आस मोहम्मद कैफ, TwoCircles.net
मुज़फ्फरनगर/बागपत/शामली : कभी-कभी कुछ फिल्में अच्छी होती है और कुछ बदलाव ले आती है. 2014 मे केंद्र मे काबिज़ भाजपा की सरकार को पूर्ण बहुमत का श्रेय मुज़फ्फरनगर को दिया जाता है. जानकार मानते है कि अगर मुज़फ्फरनगर में दंगा न हुआ होता तो भाजपा सरकार नहीं बना पाती.
पूरी तरह योजनाबद्ध तरीके से कराये गए इस दंगे के बाद मुज़फ्फरनगर की जाट मुस्लिम एकता में पूरी तरह नफरत के बीज बो दिए गए. कभी चौधरी टिकैत ने अपना संघर्ष भोपा की पीड़िता नईमा को इंसाफ दिलाने से प्रारम्भ किया था और कभी उनके पुत्र नरेश ने मुज़फ्फरनगर को कलंक गाथा में लिखने वाली महपंचायत का आयोजन किया था. जाटलैंड के तमाम मुस्लिम जाट मुस्लिम एकता के दम पर पैदा हुए. नवाब कोकब हमीद, परवेज हलीम, अमीर आलम, क़ादिर राणा, मेराजुदीन, मुश्ताक़ चौधरी राव वारिश जैसे लोग माननीय जाट-मुस्लिम एकता के दम पर बने थे.
दंगे के बाद से जाटों और मुसलमानों में तल्खी बहुत बढ़ गयी थी. किसी भी एक विषय पर मुसलमानों और जाटों की एक राय नही बन रही थी. कोई भी सही हो और कोई भी गलत, सब अपने-अपने समूह के हो गए. तमाम अच्छी सोच के लोगों ने कोशिशें की मगर बर्फ पिघल नहीं रही थी. लोग वो दौर देखने के आदती थे कि खेल से लेकर राजनीति तक बस जाट-मुस्लिम एकता का ही जलवा होता था. ऐसा जलवा कि एक समय जनपद मुज़फ्फरनगर की सभी 9 विधानसभा सीटों पर चौधरी साहब की जाट-मुस्लिम एकता का जलवा था और सभी विधायक भी उनके थे. दंगे ने यह समीकरण तोड़ दिया और जाट मुस्लिम लड़कों का एक टीम में कबड्डी तक खेलना ख़त्म हो गया. दंगे के बाद हिंसक लड़ाई तो बंद हो गयी मगर दिल मे नफरत दूर नही हुई.
अब एक फिल्म आ गयी ‘दंगल’. शुक्रवार को रिलीज़ हुई और तब से जाटलैंड मे शोर मचा है. कल तक वे जिस आमिर खान को विदेश भेजने की धमकी दे रहे थे, आज उसी आमिर खान के ‘जिंदाबाद’ के नारे लग रहे हैं. मुज़फ्फरनगर के सिनेमा हॉल में उत्साही जाट और मुस्लिम लड़कों ने ‘जय जय जय आमिर’ के नारे लगाए हैं. पश्चिम उत्तर प्रदेश और हरियाणा में पिछले 48 घंटो से दंगल के सभी शो हाउसफुल हैं. दंगल यूं तो कुश्ती पर बनी हुई एक सच्ची कहानी है मगर आमिर के किरदार ने उन्हें लोगो के दिल पर राज करा दिया है. आमिर खान ने एक ऐसे विषय पर शानदार फिल्म बनाई है, जो सीधे जाटों के दिल पर चोट करती है.
हरियाणा के महावीर सिंह फोगट बने आमिर खान एक दमदार अभिनेता है, यह सारा विश्व जानता है. मगर इस बार उनकी स्किल जाट मुस्लिम एकता का वरदान बन गयी है. दंगल की कहानी एक पहलवान जाट महावीर फोगट के सपनों की कहानी है. महावीर चाहता है उसका बेटा गोल्ड जीतकर लाये ताकि जो काम वो खुद नही कर सका, उसे उसका बेटा अंजाम दे. मगर महावीर को एक के बाद एक चार बेटियां पैदा हो जाती हैं. एक घटनाक्रम में महावीर (आमिर खान) को लगता है कि गोल्ड मेडल तो लड़की भी ला सकती है. बस वो बेटियों को पहलवानी सिखाने में जुट जाता है. इसके लिए महावीर को बहुत संघर्ष भी करना पड़ता है और बहुत ताने भी सुनने पड़ते है मगर वो रुकता नहीं है. फिल्म एक सच्ची कहानी है और फोगट बहनें भारत के लिए मेडल जीत चुकी हैं.
इससे पहले ‘सुल्तान’ में सलमान खान के कोच रणदीप हुड्डा का एक संवाद ‘कौन है ये जाट या मुसलमान’ भी चर्चा में आया था. सलमान खान की तुलना में आमिर खान से केसरिया ब्रिगेड ज़्यादा नाराज़ रहती है. उनके ‘असहिष्णुता’ वाले बयान को लेकर पूरे भारत में हंगामा मच गया और देश दो तरह की विचारधारा में बंट गया था. अब जाटलैंड मे आमिर हीरो बन गए है और पुरानी सभी बातें भूलकर जाट-मुस्लिम मिलकर ‘दंगल-दंगल’ कर रहे हैं.
मुज़फ्फरनगर के समाजसेवी असद फ़ारूक़ी कहते हैं, ‘दंगल एक सही वक़्त पर आई एक शानदार मूवी है. मैं अपने जाट दोस्तों के साथ देखने जा रहा हूं. इस फिल्म से जाटों और मुसलमानों में एकता का विस्तार होगा.’
अवकाशप्राप्त प्रधानाचार्य राजवीर सिंह तालियांन ने कहा, ‘राजनीति ने सब गड़बड़ कर दिया है. अब ऐसी फिल्म बदलाव तो लाती ही है. आमिर को आभार, यही सच्ची देशभक्ति है.’