आसिफ़ इक़बाल
हम सब जानते हैं कि भाजपा और संघ के तीन मुख्य मुद्दे हैं: राम मंदिर, धारा 370 और कॉमन सिविल कोड. लेकिन चूंकि इन तीनों ही मुद्दों से आम जनता का ख़ास सरोकार नहीं है, इसलिए इनको छोड़कर कुछ दूसरे सामाजिक और राजनीतिक मुद्दे उठाए जा रहे हैं. इनमें गाय का मुद्दा आजकल ज़ोरों पर है. यही वजह है कि देश में आए दिन गाय के बहाने ज़ुल्म व ज्यादतियों का सिलसिला बढ़ता जा रहा है.
गाय के दो पहलू हैं. वह एक समुदाय के पास पवित्र है तो यह ज़रूरी नहीं कि वह समुदाय दूसरे अन्य समुदायों पर अत्याचार या उनके साथ दुर्व्यवहार करे. यह सरासर क़ानून हाथ में लेना हुआ. तथ्य यह है कि जब से वर्तमान नरेंद्र मोदी सरकार सत्ता में आई है, तब से ‘गाय की रक्षा’ से जुड़े हुए सभी अपराधियों पर कानूनी पकड़ कमज़ोर हुई है, जो गाय की आड़ में अपने खतरनाक इरादों को अवैध तरीके से प्राप्त करना चाहते हैं. जिस तरह अभी हाल में गुजरात में मरी गाय की खाल उतारने वाले चार दलित युवकों की पिटाई का वीडियो सोशल मीडिया द्वारा सामने आया, वह न केवल कानून एवं व्यवस्था की खराब स्थिति को बयान करता है बल्कि यह घटना भी अपने आप में कई सवाल भी खड़े करती है.
पुलिस के अनुसार वेरावल में कथित शिवसेना कार्यकर्ताओं ने पिछले हफ़्ते कुछ दलितों को तब पीटा था, जब वे जानवर की खाल उतार रहे थे. हालांकि बाद में गुजरात में शिवसेना ने अपने कार्यकर्ताओं के इस मामले से जुड़े होने से इनकार किया है. लेकिन यह बात आपकी जानकारी में होगी कि उन चार दलितों को बदमाशों ने पूरे शहर में घुमाकर बेरहमी से पीटा था. इसके बाद छह बदमाशों को गिरफ्तार किया गया, वहीं तीन अधिकारी भी सस्पेंड किए गए. इस दुखद घटना के बाद दलितों ने राज्य भर में प्रदर्शन किए और पुलिस के अनुसार सात लोगों ने आत्महत्या की कोशिश की. मुख्यमंत्री आनंदीबेन ने जांच के आदेश दिए हैं और चार पुलिस कर्मचारियों को निलंबित भी किया है.
पिटाई का प्रतिशोध सुरेंद्रनगर में भी देखने को मिला. दलित समाज के लोग मरी हुई गायों के अवशेषों को ट्रकों में भरकर कलेक्ट्रेट दफ्तर पर पहुंच गए और अवशेषों को वहां पटक कर यह बोलते दिखे, ‘संभालो अपनी मांओं को.’ दलित युवकों की पिटाई के विरोध का आंदोलन और विरोध का यह तरीका पूरे गुजरात में शुरू हो चुका है. लोग मरी हुई गाय को सरकारी अधिकारियों के दफ्तर पर पहुंचा रहे हैं. मरी हुई गाय को कलेक्टर दफ्तर पर पहुंचाने का तरीका पूरे गुजरात में फैलता जा रहा है. साथ ही सोशल मीडिया पर गुजरात के दलितों का प्रदर्शन वायरल हो रहा है. लोग इसे दलित समाज के विरोध प्रदर्शन का गुजरात मॉडल नाम दे रहे हैं.
