सिद्धांत मोहन, TwoCircles.net
वाराणसी : बनारस स्थित काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में एक नया खौफनाक मामला सामने आया है. इस बार विश्वविद्यालय के एमए हिन्दी प्रथम वर्ष के 23 वर्षीय छात्र अंकित तिवारी(बदला हुआ नाम) के साथ विश्वविद्यालय के ही कर्मचारी और उसके मित्रों द्वारा बलात्कार का मामला सामने आया है. मामले में पीड़ित अंकित घटना के अगले दिन से अपना मेडिकल करवाने का इच्छुक है, लेकिन पुलिस और विश्वविद्यालय प्रशासन की कारस्तानियों के चलते घटना के दस दिन बीतने पर भी पीड़ित अंकित का मेडिकल नहीं कराया जा सका है.
बीते हफ्ते 13 अगस्त दिन शुक्रवार को पीड़ित छात्र अंकित रात नौ बजे कैम्पस से होता हुआ अपने घर की ओर लौट रहा था. तभी बीएचयू के चिकित्सा विज्ञान संस्थान की माइक्रोबायलजी लैब में बतौर अटेंडेंट कार्यरत दीपक कुमार शर्मा और उसके साथ मौजूद चार अन्य सहयोगियों ने उसे जबरदस्ती कार में खींच लिया. इसके बाद अंकित को चाकू की नोंक पर शराब पिलायी गयी और फिर उसे कोई नशीला पदार्थ सुंघाकर बेहोश कर दिया गया.
इसके बाद सभी लोगों ने बारी-बारी अंकित के साथ अप्राकृतिक रूप से यौन सम्बन्ध बनाए. इस दौरान अंकित के गुदाद्वार में जलती हुई सिगरेट भी डाली गयी. दुष्कर्म के बाद घायल और बेहोश अंकित को बीएचयू के आखिरी छोर पर स्थित कृषि विज्ञान विभाग के मैदान पर गाड़ी से फेंक दिया गया.
चौंकाने वाली बात यह है कि अंकित के साथ दुष्कर्म कुलपति आवास से कुछ मीटर की दूरी पर किया गया. और दुष्कर्म के बाद कार कैम्पस के चक्कर काटती रही लेकिन काशी हिन्दू विश्वविद्यालय सुरक्षा विभाग के लोगों ने कार को रोकना ज़रूरी नहीं समझा.
घटना के बाद डरा हुआ अंकित अपने कमरे पर लौट आया और अगली सुबह उसने पुलिस को सूचना दी. पुलिस को सूचना देने पर पुलिस और विश्वविद्यालय प्रशासन से जुड़े लोग इस मामले को रफादफा करने पर जुट गए हैं. विश्वविद्यालय के प्राक्टोरियल बोर्ड ने अंकित से सिर्फ एक सादे कागज़ पर अर्जी लिखवाई और उसे कहा कि वह अब थाने में जाकर एफआईआर लिखवाए.
हमसे बातचीत में अंकित बताते हैं, ‘अगली सुबह मैं लंका थाने गया तो थानाध्यक्ष साहब मुझे बरगलाने लगे कि एफआईआर करोगे तो तुम्हारी ही बदनामी होगी.’ बकौल अंकित, थानाध्यक्ष संजीव कुमार मिश्रा ने बार-बार अंकित पर यह दबाव डालने का प्रयास किया कि वह एफआईआर न दायर करे. जब अंकित ने एफआईआर दायर कर दी तो विश्वविद्यालय के कई कर्मचारी और थानाध्यक्ष दोनों ही मिलकर अंकित पर एफआईआर वापिस लेने का दबाव डालने लगे.
बलिया के रहने वाले अंकित बताते हैं, ‘थानेदार साहब बार-बार मुझसे बोल रहे थे कि – साले आदती हो, खुद किए हो फिर बोल रहे हो.’ उन्हें मुझसे पता नहीं क्या शिकायत थी, बार-बार मुझसे बोल रहे थे कि बलिया वाले हो न साले, यही सब करने बनारस चले आते हो. अंकित कहते हैं, ‘मैंने डरकर घर पर इस मामले के बारे में नहीं बताया था. थानाध्यक्ष ने मुझ पर दबाव बनाकर घर पर फोन कराया और कहा कि फोन करो, मैं बताता हूं कि तुम क्या करते हो? तब जाकर मेरे घर पर पता चला.’
अंकित कहते हैं, ‘मैं घटना के अगले दिन से थाने पर लगातार कह रहा हूं कि मेरा मेडिकल करा लिया जाए और अच्छे से करा लिया जाए लेकिन पुलिस मेरी बात सुनने के बजाय मुझे ही गालियां दे रही है और भद्दी-भद्दी बातें बोल रही हैं.’
साथ ही साथ बलिया में मौजूद अंकित के परिवार वालों पर विश्वविद्यालय के लोगों की ओर से बेनामी फोन जा रहे हैं, जिनके माध्यम से अंकित को जान से मारने की धमकी दी जा रही है. एक फोन पर कहा गया, ‘नाम क्या पूछ रहे हो? बेटा मरेगा तो मेरी ही गोली से. तुम्हारे बेटे के केस की वजह से विश्वविद्यालय को थोड़े ही बदनाम होने देंगे.’
इस मामले में विश्वविद्यालय कुलपति की ओर से बयान देने के लिए आधिकारिक रूप से नियुक्त जनसंपर्क अधिकारी राजेश सिंह पीड़ित बालक को मानसिक रोगी करार देते हैं. राजेश सिंह कहते हैं, ‘साफ़ कहूं तो वह बच्चा मानसिक रोगी है. एक बार पुलिस के पास जाता है तो एक बार प्राक्टोरियल बोर्ड के पास. वह एकदम बेबुनियादी रूप से आरोप-प्रत्यारोप का खेल खेल रहा है.’ राजेश सिंह आगे बताते हैं, ‘इस मामले में विश्वविद्यालय इन्क्वायरी के बाद ही कोई निर्णय लेगा. कथित अभियुक्त कर्मचारी पर जब तक कोई आरोप साबित नहीं हो जाता है तब तक उस पर कोई एक्शन कैसे ले सकते हैं.’
इस मामले में पीड़ित छात्र अभी तक मेडिकल के लिए घूम रहा है. लंका थानाध्यक्ष संजीव कुमार मिश्र बताते हैं, ‘लड़का झूठ बोल रहा है. ऐसी कोई बात नहीं है. वो मेडिकल कराना नहीं चाहता है. कल थाने आइये तो बैठकर बात हो जाएगी.’