अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net
TwoCircles.net के पास बिहार के अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री डॉ. अब्दुल ग़फ़ूर के झूठ का सबूत है. ये झूठ बिहार में उर्दू लाइब्रेरी खोलने के सिलसिले में बोला गया है.
बता दें कि आज से एक साल पहले अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री का पदभार संभालते ही मंत्री अब्दुल ग़फ़ूर ने यह ऐलान किया कि बिहार के हर ज़िले में एक-एक उर्दू लाइब्रेरी खोली जाएगी.
TwoCircles.net ने नीतीश सरकार के एक साल पूरे होने पर मंत्री अब्दुल ग़फ़ूर से एक लंबी बातचीत की. इस बातचीत में मंत्री अब्दुल ग़फ़ूर ने लाइब्रेरी के सिलसिले में न सिर्फ़ गुमराह करने की कोशिश की, बल्कि बिहार सरकार द्वारा अल्पसंख्यकों के लिए किए गए कामकाज के दावों पर भी बड़े गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं.
TwoCircles.net के साथ एक रिकॉर्डेड इंटरव्यू के दौरान एक सवाल के जवाब में मंत्री अब्दुल ग़फ़ूर ने दावा करते हुए कहा कि –‘अब तक बिहार के 33 ज़िलों में उर्दू लाइब्रेरी क़ायम हो चुके हैं. आगे हम सिर्फ़ ज़िलों में ही नहीं, बल्कि जहां भी अल्पसंख्यकों की बड़ी आबादी है, वहां उर्दू लाइब्रेरी खोली जाएगी.’
आगे उन्होंने यह भी कहा कि –‘आने वाले साल में जब बजट बढ़ेगा, तब ज़िले से आगे जाकर सब-डिवीज़न लेबल पर लाइब्रेरी क़ायम किया जाएगा.’
इस रिकॉर्डेड इंटरव्यू के बाद जब मैंने मंत्री अब्दुल ग़फ़ूर से बिहार के 33 ज़िलों में क़ायम किए गए लाइब्रेरियों की सूची मांगी तो उन्होंने इस ख़ातिर बिहार उर्दू अकादमी जाने को कहा. उनके मुताबिक़ खोले गए इन लाइब्रेरियों का पूरा ब्योरा उर्दू अकादमी के पास मौजूद है, वहीं से एक-एक लाइब्रेरियों के पते-ठिकाने की पूरी जानकारी मिल जाएगी.
इस तफ़्तीश को आगे बढ़ाते हुए TwoCircles.net बिहार उर्दू अकादमी के दफ़्तर पहुंची. लेकिन यहां जो जानकारी मिली वो काफी हैरान कर देने वाले थे. अकादमी में मौजूद अधिकारियों ने साफ़ तौर पर बताया कि ऐसी कोई लाइब्रेरी नहीं खोली गई है और न ही खोलने की कोई योजना है. बल्कि इससे आगे बढ़कर उन्होंने यह भी कह डाला कि लाइब्रेरी खोलना अल्पसंख्यक कल्याण विभाग के अधिकार क्षेत्र में है ही नहीं. मंत्री जी ने सिर्फ़ बोलने के ख़ातिर ये बोल दिया है, इसमें कोई तथ्य शामिल नहीं है.
बिहार उर्दू अकादमी के सचिव मुश्ताक़ अहमद नूरी एक लंबी बातचीत में बताते हैं कि –‘अकादमी का काम लाइब्रेरी क़ायम करना नहीं है. बल्कि हम पहले से मौजूद उर्दू लाइब्रेरियों को कुछ आर्थिक मदद देते हैं. वो आर्थिक मदद 50 हज़ार रूपये होता है. इस रक़म से लाइब्रेरी सिर्फ़ किताबें खरीद सकते हैं या कोई कार्यक्रम आयोजित कर सकते हैं. इस रक़म से लाइब्रेरी का किराया या मरम्मती का काम नहीं करवाया जा सकता है.’
यह पूरा मामला अल्पसंख्यकों के नाम सत्ता की कुर्सी तक पहुंचने गई नीतीश सरकार के तमाम दावों व वादों को बेनक़ाब करने सरीखा है. एक ज़िम्मेदार मीडिया के आगे राज्य का एक मंत्री यूं झूठ बोल सकता है तो आम व्यक्ति और ख़ास तौर पर अल्पसंख्यक तबक़े से ताल्लुक़ रखने वाले व्यक्ति और संस्था के प्रति सरकार का सलूक क्या होगा, बड़ी आसानी से समझा जा सकता है.
उर्दू अदब की गिरी हुई हालत को सुधारने के बजाए बिहार सरकार सिर्फ़ झूठ व फ़रेब का सहारा लेकर अपने नंबर बढ़ाने और मीडिया में अपनी छवि चमकाने की कोशिश पर टिकी हुई है, मगर जो हक़ीक़त है वो बेहद ही तल्ख़ और दुखद है.
बताते चलें कि पिछले दिनों अब एक ऐसा ही ऐलान पश्चिम बंगाल राज्य के पुस्तकालय व जन शिक्षा राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) सिद्दीकुल्लाह चौधरी ने किया है. उनके मुताबिक़ राज्य के हर ज़िले में एक मॉडल लाइब्रेरी खोली जाएगी. पश्चिम बंगाल से दो क़दम आगे बढ़कर पिछले दिनों झारखंड के मुख्यमंत्री रघुवर दास ने राज्य के सभी पंचायतों में एक-एक लाइब्रेरी खोलने का ऐलान किया है.