यह भी सच है कि गौरक्षा दल के नाम पर हर तरफ गली-मोहल्ले में गुंडागर्दी के अलावा कुछ और नही हो रहा है. यही वजह है कि आए दिन मारपीट की घटनाएं सामने आ रही हैं. ये घटनाएं राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मीडिया में उस वक़त आना शुरू हुईं, जब बिसाहड़ा में 28 सितम्बर 2015 को 50 वर्षीय अखलाक की गौमांस खाने के आरोप में हत्या की गयी थी. एक समूह ने अखलाक़ को पीट-पीटकर हलाक कर दिया था. लेकिन यह वाकया सांप्रदायिक नफरत का पहला वाकया नहीं था. साल 2014 में भी 2 अगस्त को दिल्ली के नजफगढ़ इलाके के छावला गांव में पुलिस जांच चौकी पर एक मिनी ट्रक को रोका गया. एक ओर जब ट्रक का ड्राइवर पुलिस को जाने देने के लिए मनौवल कर रहा था, तभी कुछ ग्रामीण ट्रक के चारों ओर जमा हो गए और बेरहमी से उस ड्राइवर को पीट-पीटकर मार डाला. वहीं हिमाचल प्रदेश में 16 अक्टूबर 2015 को एक 28 वर्षीय ट्रक ड्राइवर नोमन की भीड़ ने गौ तस्करी के आरोप में पुलिस की मौजूदगी में हत्या कर दी थी. 9 अक्टूबर को कश्मीर के उधमपुर जिले में भीड़ ने 18 वर्षीय जाहिद रसूल को जिंदा जला दिया, जिसकी बाद में इलाज के दौरान मृत्यु हो गयी. 11 दिसम्बर 2015 को गौरक्षा टीम ने हरियाणा के करनाल में 25 वर्षीय मजदूर की हत्या कर दी. इसी तरह 29 नवंबर 2015 को गाय तस्करी के आरोपी आबिद को पुलिस ने हरियाणा के थानेसर कस्बे में मार डाला. यहां तक कि कश्मीर के निर्दलीय विधायक अब्दुर राशिद को विधानसभा में बीफ पार्टी के आरोप में पीटा तक गया. 2 नवंबर को भाजपा नेताओं ने कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धार मैय्या को बीफ खाने पर सर कलम करने की धमकी दे डाली. इसी तरह झारखण्ड में 18 मार्च 2016 को लातेहांर के बालुमथ जंगलों में दो लोगों का शव पेड़ से लटका पाया गया. एक 35 वर्षीय तो दूसरा 12 वर्षीय बालूगोन व नवादा गांवों का निवासी था. वे अपनी 8 भैंसों के साथ पड़ोस के पशु मेले में जा रहे थे, जिन्हें रास्ते में एक भीड़ द्वारा रोका गया और पीटकर पेड़ पर फांसी के रूप में लटका दिया गया.
हरियाणा में गोरक्षा के लिए 24 घंटे की हेल्पलाईन शुरू की गई है. इस हेल्पलाईन के शुरू होने से गोसंरक्षण में मदद मिल सकती है. वहीं इसका फ़ायदा यह भी है कि उल्लंघन के नतीजे में क़ानूनी तरीके से फैसला हो सकेगा, साथ ही गुंडागर्दी पर भी रोक लगेगी. दूसरी ओर केंद्र और राज्य सरकारों की ओर से यह समाधान हर जगह मौजूद है, इसके बावजूद गोरक्षा के नाम पर ना सिर्फ क़ानून से खिलवाड़ जारी है बल्कि क़ानून को लागू करने वाले वालों की पकड़ भी कमज़ोर होती नज़र आ रही है.
सोशल मीडिया पर गुजरात की घटना को लेकर लोग अपने विचार दर्ज कर रहे हैं, जो किसी के लिए दिलचस्पी का स्रोत हैं तो किसी के लिए वास्तविकता से परिचित होने का. वहीं इस मौके पर यह बात भी साफ़ हो रही है कि संघ का हिंदुत्व, आम हिन्दुओं या भारतीयों को स्वीकार नहीं है.
इस पृष्ठभूमि में न केवल सरकारों को बल्कि जनता को भी प्रभावशाली भूमिका निभाना चाहिए ताकि दलितों, पिछड़ों और समाज के कमज़ोर वर्गों की समस्याएं कम हों. इसके लिए आवश्यक है कि सबसे पहले मनुष्यों को बराबरी का दर्जा दिया जाए. मनुष्य की इज़्ज़त व गरिमा को बनाए रखा जाए और उन्हें रंग, नस्ल, जाति और विभिन्न वर्गों में विभाजित करके ऊंचे या निचले की नज़र से ना देखा जाए. अगर ऐसा नहीं हुआ तो फिर समस्याओं में इसी तरह वृद्धि होगी जो देश और देशवासियों, दोनों के लिए अत्यंत हानिकारक है.
[आसिफ पत्रकार हैं और दिल्ली में रहते हैं. उनसे [email protected] पर संपर्क किया जा सकता है.]