TwoCircles.net Staff Reporter
लखनऊ : मथुरा की ‘कंसलीला’ अब खत्म हो चुकी है. लेकिन इस ‘लीला’ में दो पुलिसकर्मियों समेत 27 लोगों को अपने जान से हाथ धोना पड़ा है. वहीं जवाहर बाग़ में जमे प्रदर्शनकारियों का नेतृत्व कर रहे रामवृक्ष यादव भी अब मारा जा चुका है.
शनिवार शाम किए गए एक ट्वीट में उत्तर प्रदेश पुलिस के महानिदेशक जवीद अहमद ने बताया कि –‘मथुरा ऑपरेशन में मारे गए कुछ लोगों की पहचान हो गई है. रामवृक्ष यादव के सहयोगियों ने उनके शव की पहचान की है. अंतिम पुष्टि के लिए उनके परिजनों को बुलाया गया है.’
पुलिस के मुताबिक़ मथुरा के इस जवाहर बाग़ से हथियारों का एक बड़ा ज़खीरा मिला है. जिसमें विशेष तौर पर 178 ग्रेनेड, 47 देसी कट्टे, 6 रायफल समेत एके-47 की गोलियां शामिल थी.
ऐसे में इस पूरे मामले को लेकर खास तौर पर सोशल मीडिया में यह चर्चा चलने लगा है कि आख़िर हथियारों की इतना बड़ा ज़खीरा आया कहां से? वहीं कुछ युवाओं का यह भी सवाल है कि यदि जवाहर बाग़ में प्रदर्शनकारियों का नेतृत्व कर रहे रामवृक्ष यादव की जगह कोई मुस्लिम कर रहा होता तो क्या होता…
वहीं उत्तर प्रदेश की सामाजिक संगठन रिहाई मंच ने मथुरा में हुए हत्याकांड की सीबीआई जांच कराने की मांग करते हुए कहा है कि इतने बड़े पैमाने पर असलहों और विस्फोटकों का ज़खीरा बिना राजनीतिक संरक्षण के इकठ्ठा नहीं किया जा सकता था.
मंच ने सवाल किया कि जो आईबी बिना सबूतों के किसी नासिर को 23 साल जेल में सड़ाकर जिंदा लाश बना देती है, उसे क्या इस बात की जानकारी नहीं थी कि जवाहर बाग़ में जमा दहशतगर्द उनके पुलिसिया अमले पर हमला कर देंगे.
रिहाई मंच महासचिव राजीव यादव ने कहा कि मथुरा समेत पूरे सूबे में जिस तरीक़े से लगातार कहीं फैज़ाबाद और नोएडा में बजरंग दल तो वाराणसी में दुर्गा वाहिनी के सैन्य प्रशिक्षण कैंप चल रहे हैं, वो यह साफ़ करते हैं कि सूबे में आतंरिक अशांति के लिए सरकार संरक्षण में प्रयोजित तरीके से षड़यंत्र रचा जा रहा है.
उन्होंने कहा कि जिस तरीक़े से मथुरा में भारी पैमाने पर असलहे और विस्फोटकों का इस्तेमाल किया गया वह सामान्य घटना नहीं है. इस घटना ने खुफिया एजेंसियों की नाकामी नहीं, बल्कि उनकी संलिप्तता को पुख्ता किया है.
उन्होंने सवाल किया कि यह कैसे सम्भव हो जाता है कि किसी बेगुनाह दाढ़ी-टोपी वाले मुस्लिम को आईएस और लश्कर ए तैय्यबा से उसका लिंक बता करके पकड़वाने वाली खुफिया एजेंसियां यह पता नहीं कर पाईं कि जवाहर बाग़ में हथियारों और विस्फोटकों का इतना बड़ा ज़खीरा कैसे इकठ्ठा हो गया.
उन्होंने कहा कि ठीक इसी तरह गाजियाबाद के डासना में हिंदू स्वाभिमान संगठन के लोग पिस्तौल, राइफल, बंदूक जैसे हथियारों की ट्रेनिंग आठ-आठ साल के हिंदू बच्चों को दे रहे थे, उस पर आज तक खुफिया-सुरक्षा एजेंसियां और सरकार चुप हैं. जिस तरह से मथुरा हिंसा में रामवृक्ष यादव को सत्ता द्वारा संरक्षण दिया जाना कहा जा रहा है, ठीक इसी तरह हिंदू स्वाभिमान संगठन के स्वामी जी उर्फ़ दीपक त्यागी कभी सपा के यूथ विंग के प्रमुख सदस्य रह चुके हैं. इसलिए उनके खिलाफ सरकार ने कोई कार्रवाई नहीं की. ठीक इसी तरह पश्चिमी यूपी में मुज़फ्फरनगर सांप्रदायिक हिंसा में सक्रिय संघ शक्ति हो या फिर संगीत सोम जिन्होंने फर्जी वीडियो वायरल कर मुसलमानों का जनसंहार कराया उस पर खुफिया एजेंसियों को कोई जानकारी नहीं रहती है. पर वहीं खुफिया बिना किसी सबूत के ही राहत शिविरों में जेहादी आतंकियों की सक्रियता के झूठे दावे करके बेगुनाहों को फंसाने में लग जाते हैं.
लखनऊ रिहाई मंच नेता शकील कुरैशी ने कहा कि मई माह में आज़मगढ़ के खुदादादपुर में हुई सांप्रदायिक हिंसा में हिंदू महिलाओं द्वारा राहगीर मुस्लिम महिलाओं पर न सिर्फ हमला किया गया, बल्कि उनके जेवरात छीने गए तो वहीं मथुरा में महिलाओं द्वारा फायरिंग व वाराणसी में दुर्गा वाहिनी द्वारा महिलाओं को हथियारों की ट्रेनिंग यह घटनाएं अलग-अलग हो सकती हैं, पर इनका मक़सद हिंसा है.
उन्होंने कहा कि जिस तरीक़े से मथुरा में क़ब्ज़ा हटाने के मामले में सेना तक की मदद लेने की बात सामने आ रही है, उससे साफ़ है कि स्थिति भयावह थी और सरकार में या तो निपटने की क्षमता नहीं थी या फिर उनके खिलाफ़ सख्त कार्रवाई करने का राजनीतिक साहस नहीं दिखा पाई.
रिहाई मंच ने कहा है कि मथुरा काफी संवेदनशील जगह है. ऐसे में इस पूरे मामले में खुफिया विभाग की भूमिका की जांच होनी चाहिए. वहीं जातिवादी व सांप्रदायिक वोटों की खातिर जिन देशद्रोहियों को सरकार पाल रही है, वह देश के नागरिकों के हित में नहीं है. ऐसे में मथुरा से सबक़ लेते हुए प्रदेश में बजरंग दल समेत अनेकों संगठनों द्वारा जो संचालित प्रशिक्षण केन्द्र हैं, उन पर तत्काल कार्रवाई करते हुए इन संगठनों पर प्रतिबंध लगाया जाए.