम कमेटी के अधिकारी भी अपना बयान जारी कर चुके हैं : ‘सरकार की तरफ़ से किसी पंचायत को वैध नहीं बताया गया है. ना ही उनके फैसले को अमल में लाने की ज़रूरत है. हम लोग भी उनके फैसले को सपोर्ट नहीं करते.’

खुद तावड़ू पुलिस थाने के एसएचओ जयप्रकाश यादव हमसे बातचीत में यह नकार चुके हैं कि थाने में कोई पंचायत भी हुई है और न ही किसी ने किसी पर जुर्माना लगाया है.

लेकिन दिलचस्प बात यह है कि उन्हीं के थाने में मौजूद पुलिसकर्मी खुलेआम बताते हैं कि थाने में पंचायत हुई है और स्कूल को जुर्माना तो भरना ही पड़ेगा. इस थाने के मुंशी योगेश कुमार हमसे बातचीत में बताते हैं कि यहां पंचायत हुई थी. जो जुर्माना लगाया था उसे स्कूल ने अभी तक नहीं दिया है, इसको लेकर फिर से पंचायत होने की संभावना है.

बातचीत में जब हमने पूछा कि यदि स्कूल ने जुर्माना नहीं दिया तो? इस प्रश्न के उत्तर में उनका कहना था, ‘उग्र भीड़ कुछ करवा लेती है.’ तो फिर पुलिस किसलिए है? इसके जवाब में वो बताते हैं, ‘भीड़ के आगे तो सीएम भी फेल हैं, पुलिस क्या चीज़ है.’

यानी पुलिस प्रशासन इस पूरे वाकये से पूरी तरह वाक़िफ़ है. प्रशासनिक तौर पर ऐसी फ़रमानी पंचायतों को खुली शह दी जा रही है. स्थानीय प्रशासन यह सब देखते व जानते हुए भी चुप्पी साधे बैठा है. ऐसे में उपद्रव फैलाने और माहौल बिगाड़ने वालों के हौसले बुलंद हैं.

बताते चलें कि मेवात का यह स्कूल हर त्योहार के मौक़े पर कार्यक्रम आयोजित करता आया है. इसका मक़सद बच्चों को हर धर्म के त्योहारों व संस्कारों से रूबरू कराना होता है. ईद के मौक़े से भी इस स्कूल ने एक कार्यक्रम आयोजित किया, जिसमें इस दिन बच्चों द्वारा की जाने वाली प्रार्थना में ‘गायत्री मंत्र’ की जगह ‘लब पे आती है दुआ, बनकर तमन्ना मेरी’ नज़्म मोबाइल के ज़रिए बजाई गई थी. उसके बाद बच्चों को ईद के बारे में बताया गया और कुछ बच्चों ने बजरंगी भाईजान फिल्म के एक गीत ‘भर दो झोली, मेरी या मुहम्मद…’ को गाया था.

अब इन सबके बीच सबसे बड़ा सवाल यह है कि ये पंचायतें खुद को क़ानून से ऊपर कैसे मानती हैं? जबकि यह बात ज़ाहिर है कि क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम में ऐसी पंचायतों की कोई जगह नहीं है. इसके बाद भी इनका वजूद में होना ही इस बात की गवाही देता है कि प्रशासनिक तंत्र का इन्हें खुला संरक्षण और सहयोग हासिल है.

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